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बेटियाँ यूँ ही जलती रहीं, यूँ ही मरती रहीं... कभी चूल्हे की आग में, कभी दहेज़ के सवालों में, कभी "घर की इज़्ज़त" बचाने के नाम पर, कभी माँ-बाप की चुप्पी के जालों में। लड़कों ने कहा— "माँ, ये तुम्हारी पसंद की लड़की है, ले आओ अपने लिए सेवा करने को, मैं तो बाहर कहीं और दिल बहला लूँगा।" घरवालों को तो चाहिए थी बस— रोटी बनाने वाली हथेलियाँ, पानी भरने वाली थकान, और नोटों से सजी बहू, जिसके संग दौलत के सपने पूरे हों। नई नवेली दुल्हन... सपनों की चूड़ियाँ पहने जब आई उस घर में, तो उसके हिस्से आई बस आँसुओं की चूड़ियाँ। कहते हैं लोग— "संगर्ष में प्रेम साथ देता है..." पर यहाँ पत्नी दोषी ठहराई जाती है, क्योंकि वह कभी सास की ‘ना’ से ऊपर नहीं हो पाती, क्योंकि उसका प्रेम बंधन से बाँधा ही नहीं जाता...
मजबूत बनो" यदि तुम हर परिस्थिति में खुद को सँभालना सीख जाओ, तो यक़ीन मानो — पहाड़ की तरह अटल खड़े रह सकोगे। कमज़ोर लोग डिप्रेशन और निराशा में बैठ जाते हैं, सोचते हैं — "अब कुछ नहीं हो सकता।" पर मज़बूत इंसान कभी हार नहीं मानता। — "अगर यह रास्ता नहीं मिला तो दूसरा खोज लूँगा, गिरा हूँ तो क्या हुआ, उठकर फिर चलूँगा। पीछे नहीं हटूँगा, पहाड़ की तरह खड़ा रहूँगा। और हार? नहीं… हार को तो हराऊँगा!"
मुस्कुराते देखा है , उन चेहरों को जो मुझे तकलीफ, में देखना पसंद करते हैं - archana
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