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मैं कभी किसी के सामने वो नहीं बन पाई जो मैं वास्तव में हूं ! पहन रखे है मैने ...नकाब हजारों🖤 ArUu ✍️
कुछ अर्ज़ है किताबी, कुछ फ़र्ज़ है ज़िंदगी। चेहरा बदलती रहती है ये, पर मर्ज़ है ज़िंदगी। बड़ी बेनकाब, बेशर्म, निठल्ला-सा किरदार है ये ज़िंदगी।
तुम कृष्ण के लिए या तो मीरा बन सकते हो या अर्जुन। मीरा बनोगे तो भक्ति समझ पाओगे और अर्जुन बनोगे तो शक्ति
Bahut मुश्किल होता है उस शख्स को जाने देना जिसे हम उम्र भर थामे रखना चाहते थे ArUu ✍️
एक जीवन में सबसे कीमती है जीवन ArUu ✍️
मेरे दूर की नज़र इतनी कमजोर हो गई है कि मुझे अपना अच्छा-बुरा सही-गलत और अब तो अपना फ्यूचर दिखना भी बंद हो गया है🤣
**वे स्त्रियाँ जो सवाल नहीं करती, रह जाती हैं खुद एक सवाल बनकर। जो चुप रहती हैं, उनकी खामोशी एक दिन दूसरों का फ़ैसला बन जाती है। जो सहती जाती हैं, वही सबसे पहले टूटती भी हैं। जो मुस्कान ओढ़ लेती हैं, सबसे गहरी चोटें भी वही छुपाती हैं। जो झुक जाती हैं, उनकी रीढ़ को कमज़ोरी समझ लिया जाता है। जो सहन करती हैं, उन्हें ही सहने का फ़र्ज़ थमा दिया जाता है। जो अपने हिस्से का आसमान नहीं माँगतीं, उनके सिर पर अधिकार नहीं— बंधन रख दिए जाते हैं। पर सच यह है— जो स्त्री बोलती है, वो हंगामा नहीं करती… इतिहास बदल देती है। और जो सवाल उठाती है, वो सिर्फ़ अपनी नहीं— पूरी पीढ़ियों की किस्मत लिखती है।** ArUu ✍️
मैंने सुना था जो ज्यादा किताबें पढ़ता है वो पागल हो जाता है बस ये ही सबसे बड़ी साजिश थी सच से दूर रखने की क्योंकि किताबें पढ़ने के बाद लोग सवाल करते है...उनकी सोच और मत विकसित हो जाते है और तथाकथित समाज इसका पक्षधर नहीं है
धीरे धीरे समझ आ रहा है की जाति एक सामाजिक व्यवस्था नहीं बल्कि मानसिक विकार है।
इंसान मिट्टी का पुतला था— इसलिए टूटना उसकी प्रकृति थी। इंसान गलतियों का पुतला था— इसलिए सीखना उसकी यात्रा थी। पर समय ने उसे समाज, धर्म और जाति की कठपुतली बना दिया। अब वह स्वयं नहीं रहता, बल्कि दूसरों की कल्पनाओं का प्रतिबिंब बनकर जीता है। कठपुतली वही नहीं होती जिसके धागे दिखाई दें— कठपुतली वह है जो अपने धागों को पहचान भी न पाए। और यही मनुष्य का सबसे बड़ा संकट है कि वह स्वतंत्र पैदा होता है, पर बंधनों में मर जाता है। — ArUu ✍️
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