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GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)

GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)

@ganeshptewarigmail.com064906


मानव है इस जगत में, स्वयं के लिए मित्र । कभी- कभी खुद के लिए, बनता यही अमित्र।।
दोहा--323
(नैश के दोहे से उद्धृत)
----गणेश तिवारी 'नैश'

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चोरी के धन से‌ बना, नहींं चोर धनपाल। उपकारी उपकार से , नहीं हुआ कंगाल।।
दोहा--322
(नैंश के दोहे से उद्धृत)
गणेश तिवारी 'नैश'

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लोभ-मोह वश में करे, जीते वह‌ यह‌ लोक। काम-क्रोध वश में करे, जीते वह सुरलोक।। दोहा--321
(नैश के दोहे से उद्धृत)
--गणेश तिवारी 'नैश'

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धनाभाव हो गया तो, कभी न छोड़ो धर्म। अच्छे दिन की आस में, करते रहो सुकर्म।।
दोहा--320
(नैश के दोहे से उद्धृत)
----गणेश तिवारी 'नैश'

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हिंसा में जो रत मनुज, मिले न‌ उसको चैन। अंत समय में वह मनुज, रोता है दिन-रैन।। दोहा--319
(नैश के दोहे से उद्धृत)
-----गणेश तिवारी नैश'

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धर्मी को प्रारम्भ में मिल सकता है कष्ट। किन्तु धर्म को छोड़ वह, कभी न होता भ्रष्ट।।
दोहा--318
(नैश के दोहे से उद्धृत)
--गणेश तिवारी 'नैश'

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पाप कर्म से जो मिले, दौलत‌ द्रव्य अकूत। धर्मी ऐसे द्रव्य को, समझें निरा अछूत। दोहा--317
(नैश के दोहे से उद्धृत)
-----गणेश तिवारी 'नैश'

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इन्द्रिय वश में जो रखे, कभी न होता भ्रष्ट । सुख से वह विचरण करे, नहीं कभी हो कष्ट।।
दोहा--316
(नैश के दोहे से उद्धृत)
----गणेश तिवारी 'नैश'

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जगत ढिंढोरा पीटकर, करे धर्म आचार। कीर्ति नहीं उसको मिले, करता बंटाधार।। दोहा--315
(नैश के दोहे से उद्धृत)
---गणेश तिवारी 'नैश'

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चुगली-निन्दा छोड़कर, जो रहता निर्वैर। ऐसा धर्मी जगत में, सुख से करता सैर।। दोहा--314
(नैश के दोहे से उद्धृत)
------गणेश तिवारी 'नैश'

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