Quotes by Gaurav Pathak in Bitesapp read free

Gaurav Pathak

Gaurav Pathak

@gauravpathak
(14)

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**नहीं है अर्जुन की धनुषधार,
नहीं है रावण सा अभिमान।
नहीं है भीम का गहन विचार,
नहीं है हनुमान का अद्भुत पराक्रम महान।

नहीं है कर्ण का कवच और कुंडल,
नहीं है भीष्म की प्रतिज्ञा अमर।
नहीं है द्रोण का शस्त्र-कौशल,
नहीं है शकुनि सा छल भरकर।

पर मेरे पास है एक हथियार,
जिसकी धार है सबसे प्रखर।
न तलवार, न बाण, न ढाल,
यह कलम है मेरा सबसे बड़ा संबल।

कलम से जग को बदल दूँगा,
अन्याय को धूल में मल दूँगा।
अंधकार में उजियारा भर दूँगा,
हर दिल में विश्वास जगा दूँगा।

यही है मेरा असली शस्त्र,
यही है मेरी पहचान।
कलम ही है मेरी शक्ति,
कलम ही है मेरी जान।

यही है मेरी तलवार!**

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कलम तोड दी मैंने.......


और फिर कलम तोड दी मैंने ,
एक गजल अधूरी छोड दी मैंने ,
मंजिल आँखो के सामने थी ,
पर अपनी कश्ति मोड दी मैंने ,
उसने कहा ये मुमकिन नहीं
मैं तुम्हारे हाथो की लकीरो में नहीं ,
तुम अच्छे दोस्त हो मेरे .....
और फिर अपनी सारी अच्छाइयाँ छोड दी मैंने ,
और फिर एक -2 करके आला- 2 बुराईयाँ जोड ली मैंने ,
और फिर खुदको इतना बेजार किया मैने ,
अपना बहुत नुकसान किया मैंने,
देह का तो क्या ही बयाँ करूँ
दिल को भी बहुत दर्द दिया मैंने ,
फिर एक दिन खुद से ये सवाल किया मैंने ,
कि जीने की ख्वाहिस क्यो छोड़ दी मैंने ,
वो बनना सँवरना वो हँसना हँसाना ,
वो लड़ना झगड़ना रूढना मनाना ,
वो दोस्तो में किस्से कहानी सुनाना ,
आधा सच बताना आधा अपना मिलाना,
वो यारो के बीच हँसी ठहाके लगाना ,
वो सब पर अपनी खुशियाँ लुटाना ,
वो माँ को सताना उसे अपने पीछे घुमाना ,
उसे सारे दिन का हाल खुलकर बताना ,
ये सारी हरकते एक झटके में छोड दी मैंने ,
अपनी जिन्दगी में एक गहरी खामोशी जोड ली ,


हाँ.....कलम तोड दी मैंने।

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तेरी यादों की रौशनी से दिन मेरा सज जाता है,
तेरी मुस्कान से हर सवेरा निखर जाता है।

तेरे बिना अधूरी लगती है ये सुबह की बेला,
तेरी आवाज़ से महक उठता है दिल का झमेला।

सूरज की किरणें भी तुझसे प्यारी नहीं लगती,
Good Morning मेरी जान, तू ही तो ज़िंदगी है सच्ची। ❤️🌞

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कविता – तेरे बारे में सोचते-सोचते...

तेरे बारे में सोचते-सोचते
कभी मेरी रातें जाग कर गुज़र जाती हैं,
तो कभी तेरी यादें मेरे ख्वाबों में उतर आती हैं।
तेरी यादें मेरे तकिये पर ओस की बूँदों की तरह गिरती हैं,
और मेरी नींदें धीरे-धीरे सूखे पत्तों सी उड़ जाती हैं।

तू दूर होकर भी पास लगता है,
जैसे साँसों में घुला कोई अनदेखा अहसास।
कभी हवा में बिखरी तेरी खुशबू महसूस होती है,
तो कभी भीड़ के शोर में तेरी आवाज़ सुनाई देती है।
तेरी गैर-मौजूदगी में भी तू हर जगह मौजूद है,
जैसे रूह हर शरीर में बसती है।

कभी लगता है कि मोहब्बत इबादत जैसी है,
जहाँ सजदे में सिर्फ़ तेरा नाम हो।
तेरा नाम लूँ तो दिल को सुकून मिलता है,
जैसे कोई फ़कीर दरगाह पर चादर चढ़ाकर लौटता है।
कभी लगता है कि मोहब्बत दर्द जैसी है,
जो जितना चुभती है उतना ही गहरा बना देती है।
ये दर्द भी मीठा है,
क्योंकि इसमें तेरी यादों का स्वाद घुला है।

तेरे बिना मेरा हर दिन अधूरा है,
जैसे किताब बिना आख़िरी पन्ने के।
पर तेरी मौजूदगी से हर लम्हा मुकम्मल हो जाता है,
जैसे कोई अधूरी कविता अचानक पूरी हो जाए।
तेरा होना मेरी तन्हाई की दवा है,
और तेरी यादें मेरी रूह का सुकून।
तेरे बिना मेरा वजूद अधूरा है,
पर तेरे साथ मैं अपनी पहचान पाता हूँ।

तू ही वो ख्वाब है जिसे मैं बंद आँखों से भी देखता हूँ,
और वो हक़ीक़त है जिसे खुली आँखों से भी महसूस करता हूँ।
तेरी झलक पाना वैसा है
जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी मिल जाना।
तेरा नाम मेरी धड़कनों की ज़ुबान है,
तेरा ज़िक्र मेरे होंठों की मुस्कान है।
तेरे बिना ये मुस्कान सूनी है,
तेरे बिना ये ज़िंदगी अधूरी है।

कभी सोचता हूँ मोहब्बत तेरी बाँहों जैसी है,
जहाँ हर दर्द मिट जाता है।
कभी सोचता हूँ मोहब्बत तेरी आँखों जैसी है,
जहाँ गहराई भी है और सुकून भी।
तेरी चुप्पी भी एक भाषा है,
जिसे मैं हर रोज़ अपने दिल से पढ़ता हूँ।

तेरी यादों के सहारे ही मैं जीता हूँ,
तेरे ख़्वाबों के सहारे ही मैं चलता हूँ।
कभी अगर ज़िन्दगी थककर रुक जाती है,
तो तेरी हँसी ही मुझे फिर से आगे बढ़ा देती है।
तेरे बिना मैं कुछ भी नहीं,
और तेरे साथ मैं सब कुछ हूँ।

कभी सोचता हूँ अगर तुझे लिखते-लिखते
मेरी ज़िन्दगी की किताब पूरी हो जाए,
तो शायद आख़िरी पन्ने पर सिर्फ़ ये लिखा होगा—
"मेरा हर लफ़्ज़ तू थी,
मेरा हर अहसास तू है,
और मेरी आख़िरी मोहब्बत भी तू ही रहेगी।"


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है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए
रोज़ जो चेहरे बदलते हैं लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
अब भी कुछ लोगों ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
ज़ीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए
दिल जवाँ, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब भी जवाँ
तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए

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*🌧️ “पापा की चप्पल” — एक सच्ची सी कहानी*

बरसात का मौसम था।
लड़का कॉलेज से घर लौटा — पूरा भीगा हुआ, गुस्से में भरा हुआ।

“पापा! कितनी बार कहा था एक छतरी दिला दो, हर बार भीग जाता हूँ!”

पापा कुछ नहीं बोले…
बस मुस्कराए और बोले,
“ठीक है बेटा, कल चलते हैं।”

अगले दिन जब लड़का तैयार हो रहा था कॉलेज के लिए,
तो बाहर पापा पहले से खड़े थे —
नंगे पाँव… हाथ में एक नई छतरी लिए।

लड़के ने चौंककर पूछा,
“आपकी चप्पल कहाँ है?”

पापा बोले,
“तू भीगता है तो बुखार हो जाता है…
मैं भीगता हूँ तो आदत है।”

लड़का कुछ नहीं कह पाया।
उस दिन छतरी से ज़्यादा
पापा के नंगे पाँव उसे भीगते दिखे।
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- Gaurav Pathak

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जिसे अपना समझा वही बेगाना हो गया,
जिसे चाहा दिल से वही अनजाना हो गया,
धोखे की राह पे चल निकले वो लोग,
हमारा भरोसा ही हमारा फ़साना हो गया।
- Gaurav Pathak

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*लोग जब पूछते हैं*
कि आप क्या *काम* करते हो,
*असल* में
वो *हिसाब* लगाते हैं
कि आपको,
*कितनी इज्जत देनी है..!!*

लोगों की फितरत पर भरोसा मत करो,
क्योंकि अक्सर मीठा बोलकर खरीदने वाले लोग अमरूदों को नमक लगाकर खाते हैं।
- Gaurav Pathak

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