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मर्द सोचते हैं कि अगर वो खामोश हो जाएं, दूरी बना लें, या ध्यान न दें.तो शायद कोई रहस्य बना रहेगा, उन्हें लगता है कि वो स्त्री फोन के पास बैठी होगी, इंतज़ार में, उम्मीद में, टूटती हुई. लेकिन हकीकत ये है हर वो घंटा जब तुम उसे नज़रअंदाज़ करते हो,वो खुद को तुम्हारे बिना ढाल रही होती है। हर अनसुनी कॉल, हर ठंडा जवाब, हर छूटी हुई बात वो सब उसे सिखा रहे होते हैं….कि वो बिना तुम्हारी आवाज़ के सो सकती है। उसकी दुनिया तुम्हारी दूरी से खत्म नहीं होती। वो खुद पर भरोसा कर सकती है तुम्हें पकड़े रहने की ज़रूरत नहीं। वो फिर से मुस्कुरा सकती है, भले ही स्क्रीन पर तुम्हारा नाम न उभरे। मर्द ये नहीं समझते एक स्त्री किसी को छोड़ती नहीं है। वो धीरे-धीरे, चुपचाप "अनलर्न" करती है। न गुस्से से, न भीख माँगकर, न आँसुओं से…बल्कि स्वीकार करके शुरू में वो हर बात को दोहराएगी, खुद को दोष देगी, ज़्यादा कोशिश करेगी, पहले मैसेज करेगी। मगर फिर…. एक पल आएगा। जब उसकी कोशिशें धीमी हो जाएंगी।उसके मैसेज आना बंद हो जाएंगे।उसका दिल कठोर हो जाएगा। और जब तक तुम्हें उसकी कमी महसूस हो,वो इंतज़ार करना छोड़ चुकी होगी।वो उम्मीद करना बंद कर चुकी होगी। वो अब तुम्हारी नहीं रही होगी। किसी ऐसी स्त्री को नज़रअंदाज़ करना जो तुमसे प्यार करती है ये तुम्हारी ताकत नहीं है।बल्कि उसकी मुक्ति की शुरुआत है। क्योंकि प्यार खामोशी में नहीं पलता। दूरी में नहीं बढ़ता उपेक्षा में नहीं टिकता। और सबसे दुखद बात ये है तुम समझते रहे कि वो टूट रही है,जबकि असल में….वो खुद को जोड़ रही थी। वो मजबूत हो रही थी। वो सीख रही थी कि एक ज़िंदगी तुम्हारे बिना भी हो सकती है जहाँ तुम्हारी कोई जगह नहीं। इसलिए संभल कर रहो—जिस स्त्री को तुम आज नज़रअंदाज़ कर रहे हो,वही स्त्री कल तुम्हारे लिए बिल्कुल अनजान बन जाएगी।
मैं कभी नहीं भूलूँगी उन्हें, जिन्होंने मुझे उस वक्त तकलीफ़ दी,जब मैं पहले ही ज़िंदगी की लड़ाई लड़ रही थी। जो मुझे टूटते हुए देख रहे थे,पर फिर भी मेरे घावों पर नमक छिड़कने से नहीं चूके। जो मेरे बोझ में अपना बोझ जोड़ गए,जब मैं पहले ही अपने दर्द के नीचे दब रही थी। मुझे याद है वो एहसास टूटने के कगार पर भी खुद को संभालने की कोशिश करना और फिर भी ऐसे बर्ताव का सामना करना,जैसे मेरा दर्द किसी मायने का न हो। मैं कभी नहीं भूलूँगी कि इंसान कितने ठंडे हो सकते हैं, कितनी जल्दी वे जज कर देते हैं वो बातें जिन्हें वे समझते भी नहीं। मैं पहले से ही अपनी लड़ाइयाँ लड़ रही थी,पर उन्होंने मुझे ऐसा महसूस कराया जैसे मुझे थकने का भी हक़ नहीं,जैसे मुझे मज़बूत बने रहना ही पड़ेगा,भले ही मैं भीतर से पूरी तरह बिखर चुकी थी। मेरे दिल में नफ़रत नहीं है,लेकिन यादें हैं… बहुत गहरी। क्योंकि कुछ सबक़ इंसानियत से मिलते हैं,और कुछ उनसे जो हमें सबसे ज़्यादा दर्द तब देते हैं,जब हमें सबसे ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है।
तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा और इस दूरी ने मुझे एहसास दिलाया कि मुझे तुम्हारी ज़रूरत कभी उतनी थी ही नहीं जितना मैं समझती थी। शुरू में अजीब लगा,हर दिन कुछ कमी-सी महसूस होती थी। न तुम्हारे संदेश आते, न तुम्हारा नाम मेरे फ़ोन की स्क्रीन पर दिखता। मैं इंतज़ार करती रही किसी कॉल का, किसी छोटे से संकेत का कि शायद अब भी तुम्हें मेरी परवाह है। लेकिन कुछ नहीं आया और धीरे-धीरे उस इंतज़ार ने मुझे मज़बूत बना दिया। वो सन्नाटा, जो पहले भारी लगता था,अब मेरा सुकून बन गया है। हमारे बीच की दूरी,जो पहले खोने जैसी लगती थी,अब आज़ादी जैसी लगती है। मैंने सोचा था, तुम्हारे बिना मेरी दुनिया रुक जाएगी पर वो चल रही है। मैंने सोचा था, तुम्हारे प्यार के बिना मैं अधूरी रहूंगी पर मैं पूरी हूं। अब समझ आया कि प्यार सिर्फ़ किसी और से नहीं,ख़ुद से भी किया जा सकता है।
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