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Manvika Shveta

Manvika Shveta

@manvikashveta451717


उन्हीं जानी-पहचानी राहों में,
आज भी जब गुजरता हूँ मैं,
मुड़कर देखती हैं वो मुझे —
इस आस में कि कहीं भुला तो नहीं...

मैं खुद पर ही हँस पड़ता हूँ,
ये देख — अंजान बनता हूँ,
कि अब भी गुमनाम ही हूँ।

पहले भी राहें कुछ कहती थीं,
अब मेरी ख़ामोशी ही ज़ुबान बन गई —
उन्हीं जानी-पहचानी राहों में...

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कुछ कहना है...
क्या तुम सुनोगे मुझे?
ख़याल तो बहुत सारे हैं।
क्या तुम बनोगे मेरे?
क्या मुझे याद रखोगे?
क्या मुझे सुनकर महसूस करोगे?
कुछ तो कहना है...

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ना कोई वादे थे,
ना कोई कसमें थीं,
ना मिलने की फरियाद थी,
ना बिछड़ने का कोई ग़म था...

बस, जाते हुए उनकी आंखों में
ख़ुद का ही अक्स देख कर
हमें खुदा मिल गया...
- Manvika Shveta

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खामोशी मेरी जुबां थी,
आज वो आवाज़ बन गई...
चाहती थी जिसको बेवजह,
वही अब साज़ बन गई...
और मैं, बस एक कहानी बन गई...

"मैं भी टूटता हूँ, बस शोर नहीं करता,
हर दर्द हँसी में छुपा लेता हूँ।
कसूरवार तो नहीं हर बार,
फिर भी इल्ज़ाम मैं ही सहता हूँ…"

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