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आऊं जो तेरे रूबरू मैं अपनी पहचान पा लेती हूं। तू मेरे हर रूप से वाकिफ है। जो दुनिया से परे है वह तू देख पता है। एक तू ही तो है जो मेरा हर रंग समझ पाता है। तेरी सूरत तो नहीं देखी पर तू कुछ मुझसा ही लगता है। मैं जिस हाल में आऊं तेरे सामने तू मुझे वैसा ही दिखता है। यह तारीफ है तेरी कुछ मेरी बुराई है। तू दर्पण है तेरी फितरत है औरो सा ढलना। मैं तो इंसान हूं खुद को तुझसा कर नहीं पाती। बस यही एक हुनर मैं तेरा हासिल कर नहीं पाती।
हर्फ़ भी हश्र पे मेरे खामोश हो गए, देखो! उनकी आंखों में हया का एक कतरा भी ना छलका। - khwahishh
मिटा दिए हैं वह सारे निशान जो तुझ तक पहुँचने का रास्ता बनाते थे अब तेरी गली से दोबारा हम ना गुजरेंगे। - khwahishh
यूँ लिख कर मिटा देते हैँ, ख्वाहिशों को पन्नों से, जैसे कोई अरमान कभी दिल मैं जगा ही ना हो। - khwahishh
मैं जख्मो के लिबास नहीं पहनता, शायद इसलिए, कोई मेरी खैरियत नहीं पूंछता। - 𝓴𝓱𝔀𝓪𝓱𝓲𝓼𝓱𝓱
कश्ती उतार दी है तूफानी लहरों मे अब खुदा जाने के क्या होगा, या तो डूबेंगे बिच भबर मे या सफर जिंदगी का पार होगा। - khwahishh
"सुखी आँखों से रोना और बे बक्त हंसना, ये दो बड़े अहम् निशां है, दीवानो के!" - khwahishh
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