Quotes by Rajeev Namdeo Rana lidhori in Bitesapp read free

Rajeev Namdeo Rana lidhori

Rajeev Namdeo Rana lidhori

@rajeevnamdeoranalidhori247627


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✍️ राजीव_नामदेव 'राना_लिधौरी'
       संपादक 'आकांक्षा' पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001

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महाराजा छत्रसाल पर बुन्देली कवि गोष्ठी-

*(वनमाली सृजन केन्द्र व म.प्र.लेखक संघ का संयुक्त अयोजन)

टीकमगढ़// साहित्यिक संस्था वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़ एवं म.प्र. लेखक संघ जिला इकाई टीकमगढ़ के संयुक्त तत्तावधान में माहराजा छत्रासाल पर केन्द्रित कवि गोष्ठी ‘आकांक्षा पब्लिक स्कूल टीकमगढ़’ में आयोजित की गयी। कवि गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ व्यंग्यकार अजीत श्रीवास्तव ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ.नरेन्द्र मोहन अवस्थी (पूर्व प्राचार्य एक्सीलेंस कालेज) एवं विषिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ बुंदेली कवि श्री शोभाराम दांगी ‘इन्दु’ (नदनवारा) उपस्थित रहे।
गोष्ठी की शुरूआत सरस्वती पूजन दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात गीतकार वीरेन्द्र चंसौरिया ने गीत सुनाया-
रइयो जीवन में हिलमिलकर। मिलियों सबइ से तुम हँस-हँसकर।।
गोविन्द्र सिंह गिदबाहा (मडाबरा,उ.प्र.़) ने कविता पढ़ी-ककर कचनाए,मोरपहाड़ी।
छत्रसाल जन्में जितै अवतारी।।
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने दोहे सुनाए- छत्रसाल राजा हुए बुंदेला थे वीर।
बरछी जिनकी तेज थी, ‘राना’ खुद शमशीर।।
हरबल सिंह लोधी’ ने रचना पढ़ी -
मुगलो के काल, महाराजा छत्रसाल,
मुगल सेना में मची खलबली, छत्रसाल जीहते महाबली।
शोभाराम दांगी ‘इंदु’(नदनवारा) ने पढ़ा - चम्पतराय के घर में जन्में,वीर छत्रसाल महाराज।
चार मई सोलह सो उन्चास को, बेटा छत्रसाल महाराज।।
यदुकुल नंदन खरे (बल्देवगढ़) ने पढ़ा-
जिसने फूलों की माला जयमाला अपनी हाथों पहिनाई थी।
रामसहाय राय (रामपुर) ने पढ़ा-
हम बुन्देली के ओरछा के पानी के,
जितै विराजै राम रजधानी के।
झाँसी की रानी,वीर बुन्देला मधुकर शाही तिलक धारी के।।
स्वप्निल तिवारी ने सुनाया-
बाणों की शैया पर खड़ी प्रतिमूर्ति में,
गाजी जीवंत मानवीय श्रृंख्ला।
परिवर्तन का उद्घोष संदर्भ अभिलाषा,
प्रतापी सुर प्रतिपलगाता हरित प्रंजला।।
कमलेश सेन ने पढ़ा-
गोरी तोरे नैना जादू सो कर गये,
जब से निहारे सो दिल में उतर गये।।
सलीम खान ने ग़ज़ल कही -
जुल्म जब किरोन का बेबस परे ढाया जाएगा।
खत्म करने को उसे मूसा को लाया जाएगा।।
एस.आर.‘सरल’ ने पढ़ा-
बुन्देली माटी के हीरा छत्रसाल थे वीर महान।
डटकर युद्ध लड़े मुगलों से राखी बुन्देलो की शान।।
अनवर खान ने ग़ज़ल कही-
जुगनुओं से भी रोशनी कम है।
अब चराग़ों की सी जिन्दगी कम है।।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव‘पीयूष’ ने रचना पढ़ी - शीतल सुखद अगन की रजनी मन में अगन लगाह।।
ने रचना पढ़ी -
सरदार पटेल नेता वकील किसान थे।
बसीर फ़राज़ ने ग़ज़ल कही-
शहर का शहर यहाँ काँप रहा है डर से।
कौन निकले है क़फ़न बाँध के अपने सर से।।
इनके अलावा प्रमोद गुप्ता,शकील खान, डी.पी.यादव आदि ने भी अपनी रचनाएँ सुनायीे। कविगोष्ठी का संचालन कमलेश सेन ने किया तथा सभी का आभार प्रदर्शन अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ ने किया।
अंत में वरिष्ठ साहित्यकार श्री एन.डी.सोनी के निधन पर दो मिनिटि का मौन रखकर सभी ने उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित की।

*रपट-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’*
टीकमगढ़(म.प्र.) मोबाइल-9893520965

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राना लिधौरी केहिंदी हाइकु:-

*कैसे मिलत :-*

*1*

हम रीझत,
वे हमसे खीझत।
कैसे मिलत।।
***

*2*

प्रेम कैसे हो,
बात नैनन से ही।
वे तो करत।।
***

*3*

मेरे हृदय ,
प्रेम पुष्प खिलत।
कैसे मिलत।।
***

*4

बात उनसे,
कहत न बनत।
प्रेम करत।।
***

*5*

हम जलत,
नित प्रेम अगन।
अब मरत।।
***
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
#######

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राना लिधौरी'के हाइकु :-

1*

नारी जगत
लज्जा बचायें कैसे।
घूरती आंखें।।
***

*2*

घूमते गिद्ध
करने को शिकार।
अकेली देख।।
   ***

3
आज की नारी,
पैसों की दम पर।
हो अंहकारी।।
***
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
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नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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राना लिधौरी की हाइकु कविता :- बड़े शहर

*1*

अपनापन,
ढ़ूंढ़े नहीं मिलता।
बड़े शहर।।
***

   *2*

जीना मुश्किल,
बढ़ती महंगाई।
बड़े शहर।।
***

*3*

होते कहर,
रोज़ ढ़ाते सितम।
बड़े शहर।।
***

*4*

खूब है पैसा,
मिलता यहां पर।
बड़े शहर।।
***

*5*

दम निकले,
खून चूस लेते हैं।
बड़े शहर।।
***
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
संपादक-'अनुश्रुति'त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
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व्यंग्य  :- इच्छाधारी कवि
                 (- राजीव नामदेव 'राना लिधौरी')

हम सदियों से अपने बुजुर्गों से यह सुनते आ रहे हैं कि इच्छाधारी नाग होते हैं कई लोग इन्हें देखने का झूठा दावा भी उसी प्रकार से करते हैं जैसे गधे के सींग होते हैं। या आदमियों की पूंछ होती है अब ये बात अलग है कि यह पूंछ अदृश्य होती है जो कि मालिक/नेता रुपी विशेष शक्ति शाली लोगों को ही दिखाई पड़ती है।
ठीक इसी प्रकार ईच्छाधारी कवि होते हैं जो कि सुनने वाले और छापनेवाले के अनुसार अपना और अपनी उसी पुरानी कविता को मैकप करके उसे सामने परोसने में माहिर होते हैं।
कार्यक्रम संयोजक के सामने तो कवि इतने जल्दी रुप बदल लेते हैं कि सामने वाला यह सोचकर यह जाता है कि इससे बड़ा प्रशंसक तो मेरा कोई और हो ही नहीं सकता।
बैसे इच्छाधारी कवि पीछे लगे बेनर को देखकर ही अपना रुप बदल लेते हैं।
ऐसे ही कवि ने तो एक कविता को रचकर उसमें कुछ शब्द को खाली स्थान की तरह प्रयोग करके उसे नयी विधा ही करार दे दिया है और मजे कि बात यह है कि कुछ प्लास्टिक के चमचे झूठी प्रशंसा कर उनसे मंचासीन होने या सम्मान पत्र हथियाने में ठीक उसी प्रकार सफल हो जाते हैं जैसे सब्जी बाजार में गाय, बैल द्वारा सब्जी पर मुंह मारने पर डंडे खाने के बाद भी थोड़ा बहुत तो मुंह में दबाकर भागने में सफल हो जाते हैं।
    बस फिर कोई भी हो वह शब्द उनकी कविता में खाली भरने की तरह फिट हो जाता है भले ही अर्थ का अनर्थ हो जाये इनकी बला से इन्हें  तो अपनी कविता सुनाकर बह फोटो खिंचवाना है और रील बनाने से मतलब है। भले ही मोबाइल पुराना हो। इसे हम बुढ़ापे में सठियाना कह सकते हैं।
ये बहुत बड़े इच्छाधारी कवि हैं जो पैर तो कब्र में लटके हैं लेकिन चार कविता लिखकर ही प्रसिद्धि की वैतरणी पार करना चाहते हैं।
ये इच्छाधारी कवि विशेष पर्व, जंयती आदि अवसर पर अपने एवं अपनी एक ही कविता का रूप बदलकर चापलूसी और झूठी प्रशंसा की चासनी में लपेट कर सुना कर अपनी आत्मा के उद्धार में लगे रहते हैं। भले ही सुनने वाले पचास बार इसे सुन चुके हैं।
कुछ इच्छाधारी कवियों में संचालन करने की भी तीव्र इच्छा ठीक उसी तरह होती है जैसे शुगर के मरीज को मीठा खाने कि या बीपी के मरीज को नमकीन खाने। भले ही संचालन की एबीसीडी नहीं जानते हो उन्हें तो बस माइक पकड़ने से मतलब है।
बैसे तो इच्छाएं अनंत होती है जितनी पूरी करो उतनी ही मंहगाई की तरह बढ़ती ही जाती है।
कुछ इच्छाधारी वरिष्ठ कवियों को सींग कटाकर बछड़े बनने की इच्छा होती है ताकि वे मंच पर कवयित्रियों को इंप्रैस कर सके भले ही उन्हें दुलत्ती खाना पड़े।
वहीं कुछ नवोदित इच्छाधारी कवि तो शीघ्र ही बड़ा बनने की इच्छा लिए फिरते रहते कविता की नर्सरी पढ़ी नहीं और सीधे कालेज में (एम. ए.) के लिए एडमिशन फार्म भरने लगे और कुछ तो इनसे भी दो कदम आगे है वे डायरेक्ट बिहार से डॉ. की डिग्री हथिया लाते हैं।
ज्यों ज्यों कवि वरिष्ठ या कहें कि गरिष्ठ होता जाता है त्यों-त्यों उसकी इच्छाएं मंहगाई की तरह बढ़ती जाती है।
जैसे आपने को वरिष्ठ कहलाने की, कवि गोष्ठी में अध्यक्षता करने की, मुख्य अतिथि के साथ फोटो खिंचवाने की, बार-बार सम्मानित होने की जैसी अनंत इच्छाओं को दिल में रखे कब ऊपर चलें जाते हैं पता नहीं चलता।
मनुष्य यदि अपनी इच्छाओं पर काबू पा सके तो उससे सुखी आदमी संसार में कोई नहीं होगा।
लेकिन कवि अपनी  अनंत इच्छाओं को धारण किये हुए स्वयं को उन्हें पूरा करने में लगा रहता है। कुछ स्वयं भू महाकवि तो इसके लिए वकायदा अपने चार-छह चेले लगा लेते हैं वे इनकी अधूरी इच्छाएं पूरी करने को प्रयास करते करते खुद भी कब इच्छाधारी कवि बन जाते हैं पता ही नहीं चलता है।
कुछ इच्छाधारी कवियों की इच्छाएं पूरी करने में बेचारे संयोजक की हालत ऐसी हो जाती है कि न तो निगलते बनता है और न ही उगलते।
ये वरिष्ठ इच्छाधारी अपने वरिष्ठ होने का पूरा पूरा लाभ उठाते हुए अपने छैला और संयोजकों पर जबरन जबाब बनाकार अपनी अनेक इच्छाएं पूरी करवा लेते हैं।
बैसै तो इच्छाधारी सांपों की विशेष पूजा नागपंचमी को की जाती है लेकिन इच्छाधारी कवियों की पूजा साठ, पचहत्तर अस्सी या सौ साल के होने पर की जाती है अथवा यदि कोई शासकीय सेवा में रहे तो सेवानिवृत्ति के दिन की जाती है।
मजे की बात ये है कि चेला और नये कवि इन वरिष्ठ इच्छाधारियों की इच्छाएं इस लालच में पूरी करते रहते हैं कि शायद इनके द्वारा कभी 'मणि' मिल जाए लेकिन ये भी बहुत घाघ होते हैं। बीच बीच में समय समय पर मणि के दर्शन तो कराते रहते हैं लेकिन मरते दम तक किसी को देते नहीं है और हर चेले को यही भ्रम बना रहता है कि मणि तो ये केवल मुझे ही देंगे।
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✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
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हिंदी-दोहे बिषय- लाठी

लाठी के गुण जानिए,लाठी है अनमोल।
तेल पिलाकर जाइए,कहीं बोलने बोल।।

लाठी वाले का रहा,सदा भैंस अधिकार।
यही कहावत सत्य है,#राना करे विचार।।

लाठी भी है आसरा,बूड़े जाने मोल।
चलते उसको टेककर,बोलें मन के बोल।।

लाठी पर जब खेत में, देते पुतला टाँग।
पास न आते ढ़ौर तब,चल जाता है स्वाँग।।

लाठी सीधा शस्त्र है,लेना इसको मान।
#राना अवसर पर बजे,कर के खट-खट गान।।
***
✍️ राजीव नामदेव"राना लिधौरी"
           संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
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