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कुछ चीजों को छोड़ देना बेहतर होता हैं क्योंकि हर पकड़ सुकून नहीं देती.. - sonam kumari
“ख़ामोशी का शोर” मैं अपनी भी ना हो सकी, फिर दूसरों से क्या उम्मीद रखती हूँ… दिल की हालत तो खुद भी समझ नहीं पाती, लेकिन दिमाग को समझाती रहती हूँ… चलते-चलते, ज़िंदगी के उस अजीब मोड़ पर आ गई हूँ… दिमाग को संभालते-संभालते, खुद ही न समझ हो जाती हूँ… कभी दिल रूठा रहता है, तो कभी दिमाग थक कर चुप हो जाता है… ये कैसी जंग मैं खुद से कर बैठी हूँ… जहाँ परिणाम का इंतज़ार करती रह जाती हूँ… ये ख़ामोशी मुझे खाती जा रही है, हर बार ज़िंदगी पर एक नया सवाल उठती जा रहा है… क्या मैं ये हूँ, जो बनती जा रही हूँ?? -Sonam kumari
🌙 "औरत की महक" रात को बैठे-बैठे एक ख़याल आया, औरत का घर शायद किसी सपने में ही सिमट पाया। ‘रात की रानी’ तो कहते हैं एक फूल को लोग, पर घर को महकाने का काम — औरत करती है हर रोज़। - sonam kumari
✨ खुद से इश्क़ ✨ मैं खुद से ये कैसा इश्क़ करती हूँ, कभी हँसती हूँ तो कभी रोती हूँ। सब पूछते हैं — “तू चाहती क्या है?” मन कहता है — “सुकून चाहिए।” और मैंने तुझसे माँगा ही क्या है, ना कोई दौलत, ना कोई शोहरत, बस खुद में सुकून ढूँढती हूँ मैं। ना किस्मत से कोई राहत माँगी, खुद से तो बस इतना ही चाहा — थोड़ा सा सुकून, और अपने होठों पर मुस्कान का साया। कभी ख़ामोश रहकर भी बहुत कुछ कहती हूँ, इतने लोगों के बीच रहकर भी तन्हा रहती हूँ। ये कैसा इश्क़ है मुझको खुद से, जिसमें मैं दुनिया से ज़्यादा खुद से लड़ती हूँ। -Sonam kumari
"ज़िंदगी की राह" ट्रेन के चलने से पटरियाँ काँप चुकी हैं, सोचा — क्या यूँ ही ज़िंदगी भी अपनी राह से भटक चुकी है? चलो, हमने सोच–सोच कर सोच लिया, क्या पता, ज़िंदगी किसी मंज़िल के रूप में हमें मिल चुकी है.. - sonam kumari
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