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PANKAJ THAKUR

PANKAJ THAKUR

@unspokenwordskp


अब कुछ कहना चाहता हूं — प्रकृति से, खुद से, इस जीवन से।
दिल की उमंगों को
अब मैं अपनी कल्पना के भीतर नहीं,
उससे बाहर जीना चाहता हूं।

मन के अंदर जो जाले बुनें हैं वर्षों से,
अब उन्हें पूरी तरह मिटाना चाहता हूं।

कब तक यूं ही
शब्दों के जाल में उलझा रहूंगा?
अब इस उलझन से
मैं खुद को आज़ाद करना चाहता हूं।

जिन निर्जीव कल्पनाओं को
अब तक अपने शब्दों से भिगोता रहा,
अब उन्हें संजीव करके
शब्दों की दुनिया से बाहर लाना चाहता हूं।

मेरे हर शब्द का
अब मैं मोल चाहता हूं —
अब मैं अपनी कलम को
एक नई पहचान देना चाहता हूं।।

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