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किसी न किसी के शब्द तो यदा कदा चुभते ही रहते हैं । जिस दिन किसी का मौन चुभ जाए तो सँभल जाना । उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
मुझे ‘मैं’ पसंद हूँ । यह बिंदी ना लगाया करो , यह तुम पर जँचती नहीं । गहरे रंग ही पहना करो , यह साड़ी तुम पर फबती नहीं ॥ तो सुनो ... यह बिंदी मैंने लगाई है , तो मुझे तो जँचती ही होगी। यह साड़ी भी मैंने ही खरीदी है, पहनी है तो मुझे पसंद ही होगी ॥ तुम्हें लाल रंग पसंद है तो , पीला रंग खराब है क्या ? तुम शौक़ीन हो ‘अंग्रेज़ी’ में बड़बड़ाने के, तो ‘हिंदी’ मेरी बेमिसाल नहीं है क्या ? इतना तो तुम्हें भी पता ही होगा कि , नहीं मिलते दो लोगों के उंगलियों के भी निशान । फिर कैसे हो सकती है ? सभी की पसंद नापसंद एक समान । । मेरे शौक को ,मेरे पहनावे को, मेरे खाने को , मेरे गाने को , यूँ बेवजह जज ना तुम किया करो । खुद में भी मस्त रहना सीखो , हरदम दूसरों में नुक्स निकालने का कष्ट ना तुम किया करो ॥ क्या पता ... तुम्हारी कोई पसंद भी , करोड़ों में से हर एक को रास नहीं हो। । तो क्या ? आज तक जो तुम खुद को ‘ख़ूब’ समझते आए हो , मतलब, तुम भी कुछ खास नहीं हो। उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
एक बार समंदर के किनारे एक केकड़ा अपने पैरों के सुंदर निशान बनाता हुआ चल रहा था । वह बार - बार पीछे मुड़कर अपने पैरों से बनाए हुए निशानों को देख रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था । वह यह सोचकर खुश हो रहा था कि उसके पैरों के निशान सबसे सुंदर हैं । इतने में ही समंदर की एक तेज़ लहर आई और उसके सुंदर निशानों को मिटा दिया । यह देखकर केकड़े को बहुत बुरा लगा और वह समंदर को भला - बुरा कहने लगा । उसने समंदर से कहा कि वह उसकी कला से चिढ़ता है इसलिए उसने उसके पैरों के निशानों को मिटा दिया । समंदर मुस्कुराया और कहा -“कुछ मछुआरे तुम्हारे पैरों के निशानों का पीछा करते हुए तुम्हें पकड़ने आ रहे थे इसलिए मैंने उन निशानों को मिटा दिया ताकि वे तुम तक न पहुँच सके और तुम्हारी रक्षा हो सके ।” समंदर की बात सुनकर केकड़े को अपने व्यवहार पर पछतावा हुआ । कई बार हम दूसरों के बारे में जाने बिना उनके प्रति गलत धारणा बना लेते हैं जिसके लिए हमें बाद में पछताना पड़ता है ।
जिन्हें पिंजरबद्ध पंछी रखने का शौक हो उन्हें उड़ते हुए पंछी भला कैसे अच्छे लगेंगे ? - उषा जरवाल
ऊँची उड़ान भरने के लिए किसी की इजाज़त क्यों चाहिए ? पंख तुम्हारे अपने हैं और आकाश किसी का नहीं होता ! उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
जिन तारों में करंट नहीं होता, लोग अकसर उन पर कपड़े सुखा दिया करते हैं । इसलिए व्यक्तित्व में थोड़ा - सा करंट जरुरी है । उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
नियंत्रण बहुत आवश्यक है । यदि आय कम हो तो व्यय पर और जानकारी कम हो तो शब्दों पर । उषा जरवाल एक ‘उन्मुक्त पंछी’
सर्वे परिवर्तिता: । अधुना मम समय:। (सभी बदल चुके हैं । अब मेरा समय है ।) उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’
मुझे ये मत बताओ कि उन्होंने मेरे बारे में तुमसे क्या कहा ? मुझे बताओ कि वे तुम्हें बताने में इतने सहज क्यों थे ? - उषा जरवाल
बुरे वक्त में कंधे पर रखा गया हाथ कामयाबी की तालियों से ज्यादा कीमती होता है । - उषा जरवाल
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