Satya - 11 in Hindi Fiction Stories by KAMAL KANT LAL books and stories PDF | सत्या - 11

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सत्या - 11

सत्या 11

दीवार घड़ी में दिन के बारह बजने में कुछ क्षण शेष थे और वार्ड के प्रवेष द्वार पर लोगों की धक्का-मुक्की बढ़ गई थी. जैसे ही मिनट की सुई 12 पर पहुँची, गेट खुली. लोग सत्या को धकियाते हुए अंदर जाने लगे. सत्या भी भीड़ के साथ वार्ड में आया. मीरा के पास गोमती खड़ी उसके बालों में कंधी कर रही थी.

सत्या ने पूछा, “कैसी तबियत है अभी?” और फलों का पैकेट गोमती को दिया.

गोमती, “ये तो कुछ खाता ही नहीं है.”

सत्या “मीरा जी. खाना तो होगा. जल्दी से ठीक होकर घर चलना है. रोहन और खुशी आपके बिना बहुत उदास हैं.”

मीरा ने कमज़ोर आवाज़ में पूछा, “आए नहीं?... बच्चे?”

सत्या ने जवाब दिया, “दोनों बहुत ज़िद कर रहे थे आने के लिए. लेकिन हॉस्पिटल में बच्चों को आने नहीं देते हैं. वो मेरा दोस्त संजय है न, उसकी पत्नी गीता के पास हैं दोनों. कल से सविता के पास रहेंगे. स्कूल छूट गया है न. सविता उनको स्कूल भेज कर यहाँ आ जाएगी. दोपहर में हम उनको फिर से गीता भाभी के पास छोड़ देंगे और शाम को घर जाते समय सविता के साथ भेज देंगे........ आपको अच्छा होकर जल्दी-से-जल्दी घर लौटना होगा. तब तक ऐसे ही भटकेंगे बच्चे.”

मीरा ने मुँह फेर लिया और सिसकियों की आवाज़ के साथ उसके कंधे हिलने लगे.

गोमती ने प्यार से डाँटा, “ऐसे रोने से और बीमार हो जाएगा. अच्छे से खाना पीना करो और ठीक होकर घर चलो. हम लोग भी काम-धंधा छोड़कर यहाँ तुमरा सेवा में लगा है. जिद छोड़ो और खाओ ...लो..”

गोमती ने उसके मुँह में अंगूर का एक दाना डाला, जिसे मीरा ने बेमन से होठों के बीच पकड़ कर मुँह के अंदर कर लिया.

गोमती ने कहना जारी रखा, “गोपी कहता था, बच्चा लोग को पढ़ा-लिखा कर आफिसर बनाएगा. तुम ठीक नहीं होगा तो कौन आफिसर बनाएगा?”

सत्या ने चौंक कर एक बार गोमती को देखा और फिर मीरा का चेहरा देखने लगा.

थोडी देर बाद सत्या इत्मिनान से मीरा को समझा रहा था, “गोपी का सपना ज़रूर पूरा होगा. आपको ही पूरा करना है गोपी का सपना. अब आपको मरने की भी फुर्सत नहीं है. बहुत काम है. जल्दी से ठीक होकर घर चलिए... सुन रही हैं न? बच्चों को पढ़ा-लिखा कर आदमी बनाने के बाद ही हमलोग अपने बारे में सोच सकेंगे. गोपी अब नहीं है. लेकिन उसका सपना है, जिसको पूरा करना ही पड़ेगा.”

सत्या जाने के लिए उठा. उसने गोमती से कहा, “गोमती मौसी हम चलते हैं. तुम समझाओ इनको. गोपी की आत्मा तभी खुश होगी जब खुशी और रोहन पढ़ लिख लें और ज़िंदगी में कोई मुकाम हासिल करें. ये मर गईं तो बच्चे सड़कों पर भीख माँगेंगे और गोपी की आत्मा कभी माफ नहीं करेगी हम लोगों को.... समझाओ इनको.”

सत्या ने जानबूझ कर मीरा के दिमाग को झकझोरने के लिए इतने बुरे ढंग से कहा. इसका भरपूर असर मीरा पर हुआ. विचारों के झंझावात में वह ऐसी उलझी कि अंगूर खाते हुए उसका मुँह जल्दी-जल्दी चलने लगा.

सत्या ग़मगीन मुद्रा में संजय और गीता को बता रहा था, “मीरा समझती है कि उसके कारण गोपी शराब पीकर गिरा और मर गया और इस अपराध-बोध के कारण वह अपनी जान देने पर तुली हुई है.”

गीता और संजय इस नई बात पर चौंक गए. सत्या ने आगे कहा, “उसको हम कैसे बताएँ कि गोपी को हम मारे हैं. अब किस्मत का खेल देखो, उसे कैंसर हो गया है. .... हमको ख़ुद अब मर जाने की इच्छा हो रही है.”

“ऐसी बात मत करो,” संजय ने दार्शनिकता के साथ कहा, “तुम जो कुछ भी कर सकते थे कर रहे हो. बाकी भगवान की जैसी इच्छा. हम कर ही क्या सकते हैं.... और फिर अभी रिपोर्ट तो आई नहीं है. क्या पता कोई मामूली बीमारी हो.”

गीता ने भी झट से अपने विचार रखे, “तुमी ऐक टी काज कॉरो. एई पास में एक गाँव है, भोलाडीह. वहाँ एक बाबा जड़ी-बूटी से कैंसर का एलाज करता है. काल शॉकाले ट्रेन धॉरे ओई खाने चॉले जाओ और दाबा ले आओ.. बहुत लोग उसका दाबाई से भालो हुआ है. मीरा को भी फायदा होगा.”

संजय ने उसे टोका, “रुक जाओ, पहले पता तो चले कि कैंसर है भी या नहीं. गीता तुम बच्चों को तैयार कर दो.”

गीता उठ कर अंदर चली गई. तब सत्या ने संजय को बताया कि पिछली रात फिर से उसने सपना देखा है. जिस पत्थर पर गोपी मरा पाया गया था, उसीपर खुशी और रोहन बैठे अपने माँ और पाप को पुकार कर ज़ोर-ज़ोर से रो रहे थे. सत्या की आँखों के चारों ओर बेबसी का कालापन फैला था. संजय भी काफी चिंतित हो गया.

“दिल छोटा न करो सत्या. जब सज़ा भुगतने निकले हो तो कष्ट और मुसीबतें तो आएँगी ही. और कुछ नहीं, भगवान तुम्हारी परीक्षा ले रहे हैं. सामना करो इसका,” संजय ने कहा.

गीता बच्चों को लेकर कमरे में आई. एक लंबी साँस लेकर सत्या उठ खड़ा हुआ.

सत्या के जाने के बाद संजय ने गीता से सत्या की हालत के बारे में चिंता प्रकट की तो गीता ने अपने विचार रखे कि यदि भगवान की इच्छा से मीरा को कैंसर हो ही गया तो यह बात एक तरह से सत्या के लिए अच्छी ही होगी. संजय ने गीता को ज़ोर से डाँटा तो उसने अपनी दलील दी कि भगवान यदि मीरा को उठा ही लेता है तो सत्या को उसके पागलपन से छुटकारा मिल जाएगा. बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में डालकर वह ज़िंदगी में आगे बढ़ पाएगा, शादी ब्याह करेगा और अपना संसार बसाएगा. वरना तो मीरा और उसके परिवार के लिए वह अपना जीवन बर्बाद कर रहा है.

मीरा के लिए ऐसी बात सोचने के लिए संजय गीता पर नाराज़ तो हुआ, किंतु उसकी बातों में दम था. फिलहाल सबको गीता की रिपोर्ट का इंतज़ार था.

सत्या के कमरे में सविता दोनों बच्चों के कंधों पर हाथ रखकर खड़ी थी और सत्या कुर्सी पर बैठा उसकी बातें सुन रहा था. सविता कह रही थी, “आप चिंता न करें. हम संभाल लेंगे. आज से बच्चे मेरे साथ ही सोयेंगे. सुबह में स्कूल भेजकर हम ह़ॉस्पिटल चले जाएंगे. ये स्कूल से लौटेंगे तो पड़ोस की लालती इनको खाना खिला देगी और मेरे लौटने तक संभालेगी. ऑफिस के बाद आप गोमती मौसी को लेकर हॉस्पिटल चले.....”

“और शंकर?..... शंकर कुछ नहीं कहेगा?” सत्या ने पूछा.

“उस दिन के बाद वह एकदम भीगी बिल्ली बन गया है. आज भी पीकर आया और चुपचाप सो गया. उसकी चिंता मत कीजिए. वह बरामदे में सोता है.”

“चिंता तो रहेगी,” सत्या ने उस दिन की घटना की ओर इशारा किया, “... हम तो दरवाज़ा अंदर से बंद करके ही सोएँगे.”

सत्या होठों के बीच मुस्कुरा रहा था. सविता उसके पास आकर उसके पैरों पर झुक गई और फिर हाथ जोड़कर बोली, “हमको माफ कर दीजिए सत्या बाबू. हमसे बड़ी भारी भूल हो गई. मेरा मन बहक गया था. अब ऐसा कुछ नहीं होगा. आप हम पर विश्वास कीजिए.”

रोहन रोने लगा, “माँ कहाँ है?...हमको माँ के पास जाना है...”

सविता और खुशी उसे चुप कराते हुए कमरे से बाहर चले गए. सत्या ने खाना खाया और दिन भर की चिंता और थकान से निढाल होकर बिस्तर पर पसर गया. उसे जल्द ही नींद आ गई. अभी ठीक से भोर हुई नहीं थी कि वह नींद में बड़बड़ाने लगा. उसने दो बार बेचैनी से करवट बदली और अचानक उठ बैठा.

पसीने से लथपथ, घबराया हुआ. आँखें खोलकर उसने इधर-उधर देखा. लगता था सपने में उसने फिर से गोपी को देखा था. थोड़ा सामान्य हुआ तो उसने मेज़ पर रखी बोतल से पानी पीया. फिर कमरे में टहलने लगा. टहलते-टहलते वह कमरे से बाहर चला गया. उसने गेट खोलकर गली में कदम रखा. सिर झुकाए चलते-चलते वह बस्ती के बाहर सड़क पर आ गया. उसने चलना जारी रखा. उन बोल्डरों के पास आकर वह रुका. जिस पत्थर पर गोपी गिरा था, वह उसपर बैठ गया. सिर झुकाकर ग़मगीन मुद्रा में वह काफी देर तक वहाँ बैठा रहा. फिर वह सुबकने लगा, “ओ माँ गो.....ओ माँ...ओ माँ..... ”

वार्ड में आते ही सत्या ड्यूटी रूम में डॉक्टर के टेबल के पास आकर खड़ा हो गया. उसके हाथ में मीरा की रिपोर्ट का कागज़ था. दूसरे किसी मरीज़ के संबंधी से निपट कर डॉक्टर ने सत्या के हाथ से कागज़ लिया, रिपोर्ट पर नज़र दौड़ाई. सत्या के चेहरे पर चिंता के भाव थे, मुट्ठियाँ भिंची हुईं. डॉक्टर ने सिर उठाकर सत्या को देखा और लापरवाही से कहा, “ठीक है, सेम दवा चलेगी. आज भर देख लेते हैं, कल डिस्चार्ज कर देंगे. घर पर रहकर छः महीने दवा खानी होगी और बीच-बीच में दिखाने आना होगा.”

“क्या बीमारी है डॉक्टर साब?” सत्या ने ऐसे पूछा जैसे उसके गले में कुछ अटका हुआ हो.

“टी. बी है.”

“कैंसर का कोई ख़तरा तो नहीं है न?”

“बार-बार पूछने से टी. बी कैंसर नहीं हो जाएगी,” डॉक्टर उठा और अपनी मोबाईल फोन पर बात करता हुआ चला गया. सत्या ने राहत की साँस ली. अपने दोनों हाथ छाती पर रखकर वह बुदबुदाया, “थैंक गॉड, इट्ज़ नॉट कैंसर.”