Muk Prem in Hindi Moral Stories by Nisha Nandini Gupta books and stories PDF | मूक प्रेम

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मूक प्रेम

मूक प्रेम

(कहानी)

आज लगभग एक साल हो गया उसको देखते हुए वह प्रति दिन प्रातः काल ठीक आठ चालीस पर उसके घर के सामने से गुजरता था कुछ देर रूकता उसे देखता फिर लाठी ठक ठकाता हुआ चल देता । कौन कहता है बुढापे में भावनाएं मर जाती है । मेरे साथ वाले घर में एक यही कोई सत्तर पिच्चहत्तर साल की एक बूढ़ी माँ अकेली रहती थी। पति की मृत्यु हो चुकी थी । बेटा विदेश में अपने परिवार के साथ रहता था। एक बेटी है जो अपने परिवार के साथ मैसूर में रहती है उसका पति किसी अच्छी कंपनी में इंजिनियर था । साल में एक बार बच्चों की गर्मियों की छुट्टियाँ होने पर वह माँ के पास आती थी । उसके पिता श्री बसंत देव चौधरी सरकारी नौकरी में थे इसलिए श्रीमती चौधरी को अच्छी खासी पेंशन मिलती थी । घर अपना है किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं है पर अकेलापन बहुत खलता है । बेटा तो तीन चार साल में एक बार आता है। चार साल पहले पिता की मृत्यु पर आया था।बेटी चाह कर भी नहीं आ पाती है। बच्चों की पढ़ाई और फिर बूढ़े सास ससुर को अकेले छोड़ने का प्रश्न आ जाता है । सास ससुर के रहते वह अपनी माँ को भी अपने घर नहीं बुला सकती है । बस हर दिन फोन करके उनके हाल चाल पूछ लेतीं है। श्रीमती प्रेमा चौधरी शुरू से ही एक सीधी.सादी गृहणी रही है । बच्चों व पति की सेवा को ही उन्होंने अपना सच्चा धर्म बनाया था। वह कभी बाजार तक भी अकेली नहीं गईं थीं।

पति की मृत्यु के बाद बेटी ने उन्हें पेंशन का कार्यालय दिखाकर वहां के लोगों से परिचित करवा दिया था प्रत्येक महीने दो तारिक को पेंशन कार्यालय आकर अपनी पेशंन ले जाती थी । उनके घर से बाहर निकलते ही बाजार है घर का राशन आदि भी फोन करने पर दुकानदार लड़के द्वारा घर पर ही पहुंचा देता था । डॉ भी घर पर आकर ही उनका प्रेशर व शुगर चैक कर लेता था । श्रीमती चौधरी को बहुत हाई शुगर थी, और प्रेशर भी हाई रहता था । बेटी को माँ की बहुत चिंता रहती थी पर ससुराल में होने के कारण उसके हाथ बंधे थे । एक दिन श्रीमती चौधरी अपनी पेंशन लेकर वापिस घर आ रही थी । कार्यालय अधिक दूर नहीं था इस लिए वह हमेशा पैदल ही जाती थी । जब पेंशन लेकर आ रही थी कि तभी प्रेशर अधिक होने के कारण वह चक्कर खा कर सड़क पर गिर गईं। उस समय उन्हें किसी ने भी नहीं उठाया । उन्हीं की उम्र का एक बूढ़ा व्यक्ति भी रास्ते से जा रहा था उसने देखते ही समझ लिया कि उनका प्रेशर हाई हुआ है क्योंकि उनका भी प्रेशर हाई रहता था इस लिए वह हमेशा अपनी जेब में दवाई रखते थे उन्होंने शीघ्र ही वह दवाई श्री मती चौधरी को खिला दी थोड़ी देर बाद वह सामान्य हो गई । तब उसने उन्हें उनके घर तक छोड़ दिया । बाद में पता चला कि उस बूढ़े व्यक्ति का नाम कमल बोस था । वह गोविंद कॉलोनी में एक कमरे के किराये के मकान में रहते था । वह भी बिल्कुल अकेले । एक दस बारह साल का लड़का उनके साथ रहता है दोनों एक दूसरे का सहारा थे। वह लड़का भी उनको सड़क पर घायल अवस्था में मिला था । वह अनाथ था कमल बोस उसको अपने घर ले आए उसकी देखभाल की और उसको अपने घर पर ही रख लिया । कमल बोस जी क्लर्क की पोस्ट से रिटायर हुए थे । उन्होंने शादी नहीं की थी । जवानी अकेले ही मित्रों के साथ बिता दी। अब कुछ मित्र तो बुढ़ापे में अपने बच्चों के पास रहने चले गए। और कुछ इस दुनिया को छोड़कर ही चले गए । इस लिए बोस जी अपना जीवन अकेले ही काट रहे हैं लेकिन इस बच्चे को लाने के बाद वह बहुत खुश थे उन्होंने उसका नाम जीवन रखा था। क्योंकि उसके आने के बाद उन्हें एक नया जीवन मिल गया था । उम्र के इस पड़ाव में भी वह साइकिल चला कर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाते थे । इससे ही उनकी जीविका चलती थी । जीवन बेटे को भी उन्होंने पढ़ना लिखना सिखा दिया था । उस दिन भी वह ट्यूशन पढाकर ही साइकिल से घर जा रहे थे जब उन्हें श्रीमती प्रेमा चौधरी सड़क पर गिरी पड़ी दिखाई दी थी ।

वह साइकिल पकड़े पैदल चल रहे थे और प्रेमा जी भी उनके साथ धीरे धीरे पैदल चल रही थी । दोनों ने कोई बात नहीं की । प्रेमा जी का घर आ गया उन्होंने सिर झुका कर कमल जी को धन्यवाद दिया। एक बार दोनों की आंखें मिली । कमल बोस जी ने प्रेमा जी से उनके परिवार के बारे में कुछ नहीं पूछा बस इतना कहा - आप अपना ध्यान रखिएगा और साइकिल में बैठकर अपने घर की तरफ चल दिए ।पर कमल बोस आज अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस कर रहे थे उन्होंने इस विषय में किसी से कुछ नहीं कहा । रात हो चुकी थी । जीवन सो चुका था पर कमल बोस की आँखों में नींद न थी । बार- बार प्रेमा बोस का मासूम और बेबस चेहरा दिखाई दे रहा था । वह कैसी होगी ? उसने दवाई ली की नहीं ? उसके परिवार में कौन कौन है ? उसके परिवार वाले उसका ध्यान तो रखते होंगे ऐसे ही हजारों सवाल उनके दिमाग में आ जा रहे थे । इसी उहापोह में सुबह हो गई । जीवन ने उठकर चाय बना दी और उठाया काका चाय - कमल बोस जी ने जैसे किसी गहरे चिंतन से बाहर आते हुए कहा - अरे जीवन तुमने चाय बना ली कितने बजे गए ?

काका आठ बज चुके हैं । आपको तो ट्यूशन पर जाना है । हाँ बेटा आज देर हो गई बहुत समय बाद ऐसी नींद आई है । मैं अभी तैयार हो जाता हूँ, आज तो वह इतनी जल्दी जल्दी नित्य के कार्य कर रहे थे जैसे उनके पंख लग गए हो । प्रेमा को एक नजर देखने की इच्छा थी । उधर प्रेमा जी में भी एक अजीब सा परिवर्तन आ गया था वह भी समय पर दवाई लेकर जल्दी ठीक होना चहाती थी । वह भी रात भर उस अजनबी के बारे में सोचती रही । वह कहां रहता है? उसके परिवार में कौन कौन है ? कितना अच्छा और भला व्यक्ति है मैंने तो उसका नाम तक नहीं पूछा, ठिकाना भी नहीं पूछा । उसके हाथों के स्पर्श में कितना अपनापन था, कितने प्यार से मुझे दवाई खिलाई थी । उम्र में मुझसे बड़ा ही लगता था फिर भी पूर्ण स्वस्थ लग रहा था । इसी प्रकार के हजारों प्रश्न उनके मन में आ- जा रहे थे । दूसरे दिन श्रीमती प्रेमा चौधरी बहुत जल्दी उठी और दैनिक कार्य करने के बाद अपने घर के अंदर बाहर चक्कर काटने लगी मन में बहुत बेचैनी हो रही थी । उधर मिस्टर कमल बोस भी जल्दी जल्दी तैयार होकर साइकिल उठाकर चल दिए आज उनकी साइकिल ने रास्ता बदल लिया वह प्रेमा जी की घर की तरफ से जा रहे थे जबकि यह रास्ता प्रकाश बाजार तक जाने के लिए बहुत लम्बा पड़ता था ।

आज वह साइकिल को चला नहीं रहे थे बल्कि उड़ा रहे थे ।चार किलोमीटर का सफर साइकिल से करने के बाद प्रेमा बोस का घर आ गया । उन्होंने दूर से देखा प्रेमा जी घर के बाहर खड़ी थी अब उन्होंने साइकिल की गति बिल्कुल कम कर दी उनको एक बार आँख उठाकर कर देखा, प्रेमा जी ने भी एक बार आँखें ऊपर की, साइकिल पर बैठे बैठे ही दूर से दोनों की नजरे मिली । कमल बोस प्रसन्न मुद्रा में अपने गंतव्य की ओर चल दिए । प्रेमा बोस भी घर के अंदर आकर प्रसन्नता के साथ अपने घरेलु कामों में लग गईं ।

आज दोनों ही बहुत खुश थे, दोनों ही आज बहुत स्वस्थ महसूस कर रहे थे । दोनों को ही आज प्रेम और अपनेपन का जादू दिखाई दे रहा था।

अब तो यह रोज का सिलसिला हो गया था । सुबह ठीक आठ चालीस पर कमल बोस प्रेमा जी के घर के आगे साइकिल पर धीमी गति में दिखाई देते ,प्रेमा जी भी ठीक समय पर प्रातः भ्रमण के बहाने से घर के बाहर दिखाई देती, दोनों एक मूक प्रेम का संदेश एक दूसरे तक पहुँचा देते थे । तत्पश्चात अपनी अपनी दिशा में चल देते । मैं इस मूक प्रेम की एक साल तक प्रत्यक्ष द्रष्टा थी । दोनों को इस तरह मूक होकर मिलते देखकर मुझे बहुत सुकून मिलता था । मुझे किसी परिचित से पता चला कि कमल बोस अपने घर पर गिर गए थे । पैर में काफी चोट लगी थी डॉक्टर ने साइकिल चलाने के लिए मना किया है और अब वह अस्सी के आस पास होने के कारण काफी कमजोर भी हो गए थे । लेकिन बिना नागा लाठी ठकमकाते हुए प्रेमा जी के घर के सामने से जरूर निकलते थे । उनको लाठी पकड़कर धीरे धीरे चलता देख प्रेमा जी को बहुत दुख होता था वह प्रतिदिन लगभग एक घंटा पैदल लाठी के सहारे उधर से जाते थे जबकि उनके ट्यूशन का रास्ता उनके घर से बीस मिनट का था । वह दिन पर दिन कमजोर हो रहे थे ।

एक दिन वह जब प्रेमा के घर के सामने से गुजरे तो, प्रेमा दिखाई नहीं दी सिर्फ घर के आगे काफी भीड़ दिखी । अनहोनी की शंका से वह बेचैन होने लगे । घर का कोई सदस्य बीमार तो नहीं है । यह सोचकर वह पहली बार घर के दरवाजे तक चल दिये लोगों से पूछने पर पता चला कि इस घर में एक बुढ़िया अकेली रहती थी । कल रात चल बसी, यह सुनते ही कमल बोस के तो मानो होश ही पड़ गए वह वहीं जमीन पर बैठ गए । कुछ देर बाद अपने आप को सभांलते हुए उन्होंने लोगों से प्रेमा जी के परिवार के बारे में पूछा तो लोगों ने बताया बेटा तो विदेश में है उसको आने में चार दिन लगेगें और बेटी को भी मैसूर से आने में दो दिन लग जाएगें क्योंकि कनेक्टिंग फ्लाइट नहीं है, तो बच्चों ने क्या कहा ? - क्या इनको तीन दिन तक रखना है । मिस्टर शर्मा जी ने कहा बेटे से तो बात नहीं हुई और बेटी कोई निर्णय नहीं ले पा रही है क्योंकि तीन दिन तक कौन देखेगा ? अगर क्रियाकर्म करते हैं तो कौन करेगा ? कमल बोस ने कहा शर्मा जी एक बार बेटी से मेरी बात करवा दीजिए। शर्मा जी ने फोन लगा दिया । कमल बोस ने कहा बेटा हमें बहुत दुःख है कि तुम्हारी माँ हम सबको छोड़ कर बिना कुछ कह चली गई । अगर तुम कहो तो हम उनका देह संस्कार कर दे । तीन दिन तक देह रखना उचित नहीं है । बेटी ने रोते हुए कहा अंकल मैं अपनी माँ के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकूगीं. पर आप ठीक कह रहे हैं । आप जैसा उचित समझे करें। फोन रख कर कमल बोस ने शीघ्र ही देहसंस्कार की तैयारी शुरु कर दी । अभी तक उन्होंने प्रेमा की मृतदेह को नहीं देखा था । कमरे के अंदर जाकर जैसे ही उन्होंने प्रेमा को देखा तो अपने आप को रोक न सके, बच्चों की तरह जोर जोर से रोने लगे । सभी लोग उन्हें आश्चर्य से देख रहे थे । कोई आगे आकर हाथ नहीं लगा रहा था । कमल बोस उन्हें अपने हाथों से सजाया । फूल माला चढ़ाई । पास पड़ोस के और तीन लोगों ने कंधा दिया और चल दिये- शमशान घाट पहुंचने के बाद मुखाग्नि की बात खड़ी हुई तो कमल जी कहा - आप सब निश्चिंत रहें इनका सब काम मैं करूँगा । इस अस्सी साल की उम्र में भी वह इतनी दूर कंधा दे कर ले गए थे

और उनका सब काम किया । तीसरे दिन बेटी और पांचवे दिन बेटा भी आ गया था । कमल बोस ने बच्चों के साथ मिलकर उनका तेरवीं का काम भी किया । उसके बाद बच्चे उनका घर आदि बेचकर अपनी अपनी जगह चले गए । उस को एक बिल्डरस ने खरीद लिया था । वह वहां एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाना चाहता था । इसलिए उसने घर को तोड़ना शुरू कर दिया । कमल बोस अब भी हर रोज वहां आकर खड़े होते थे और घंटों उस घर को एकटक निहारा करते थे । जब बिल्डर ने घर तोड़ना शुरू किया तब उनसे देखा न गया । उनको प्रेमा की चीख़ सुनाई दे रही थी । वह वही लड़खड़ा कर गिर गए और फिर कभी नहीं उठे ।

कौन कहता है बुढ़ापे में प्रेम नहीं होता ? बल्कि सच तो यह है कि वासना रहित सच्चा और मूक प्रेम बुढ़ापे में ही होता है ।

लेखिका - निशा नंदिनी भारतीय

तिनसुकिया, असम