Bees saal baad in Hindi Moral Stories by Satish Sardana Kumar books and stories PDF | बीस साल बाद

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बीस साल बाद


बस रुकी तो वह ख्यालों की दुनिया से बाहर आया।
"जेल!जेल!!"कंडक्टर कह रहा था।
उसे याद आया कि उसे यो इसी स्टैंड पर उतरना था।एकदम वह अपनी सीट से उठा और लपक कर बस से बाहर!
हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का एक पुराना सा बोर्ड सड़क किनारे ही लगा था जिस पर नीले अक्षरों की लिखावट मिट सी रही थी।
वह कॉलोनी की सड़क पर आगे बढ़ा।उसे मकान नम्बर 17 में जाना था।एक आटा चक्की में आटे से सना एक व्यक्ति दिखाई दिया।उसके सिवा पूरी गली निर्जन थी।पीछे अरावली पहाड़ की एक श्रृंखला दूर तक जा रही थी।
"भाई जी!सत्रह नम्बर मकान कहां होगा।"उसने उसी व्यक्ति से पूछा।
"किनके यहां जाना है?अरोड़ा साहब के यहां!"उस व्यक्ति ने कहा तो उसने हां में सिर हिलाया।
"अरोड़ा साहब अभी फिलहाल तो घर पर नहीं हैं।बैंक मैनेजर हैं थोड़ा देर से आते हैं।"चक्की वाले व्यक्ति ने कहा तो उसे आश्चर्य नहीं हुआ।छोटे कस्बों में लोग एक दूसरे के बारे में सब जानते हैं।दिल्ली रहते रहते यह बात उसके ध्यान से उतर जाती है।
"जी मालूम है मुझे।मैं भी इसी बैंक का मुलाजिम हूं।फिलहाल दिल्ली रहता हूं।उनकी पत्नी,सुमन भाभी जी मुझे जानती हैं।"वह चलने को हुआ तो चक्की वाले ने उसे रोका।
"शायद आप उनसे बहुत साल से नहीं मिले हैं।"ऐसा कहते हुए उसकी आंखें सिकुड़ गयी।
"आपको शायद मालूम न हो उनकी पत्नी मानसिक रोगी है।सीधे सीधे कहें तो पागल है।"
"हैं!क्या?उन्होंने कभी मुझसे जिक्र नहीं किया।बीस साल पहले हम लोग एक ही मकान में किराएदार थे।तब तो वह चंगी भली थी।इन फैक्ट,मेरी पत्नी और सुमन भाभी में अच्छी दोस्ती थी।"
"बीस साल बड़ा लंबा अरसा होता है सर जी!"चक्की वाला अपनी जबान में मिश्री सी घोल कर बोलने का आदी था शायद!"पिछले पांच छह वर्ष से उन्होंने हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में रहना आरंभ किया है।तब से देख रहा हूं।उनकी पत्नी ऐसी की ऐसी है। कई बार पूरा दिन मेरी दुकान के बाहर बैठी रहती है शून्य में देखती हुई और बड़बड़ाती हुई।वैसे बड़ी शरीफ औरत हैं।किसी पर न हमला करती हैं न किसी को गाली-गलौज ही करती हैं।अपने घर से ज्यादा दूर भी नहीं जाती।या तो मेरी दुकान पर या पिछली सड़क पर एक परचून की दुकान तक।उधर भी जाती हैं तो यूँ ही शांति से बैठी रहती हैं,बड़बड़ाती रहती हैं।
"और उनकी बिटिया?"उसने पूछा
"मैंने उनकी बिटिया के बारे में कभी कुछ नहीं सुना!मैं तो समझता हूं कि वे लोग बे औलाद हैं।"चक्की वाले ने कहा तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई।
"तो क्या मुझे कोई होटल तलाश करना चाहिए!"उसने पूछा तो चक्की वाले ने अनिर्णय में सिर हिलाया।
"मैं तो आज ही महेंद्रगढ़ में ट्रांसफर के बाद नियुक्त हुआ हूं।मेरी दिन में अरोड़ा साहब से बात हुई थी।उनसे मैंने पूछ लिया था कि उन्हें मेरे उनके यहां रुकने में कोई दिक्कत तो नहीं है।उन्होंने तो ऐसा कोई संकेत नहीं दिया।"उसका असमंजस और उलझन बढ़ते जा रहे थे।
"अगर पूछ लिया है तो फिर क्या परेशानी!मैं आपके लिए चाय बनवाता हूं।तब तक अरोड़ा जी भी पहुंच जाएंगे।"चक्की वाले ने कहा तो उसने सकून की सांस ली।लेकिन होटल में ठहरने में ज्यादा सुविधा रहती।यह विचार उसके मन से निकला नहीं।
चाय का कप खत्म हुआ जा रहा था और अरोड़ा जी का कुछ पता नहीं था।
"लो अरोड़ा जी आ गए!"चक्की वाले ने कहा तो उसने कालोनी के अंदर आते हुए रास्ते की तरफ देखा जिधर से चलकर आधा घंटे पहले वह इधर आया था और इस नामुराद चक्की वाले के चंगुल में फंस गया था।
अरोड़ा जी उसे न दिखे तो उसने चक्की वाले के मुंह की तरफ देखा।जिधर वह देख रहा तो उधर एक गली से इकहरे बदन के अरोड़ा जी सफेद कुर्ता पायजामा पहने हुए हमेशा की तरह चिरपरिचित मुस्कराहट बिखेरते हुए चले आ रहे थे।न उनके सिर के बाल सफेद हुए थे न कम,उसने सोचा।गालों के जबड़े के उपर के गड्ढे भी यथावत थे।
"अरे!सरदाना जी!आप यहां क्यों बैठ गए?"उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा तो उस शख्स से चक्की वाले की तरफ देखा।
चक्की वाला परे देखने लगा।
"भाई साहब ने चाय के लिए रोक लिया था।इसरार करने लगे तो मना करते न बना!"सरदाना जी ने हंसते हुए कहा तो चक्की वाला भी हँसने लगा।
"मैं ढाई बजे का घर आकर बैठा हूं ताकि आपको कोई तकलीफ न हो और आप यादव जी की मेहमाननवाजी का लुत्फ ले रहे हो,यह भी सही है।"अरोड़ा जी अभी भी हँस रहे थे।
"यादव जी की शख्सियत ही ऐसी है कि इनको लांघ कर कोई जाने की हिमाकत कर ही नहीं सकता।"सरदाना जी ने हँसकर जवाब दिया तो यादव जी पर घड़ों पानी पड़ गया।प्रकटतः वह भी हँसी में साथ देते रहे।
बैग संभाले हूए वह अरोड़ा जी के पीछे इनके मकान में घुसा।सामने सुमन भाभी जी हाथ जोड़े मुस्कराती हुई खड़ी थी,"नमश्कार भाई साहब।'
सुमन भाभी जी हमेशा से नमस्कार को नमश्कार बोलती थी।वही रंग रूप,वही चेहरा मोहरा!मानो बीस साल न गुजरे हों बीस महीने ही हुए हों उनसे मिले।लेश भर भी तो फर्क न पड़ा था उनकी पर्सनालिटी में।
वह चक्की वाला यादव क्या पागल था।सरदाना ने सोचा और अपनी नादानी पर खुद ही क्रोध आया।उसकी पत्नी ठीक ही कहती है!किसी भी अनजान आदमी पर एकदम से भरोसा कर बैठता है वह।क्या जरूरत थी उस अनजान व्यक्ति के यहाँ इतना वक्त गुजारने की।
"नमस्कार भाभी जी!आप कैसी हैं?"सरदाना ने मुस्कराते हुए जवाब दिया तो सुमन भाभी ने सर्द आंखों से उसे देखा।एकबारगी उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई।
"ठीक हूं!आप देख ही रहे हैं। नीतू भाभी और बच्चों को भी ले आते।"सुमन ने मुस्करा कर कहा तो उसे लगा जैसे कोई संगमरमर की मूरत मुस्कराई हो।
चक्की वाले की बात में कुछ न कुछ तो सच्चाई है,सरदाना के मन मे यह ख्याल कौंधा मगर उसने झटक दिया।
"जी!जरा सैटल हो लूं।फिर उन्हें भी ले आऊंगा।"
यह सुनकर सुमन ने अपने पति यानि अरोड़ा जी की तरफ मुड़कर देखा और बोली,"मैं सोने जा रही हूं।भाई साहब और अपने लिए खाना बना लेना।"
अरोड़ा जी के हां में सिर हिलाने से पहले ही वह मकान में पीछे कहीं चली गई।
अभी सरदाना उसके अजीबोगरीब आदेश से उबरने की कोशिश कर रहा था कि अरोड़ा जी ने उस दरवाजे को,जिसमें से होकर वह पीछे गई थी बंद करके उस पर ताला जड़ दिया।
"आप फ्रेश हो लें।उधर बाथरूम है । खूंटी पर साफ तौलिया टंगा है।तब तक मैं खाना बनाता हूं।"अरोड़ा जी यह कहकर किचन में घुस गए।
वह ड्राईंगरूम में बुत की तरह कुछ देर खड़ा रहा।
माहौल का तनाव जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो वह अपना बैग उठाकर गली में आ गया।गली पार करने में उसे बमुश्किल दो मिनट लगे होंगे।इतने वक़्त में ही उसे डर बना रहा कि पीछे से आकर उसे अरोड़ा जी पकड़ न लें।
चक्की दिखाई दी तो उसकी जान में जान आई।अच्छी बात हुई कि
चक्की वाला किसी के साथ व्यस्त था।उसने उसे न देखा।
कालोनी के बाहर आकर मुख्य सड़क पर हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी वाले नीले बोर्ड के अक्षर उसे स्पष्ट और धुले धुले से दिख रहे थे।जेल का बोर्ड भी उसके बगल में था जो पहले नहीं दिखाई दिया था।
सड़क पर रुके पहले ऑटो रिक्शा में बैठकर रुखसत हुआ तो उसने पीछे मुड़कर देखा।उसे लगा कि गली के मोड़ पर खड़े अरोड़ा जी से उसकी नजरें टकराई हैं।वह अपना सिर ऑटो के अंदर कर आराम से बैठ गया।