We are idiots in Hindi Moral Stories by Rochika Sharma books and stories PDF | वी आर ईडियट्स

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वी आर ईडियट्स

वी आर ईडियट्स

“पापा आप मुझे बस स्टॉप पर छोड़ दीजिये न प्लीज़” रोहन ने अपने शू लेस बांधे और लिफ्ट के बाहर खड़ा हो गया ।

“अरे ! तुम यहाँ कैसे कॉलेज में छुट्टियां हैं क्या” पड़ोस के मिस्टर दोषी ने पूछा ।

“जी नहीं अंकल मैं ने यहीं इसी शहर के कॉलेज में दाखिला ले लिया है” रोहन ने मुस्कुरा कर जवाब दिया ।

यहीं कैसे ? तुम तो दूसरे शहर के नामी इंजिनीयरिंग कॉलेज में पढ़ रहे थे, वहां से यहाँ क्यूँ ?

रोहन उनकी बात का जवाब दिए बगैर ही लिफ्ट में चला गया ।

अगली ही शाम को जब रोहन की माँ अपने दफ्तर से लौटी पड़ोसिन ने चुटकी लेते हुए पूछ ही लिया “क्या बात है रंजना बेटे का कॉलेज बदल लिया”

ह्म्म्म, इन्हें तो है फोटोग्राफी का शौक और पहुँच गए इंजीनियरिंग में, सो वापिस तो आना ही था ।

ओह्ह्ह तो ये बात है “मीन्स ही इज़ वन ऑफ़ दी थ्री ईडियट्स”

अब ये ताने और चुटकियाँ रंजना और उस के पति के जीवन का रोजमर्रा का हिस्सा बन गए थे ।

आज तो हद ही हो गयी जब रोहन अपने अपार्टमेन्ट के बाहर बगीचे में टहनियों पर बैठे पक्षियों के फोटो ले रहा था तो वहीं की एक रेजीडेंट ने छेड़ कर कहा “फोटोग्राफर साहब पहले अपना हेयर कट तो करवा लेते, बाल देखे हैं अपने, बटेर के पंख जैसे, जी चाहता है एक रबर बैंड ले कर चोटी बना दूँ “

तभी दूसरी महिला बोली यदि फोटोग्राफर ही बनना था तो बारहवीं में दिन-रात कड़ी मेहनत कर इतने अच्छे अंक लाने की क्या आवश्यकता थी” सो सिली !

रंजना अपने पति के साथ वहीं बगीचे में सैर कर रही थी, उस ने जब ये सुना तो जी चाहा एक तमाचा उस महिला के मेक अप पुते चेहरे पर जड़ दे ।

कई बार सोचती सब उसकी ही गलती है, यदि वह नौकरी न करती और अपने बेटे की परवरिश पर बचपन से ही ध्यान देती तो शायद आज वह अपनी पढाई पर फोकस करता ।

जिसे वह हॉबी समझ रही थी उसे वह अपना करियर बना लेगा, ऐसा तो उस ने सोचा भी न था ।

अपने आप को ही दोषी समझ कर कोसती कि जब वह इंजीनियरिंग करने चला ही गया था तो उसे महँगा कैमरा ले कर ही नहीं देना चाहिए था । शौक अपनी सीमा में ही रहता तो ज़्यादा ठीक था ।

“कितना सोचती हो तुम दीदी उस की छोटी बहिन फोन पर कह रही थी, अरे कई बार बच्चे फेल भी तो हो जाते हैं तो क्या ज़िंदगी वहीं ख़त्म हो जाती है ? एक ही तो बेटा है आपका”

तभी तो चिंता है, इकलौता बेटा भी यदि कुछ न कर पाए तो माता-पिता का जीवन तो निरर्थक है ।

पर यही सोच तो हमें हमारे बच्चों को कुछ करने से रोकती है, हम इस तरह से क्यूँ न सोचें कि इन्हें एक बार जो ये करना चाहें करने दें, इनकी भी तो महत्त्वाकांक्षाएं होती हैं, जिन्हें हम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं तले कुचल देते हैं । जिस काम को वे जी लगा कर करेंगे उस क्षेत्र में सफलता ज़रूर हासिल करेंगे

“लेकिन यह इस के करियर का सवाल है, कैसे इसे मनमानी करने दें, आखिर अपनी ही ज़िन्दगी के महत्त्वपूर्ण वर्ष ये खो रहा है न”

दीदी मैं मानती हूँ आप की बात शत-प्रतिशत सही है लेकिन हर क्षेत्र में काम के जानकारों की आवश्यकता है हम खाली डॉक्टर, इंजीनियर, लॉयर, सी.ऐ. तक ही सीमित रह गए हैं, जिस के लिए एक डिग्री ले कर हमारे कितने युवा दर-दर की ठोकरें खाते नज़र आते हैं । लेकिन हम स्वयं उन्हें नज़रंदाज़ कर कुछ सफल लोगों को ध्यान रखते हैं और चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी उन सफल लोगों जैसे महान बनें और उस के लिए हम उनके जीवन भर के ख़्वाबों को चकनाचूर कर देते हैं ।

“तुम्हारी बात तो सही है, पर जिस पर यह गुजरती है वही इस दर्द को समझ सकता है”

मैं तुम्हारे दर्द से वाकिफ हूँ दीदी लेकिन अपने बच्चों के लिए सब कुछ सहना भी तो पड़ता है, आखिर हम माँ-बाप किस लिए होते हैं फिर ?

काफी हद तक आप भी सही हैं दीदी फिर भी मैं कहूंगी कि आप यह न सोचें कि लोग क्या कहेंगे, भविष्य में क्या होगा ?

कई बार बच्चे एक क्षेत्र में असफल हो जाते हैं और यदि उन्हें दूसरा मौक़ा दिया जाए तो वे दूसरे क्षेत्र में बड़ा अच्छा कार्य कर जाते हैं, थिंक पॉजिटिव दीदी ।

अक्सर रंजना का चेहरा लटका ही रहने लगा और तो और अब तो वह पड़ोसियों से भी नज़रें चुराने लगी उसे लगता कहीं कोई उस के बेटे के बारे में सवाल न पूछ ले ।

“न जाने लोगों को दूसरे के फटे में टांग डालने की आदत क्यूँ पड़ी है, जी करता है एक लगा दूं जब कोई मुझे मेरे रहन-सहन के लिए टोकाटाकी करे”

मेरी मर्जी मैं चाहे स्लीपर पहन कर बाहर जाऊं या फिर वर्साचे के जूते उस से किसी का क्या लेना-देना” रोहन बड़बड़ा रहा था ।

“तो बेटा समाज के अनुसार हमें अपना रहन-सहन तो रखना पड़ेगा न” रंजना उसे समझा रही थी ।

हाँ ! और ये समाज के अनुसार रहन-सहन बनाया किस ने ? रोहन बहस करने लगा था और उस के नयी पीढी के सवालों के जवाब रंजना के पास नहीं थे ।

“अच्छा चलो बहस बंद करो आओ खाना खा लेते हैं, हम किसी का मुंह बंद तो नहीं कर सकते न, तू मेरा बेटा है और हमें सबसे प्यारा है मैं तो बस यही जानती हूँ” रंजना ने उस का हाथ थामते हुए कहा ।

रोहन अपने फोटोग्राफी के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा था आये दिन उस की खींची तस्वीरें प्रदर्शनियों में स्थान पा रही थीं । उस की अपनी पहचान भी बनने लगी थी । इन्जीनियरिंग कॉलेज तो वह जा ही रहा था, जब क्लास होती वहीं जी लगा कर पढ़ लेता । ताकि घर आ कर पढाई में ज़्यादा ध्यान न देना पड़े ।

“आप खामखाँ ही परेशान होती हो दीदी, आपका बेटा तो जीनियस है देखो इंजीनियरिंग के साथ फोटोग्राफी भी कर रहा है , कहीं भी पीछे नहीं”

रंजना ने यह बात रोहन को बतायी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा, उस का आत्मविश्वास बढ़ गया था । आज वह पूरे जोश के साथ रंजना से बात करने लगा था । मम्मा आप को पता नहीं फोटोग्राफी में भी अलग-अलग फील्ड होते हैं जैसे पी.जी.कोर्स ऑफ़ फोटोग्राफी, प्रोडक्ट फोटोग्राफी में ग्रेजुएशन, इवेंट मैनेजमेंट, वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी, सिनेमाटोग्राफी,वेडिंग शूट आदि लेकिन सभी को तो इन के बारे में जानकारी नहीं है न, कुछ नया सोचना ही नहीं चाहते और न ही दूसरों को करने देते हैं, बस एक नौकरी करो जिस से आप का मासिक घर खर्च चल जाए और उस नौकरी में सारी ज़िंदगी हम दूसरों के लिए काम करते रहें । हम सिर्फ नौकरी तक ही सीमित क्यूँ रहें ? अपना कारोबार भी तो शुरू कर सकते हैं और पढाई तो पढाई है, भले ही किसी भी क्षेत्र में हो । हम क्यूँ सिर्फ इंजीनियर और डॉक्टर की भेड़ चाल में चलें ? यदि सभी इंजीनियर, डॉक्टर बन गए तो उन्हें कहाँ नौकरियाँ मिलने वाली हैं, पढ़ लिख कर उन्हें भी तो अपना कारोबार शुरू करना होगा और या फिर बेरोजगार घूमते रहेंगे या हो सकता है कम तनख्वाह में अपना घर चलाने लायक नौकरी कर लें । दुनिया तो डिमांड एंड सप्लाई पर चलती है न, क्या फोटोग्राफर की डिमांड नहीं सोसायटी में ?

रंजना को समझ आया कि अपने बारे में पॉजिटिव सुन वह कितना खुश हो गया और वह अपने काम की कितनी जानकारी रखता है और उस के लिए फोकस्ड भी है । जबकि आस-पड़ोसियों की नकारात्मक बातें सुन कर वह कितना अपसेट हो जाता है ।

अगले दिन जब वह दफ्तर के लिए तैयार हुई रोहन की आवाज़ आई “मम्मा मुझे बस स्टॉप पर छोड़ देना प्लीज़ आज मैं लेट हूँ, रात को देर तक काम कर रहा था”

हाँ -हाँ क्यूँ नहीं, मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ, जल्दी आ जाओ ।

जैसे ही वह अपनी कार तक पहुँचा “और भई फोटोग्राफर कहाँ तक पहुँची तुम्हारी यात्रा ? क्या बेटा इतने अच्छे कॉलेज की इंजीनियरिंग छोड़ कर यहाँ जंगलों में जा कर फोटोग्राफी करते हो ? अपनी शक्ल देखो कितने हेंडसम हो तुम और अपनी जवानी उन जंगली जानवरों के फोटो खींचने में बर्बाद कर रहे हो,

“अंकल आप इतने बरसों से एक ही जगह नौकरी कर रहे हैं, क्या आप इस नौकरी से खुश हैं” ?

बेटा हमारे जमाने में कहाँ इतनी सुविधाएं और नौकरियाँ थीं, एक बार जहां लगे तो बस जम गए, अट्ठारह वर्ष में तो विवाह हो गया, जिम्मेदारियां आन पडीं तो फिर कुछ सोचने को रहा ही नहीं वरना हमें भी सिंगिंग का बहुत शौक था” ।

हम्म्म्म अभी आये न असली बात पर अंकल, लेकिन आप ने अपने शौक को मार कर नौकरी की क्यूँ कि शादी हो गयी, जिम्मेदारियां आन पडीं, तो क्या शादी करना इतना ज़रूरी है ?

ये कैसी बातें कर रहे हो तुम ? ईडियट

“मैडम बच्चों के साथ थोड़ा स्ट्रिक्ट रहना चाहिए वरना ये तमीज भूल जाते हैं”

अपने अपार्टमेन्ट के सज्जन के मुंह से निकले ये शब्द रंजना और उस के बेटे को चुभ गए थे ।

“जब से अंकल मुझे टोक रहे हैं तो तमीज और मैं ने आइना दिखाया तो बदतमीज़” रोहन बड़बड़ाया ।

अभी कुछ ही दिन बीते कि रंजना के दफ्तर की ख़ास मित्र के चेहरे पर उदासी छाई थी जिसे रंजना ने भांप लिया और बोली “क्या बात है निशि कुछ परेशानी है क्या ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है न”

“कुछ नहीं बेटे के कॉलेज से फोन आया है कल वहां जाने के लिए फ्लाईट का टिकट बुक किया है”

“कोई ख़ास वजह फोन किस लिए” रंजना ने पूछा ।

अब तुम से क्या छुपाना रंजना, बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है , पढ़ने में तो मन लगता नहीं और न ही हॉस्टल में रहने-खाने की ठीक सुविधाएं हैं, छोड़ कर आना चाहता था, मैं ने उसे समझा-बुझा कर एक्स्ट्रा पैसे देने शुरू कर दिए ताकि उसे मेस का खाना अच्छा न लगे तो बाहर खा कर आ सके, कई सीनियर स्टूडेंट्स भी बाहर खाते हैं । बाहर आने-जाने से न जाने किस की संगत से ड्रग्स लेने लगा, एक बार पहले भी कॉलेज से शिकायत आयी थी तो मैं ने समझा दिया किन्तु अब तो वह अक्सर ड्रग्स लेते पकड़ा जाने लगा है, कल उस के दोस्त का फोन आया कि एक घंटे से बाथरूम बंद करके बैठा है । मुझे डर लगा कि कहीं कुछ कर न ले इस लिए उस से मिलने जा रही हूँ ।

मालूम हुआ निशि का बेटा ड्रग्स का आदि नहीं किन्तु सीनियर्स के कहने से एक- आध बार उस ने ट्राई किया और वह हॉस्टल रूम में ड्रग्स के साथ पकड़ा गया । उस के बाद वार्डन ने उसे धमकाना शुरू किया और ब्लैकमेल भी करने लगा । यह वार्डन के लिए अतिरिक्त आय का एक जरिया था, हॉस्टल में दूसरे बच्चों का भी यही हाल है, बच्चे डर के मारे माता-पिता से छुपाते हैं और वार्डन उस का फायदा उठाते हैं ।

एक बार तो निशि को लगा कि वह वार्डन की शिकायत ऊपर तक करे किन्तु मालूम हुआ ऊपर से नीचे सब मिले हुए हैं । क्यूंकि न जाने कितने बच्चे अपने माता-पिता के दबाव के कारण वहा दाखिला ले लेते हैं और उस के बाद पढाई में मन न लगने के कारण इन बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं ।

उस ने अपने बेटे से खुल कर बात की, वह मास कम्युनिकेशन करना चाहता था । वहां उस का दाखिला मिलते ही उस ने अपने बेटे को इंजिनीयरिंग छुड़वा दी ।

दफ्तर में यह बात जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी, निशि को मन ही मन बहुत बुरा महसूस हो रहा था किन्तु उस के अनुभव से रंजना अपने आप को मजबूत कर चुकी थी ।

जैसे ही किसी ने निशि पर तंज कसा “ओह्ह्ह ही इज़ वन अमोंग्स्ट दी थ्री ईडियट्स” ?

“ही इज़ नॉट, वी आर ईडियट्स” रंजना ने जवाब दिया और आत्मविश्वास के साथ वह मुस्कुराने लगी ।

रोचिका अरुण शर्मा, चेन्नई