Zee-Mail Express - 22 in Hindi Fiction Stories by Alka Sinha books and stories PDF | जी-मेल एक्सप्रेस - 22

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जी-मेल एक्सप्रेस - 22

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

22. जिगोलो यानी... मेल प्रॉस्टीट्यूट

बाहर कोरीडोर में लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी। कान में मोबाइल से संगीत का लुत्फ उठाते चपरासी साहब दोनों हाथ पैंट की जेबों में डाले, मस्त चाल के साथ चले आ रहे थे।

‘‘अरे प्रीतम, यहां की फाइलें कहां गईं?’’ उसका शाही अंदाज मुझे और भी व्यग्र कर रहा था।

‘‘कहां गईं मतलब? ...आप तो ऐसे कह रहे हो जैसे आपको कुछ पता ही न हो!’’

लो, कर लो बात, सवाल के जवाब में सवाल।

‘‘अरे यार, मैं तो दस दिन बाद आ रहा हूं, ट्रेनिंग पर गया था न!’’

‘‘साब जी, न्यूज तो वहां भी आती होगी?’’

‘‘न्यूज...?’’

मैंने सरसरी निगाह बीते दिनों पर दौड़ाई, देर रात होटल लौटना और थककर सो जाना। अखबार के नाम पर हिंदी-अंगरेजी का ताजा तो छोड़ो, पुराना अखबार तक नसीब नहीं हुआ। यानी मैं नौ दिन तड़ी पार रहा, देश-दुनिया से मेरा संपर्क पूरी तरह कटा हुआ... और मैं था कि अपनी उसी दुनिया पर मोहित हुए जा रहा था, मगर अब मोहभंग की स्थिति थी।

‘‘आखिर इस बीच ऐसा क्या हो गया कि हमारा दफ्तर खबरों का हिस्सा बन गया?’’

मेरी अनभिज्ञता पर उसकी बांछें खिल गईं, यानी मुझे इस मामले की पहली जानकारी देने वाला शख्स वही है।

‘‘शुक्रवार को सुबह-सुबह हमारे दफ्तर में छापा पड़ा।’’ वह मेरे और निकट आ गया।

‘‘छापा!!!’’

‘‘जी! पूर्णिमा के घर पर और यहां उसके कैबिन में, एक साथ।’’

वह सांस लेने के लिया रुका या शायद इस बहाने उसने मेरे आश्चर्य का लुत्फ उठाया। उसकी आंखों में चमक थी, जैसे पूछना चाह रहा हो, है न फड़कती खबर?

उसने बताया, पूर्णिमा के पास बहुत-से कागज मिले हैं...

‘‘कैसे कागज?’’

मैं अभी भी कुछ समझ नहीं पा रहा था कि पूर्णिमा के पास आपत्तिजनक क्या हो सकता है।

‘‘उसके नाम बहुत सारी प्रॉपर्टी है, और जहां...’’

‘‘चलो, चलो। भीड़ मत लगाओ, कोई पता नहीं, यहां कोई खुफिया कैमरा लगा हो।’’ धमेजा की आवाज ने सबको चौंका दिया।

मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि मेरे इर्द-गिर्द लोगों का घेरा-सा बन गया था। बिना किसी हुज्जत, सब अपनी-अपनी सीटों की तरफ बढ़ गए।

‘‘और तेरा टूर कैसा रहा?’’ धमेजा मुझे अपने कमरे में ले गया।

मैं यंत्रवत् उसके पीछे चल दिया। उसने इंटरकॉम पर दो कड़क कॉफी का ऑर्डर दिया। मैं सामने की कुरसी पर बैठ गया।

वह टेबल पर रखे पेपरवेट को इस तरह घुमा रहा था, जैसे सीबीआई ने उसे अपनी इन्वेस्टिगेशन टीम में रख लिया हो और वह मुझे भी इन्वेस्टिगेट करने वाला हो।

‘‘माजरा क्या है?’’ मैंने चुप्पी तोड़ना जरूरी समझा।

उसने बताया कि शुक्रवार को सुबह-सुबह पूर्णिमा के घर और महरौली वाले फार्म हाउस सहित दूसरे ठिकानों पर छापा पड़ा, जहां उसमें चलने वाले कारनामों का परदाफाश हुआ।

‘‘कैसे कारनामे...?’’

‘‘कई तरह की काली करतूतों के जरिये पूर्णिमा ने अच्छा-खासा पैसा कमाया है,’’ आखिर धमेजा ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘उसके पास आय से अधिक सम्पत्ति रखने का इलजाम है, उसके पास कई विदेशी गाड़ियों के कागज मिले हैं। उसके नाम महरौली वाले फार्म हाउस के अलावा भी तीन ठिकानों का पता चला है...’’

‘‘काली करतूतें..., तीन ठिकाने...?’’ मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था। इधर धमेजा था कि मुद्दे की बात पर पहुंचकर भी नहीं पहुंच रहा था और शायद जानबूझकर मुख्य प्रश्न को नजरअंदाज कर अपनी हांकने में लगा था।

‘‘किस बारे में बात कर रहे हो यार, जरा खोलकर बताओ न।’’

आखिर मेरी बेचैनी से उसका मन पसीजा और वह असल मुद्दे पर आया।

‘‘उसके हाइटेक पार्लरों में बॉडी-स्पा के नाम पर जिगोलो का धंधा चलता था...’’

‘‘जिगोलो?’’

‘‘कीमत लेकर स्त्रियों की काम-वासना को संतुष्ट करने वाले लड़के जिगोलो कहलाते हैं... मेल प्रॉस्टीट्यूट!’’ धमेजा अपनी कुरसी को दाएं-बाएं घुमा रहा था।

मेरा हलक सूखने को आया। मैंने मेज पर रखी कड़क कॉफी का तेज सिप लिया तो होंठ जल गए।

धमेजा ने बताया कि पूर्णिमा बहुत समय से पुलिस के शक के दायरे में थी और उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी।

‘‘ऐसा नहीं हो सकता...’’ एक अकेली औरत का स्वाभिमान के साथ जीना ये समाज कभी स्वीकार कर ही नहीं सकता। अपने भीतर बनी पूर्णिमा की पाक-साफ छवि पर मैं इस तरह के छींटे बरदाश्त नहीं कर सकता था। मैं इस इलजाम का पुरजोर विरोध करना चाहता था, मगर मेरी आवाज हलक में ही सूख गई।

धमेजा ने बताया कि एक पुलिसवाला खुद को रैम्प मॉडल बताकर बहुत दिनों से पूर्णिमा के चक्कर काट रहा था, आखिर पूर्णिमा कब तक झांसे में न आती? थोड़ी तसल्ली कर लेने पर एक दिन पूर्णिमा ने उसे फोन किया।

धमेजा कंप्यूटर पर यू-ट्यूब खोलकर उस रैम्प मॉडल से फोन पर पूर्णिमा की बातचीत के अंश दिखाने लगा--

‘‘आपके चार्जेज क्या हैं, फोर प्लेज, ओरल सेक्स और कंप्लीट सर्विस के क्या रेट हैं?’’

‘‘सैटिस्फैक्शन परसेंटेज कितना है?’’

‘‘फिजिकली कितना सेफ है और सोशली कितना?’’

फोन पर सुनाई पड़ने वाली आवाज सचमुच पूर्णिमा की थी। मैं भौंचक था।

‘‘जीएम की बोलती बंद है...’’ धमेजा ने लगभग फुसफुसाते हुए बताया कि पूर्णिमा जीएम जैसी कई बड़ी मैडमों के लिए जिगोलोज की सप्लाई करती थी।

मेरे माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं।

‘‘पूर्णिमा की तो यहां ट्रांसफर ही इसलिए हुई थी कि वह यंग और स्मार्ट लड़कों को मैडमों के संपर्क में ला सके...’’

धमेजा छाती ठोंककर कह रहा था, ‘‘अरे पापे, हमने तो सारी हिस्ट्री उसी दिन निकाल ली थी जिस दिन मैडम पूर्णिमा के बुलाने पर यहां पहली बार आई थी... तुम्हें क्या लगता है, कोई जीएम इतनी खाली बैठी होती है कि अपने जूनियर... कैजुअल... और ट्रेनीज के बर्थ-डे मनाने मेन बिल्डिंग से ट्रेनिंग कॉम्प्लेक्स तक आएगी?’’

धमेजा मुझे अपलक देख रहा था।

मुझे लगा, मेरी सांस घुट जाएगी। मैं जल्दी से उसके कमरे से बाहर निकल आया।

अपनी सीट पर लौट चुकने के बाद भी मैं अपने आप में वापस नहीं लौट पा रहा।

मुझे कुछ ध्यान आ रहा है कि एक बार गुड़गांव मॉल में घूमते हुए हम कुछ ऐसे लड़कों से टकराए जो महिलाओं को अपना विजिटिंग कार्ड बांट रहे थे। उन्होंने विनीता को भी अपने कार्ड थमाए। कार्ड देखकर विनीता के चेहरे पर उपेक्षा भरी मुस्कान उभर आई। मैंने उत्सुक होकर विनीता के हाथ से कार्ड ले लिया। उस पर लिखा था, ‘फुल बॉडी मसाज, एनी टाइप, एनी टाइम, एनी वेयर’ और साथ में मोबाइल नंबर दिया था।

‘‘बॉडी मसाज पार्लर तो होते ही हैं?’’ मैं विनीता की मुस्कान का रहस्य नहीं समझ पाया था।

मेरी अनभिज्ञता पर विनीता ने ही मुझे बताया था कि ऐसे कई मसाज सेंटर हैं जहां रईस लड़कियों के मनबहलाव के लिए ये लड़के खुद को पेश करते हैं और उन्हें संतुष्ट करते हैं। विनीता ने यह भी बताया था कि आजकल ऐसी औरतों की कमी नहीं है जो अपनी डिमांड्स को लेकर बहुत पजेसिव हैं और इस काम के लिए इन लड़कों को अच्छी पेमेंट करती हैं, इसलिए हाई क्लास के भी कई युवक इस धंधे में आ लगे हैं।

जिगोलो... जिगोलो... जैसे कोई कानों में फुसफुसा रहा है।

‘जे आई जी ओ एल ओ’ मैंने कंप्यूटर पर टाइप कर ऐंटर किया।

‘‘क्या आपका आशय ‘जी आई जी ओ एल ओ’ से है?’’ गूगल मेरी मासूमियत पर हंस पड़ा।

मैंने कुछ झेंपते हुए उसी पर क्लिक कर दिया।

‘मेल प्रॉस्टीट्यूशन’ बड़े फोंट में उभर आया। आश्चर्य से मेरी आंखें चौड़ी हो गईं।

हाउ टु बिकम अ जिगोलो? पॉप्युलर कल्चर, स्टिग्मा, लीगल इश्यूज जैसे उपशीर्षकों की झड़ी लग गई।

समझ नहीं आ रहा, किस पर क्लिक करूं। निगाहें तेजी से स्क्रीन पर दौड़ रही हैं...

हैरान हूं कि इसकी बाकायदा एक साइट है जिसमें जिगोलो का इतिहास, समकालीन परिप्रेक्ष्य में इसकी प्रासंगिकता और स्थिति, विभिन्न देशों में इसके प्रचलित स्वरूप... जैसी हर तरह की जानकारी उपलब्ध है।

इसकी साइट पर आप खुद को इनरोल भी कर सकते हैं और ‘ऑन लाइन’ एक-दूसरे के संपर्क में आ सकते हैं। मेरी जिज्ञासा इस साइट पर दस्तक देने लगी।

मुझे प्रवेश देने से पूर्व उसने मेरे संबंध में व्यक्तिगत जानकारी पूछी—नाम? उम्र? ई-मेल आई डी... मेरी उंगलियों ने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया।

आजू-बाजू की विंडोज से कुछ युवा चेहरे झांक रहे हैं, पता नहीं ये उपलब्ध जिगोलो हैं या फिर जिगोलो का प्रचार करते मॉडल्स। मैं उन चेहरों को पहचानने की कोशिश कर रहा हूं, भारतीय चेहरे लगते हैं...

समझ नहीं पा रहा, जब इतनी आसानी से इन लड़कों से संपर्क साधा जा सकता है तो पुलिस को छापा मारने की क्या जरूरत है? वह तो ई-मेल के जरिये आसानी से इन तक पहुंच सकती है।

मगर शायद यह इतना आसान भी नहीं था। आगे की कई लिंक्स में इस तरह की सावधानियों के प्रति सचेत करते हुए बताया गया था कि उन्हें किस प्रकार अपनी पहचान गोपनीय रखते हुए इस काम को करना है। किसी लिंक में उन दस बातों की जानकारी पेश की गई थी जिनका सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। इनमें शुरुआत में किसी से मिलने के लिए कोई सार्वजनिक स्थान चुनने की सलाह दी गई थी। पूरी तरह भरोसा हो जाने पर ही एकांत में मिलने की योजना बनानी चाहिए। साथ ही संपर्क बनाते समय सावधानियों का निर्वाह करने की सख्त हिदायत दी गई थी। ऐसी दस बातों में इस बात की ओर भी खास ध्यान दिलाया गया था कि इस तरह के धंधे में किसी से निजी या भावात्मक संबंध नहीं बनने चाहिए। यह एक प्रकार का कारोबार है और व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन को आपस में टकराना नहीं चाहिए।

इस तरह की जानकारी से मेरे दिमाग की नसें झनझना उठी थीं।

(अगले अंक में जारी....)