Jo Ghar Funke Apna - 6 in Hindi Comedy stories by Arunendra Nath Verma books and stories PDF | जो घर फूंके अपना - 6 - जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को ---

Featured Books
  • Fatty to Transfer Thin in Time Travel - 13

    Hello guys God bless you  Let's start it...कार्तिक ने रश...

  • Chai ki Pyali - 1

    Part: 1अर्णव शर्मा, एक आम सा सीधा सादा लड़का, एक ऑफिस मे काम...

  • हालात का सहारा

    भूमिका कहते हैं कि इंसान अपनी किस्मत खुद बनाता है, लेकिन अगर...

  • Dastane - ishq - 4

    उन सबको देखकर लड़के ने पूछा की क्या वो सब अब तैयार है तो उन...

  • हर कदम एक नई जंग है - 1

    टाइटल: हर कदम एक नई जंग है अर्थ: यह टाइटल जीवन की उन कठिनाइय...

Categories
Share

जो घर फूंके अपना - 6 - जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को ---

जो घर फूंके अपना

6

जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को ---

गौहाटी में ताश के खेल में हारकर जिन खुशकिस्मतों को अपनी मोटरबाइक्स बेचने की नौबत का सामना नहीं करना पड़ा उन्ही में से एकाध ने यह सुसमाचार दिया कि गौहाटी से चार घंटे मोटरसाइकिल चलाकर यदि सप्ताहांत में शिलोंग जाने का कष्ट किया जाए तो रोमांस का स्कोप कहीं बेहतर था. शिलोंग की खासी लडकियां जितनी सुन्दर और स्मार्ट होती थीं उतना ही अपने व्यवहार में खुलापन लिए हुए और दोस्ती करने में प्रगतिशील थीं. पर यहाँ कबाब में हड्डी थे स्थानीय खासी लड़के जिनकी एयरफोर्स और आर्मी के अफसरों के साथ ज़बरदस्त प्रतिद्वंदिता थी. फ़ौजी अफसर खासी लड़कियों को पिक्चर दिखाने, शिलोंग झील में साथ बैठकर बोटिंग करने और शिलोंग क्लब में शानदार डिनर खिलाने में उन बेचारे ग़रीब लड़कों से बाज़ी मार ले जाते थे. फिर खासी नौजवान शिलोंग क्लब के बाहर या शिलोंग झील के किनारे खड़ी उनकी मोटर साइकिलों के टायर की हवा निकालते. उसके बाद शाम को ही उतर आनेवाली रात के अँधेरे में पंक्चर रिपेयर की दूकान ढूंढते फौजियों को घेर कर ठुंकाई –पिटाई के गुरिल्ला युद्ध में वे भारी पड़ते. दुर्भाग्य से या शायद सौभाग्य से, मुझे शनिवार रविवार को शिलोंग जाने का चस्का ठीक से नहीं पड सका. इसके पहले ही कुछ खासी नौजवानों ने हमारे बैच के एक अफसर की सूखी पिटाई करने से पूरा संतोष न पाकर उसकी बगल में छुरा भी घोंप दिया. नतीजा ये हुआ कि पूर्वी वायुसेना कमान मुख्यालय ने हम बोर्झार एयरबेस वालों के शिलोंग जाने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया. जल्दी ही शिलोंग लेक के हर खूबसूरत मोड़ और अँधेरे कोने में हाथों में हाथ लिए रोमांटिक जोड़ों की जगह हाथों में वाकी टॉकी लिए एयरफोर्स पुलिस के जवान अपनी जीपों में दिखने लगे.

गौहाटी अर्थात बोर्झार में नियुक्त एयर फ़ोर्स अफसरों पर उन्ही दिनों अचानक भगवान को रहम आ गया. हममे से एक, फ्लाईट लेफ्टिनेंट विजय ने बारिश में भीगने की परवाह न करते हुए बोर्झार से गौहाटी के बीच सैकड़ों हज़ारों चक्कर लगाने के पश्चात अंत में एक बहुत ही सुन्दर, बड़ी ही प्यारी सी, असमिया लडकी का दिल जीतने में कामयाबी हासिल कर ली. मोहब्बत इस हद तक बढ़ी कि अपने पंजाबी माँ बाप की घोर अनिच्छा को दरकिनार करते हुए उससे कोर्ट में जाकर विवाह भी कर लिया. लडकी के पिता मिस्टर बरुआ एक बड़ी सी टी-एस्टेट के मालिक थे. लडकी गौहाटी के सबसे ख्यातिप्राप्त कोंवेंट स्कूल की पढी हुई थी. फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलती थी और उससे भी ज़्यादा फर्राटेदार ढंग से अंग्रेज़ी धुनों पर डांस करती थी. पर इन सारी खूबियों से बढ़कर उसमे ये खूबी थी कि उसके जितनी ही खूबसूरत, उतनी ही सलोनी उसकी दो बहनें भी थीं, उससे सिर्फ इतनी छोटी कि समझिये कि उनकी गाड़ी भी आउटर सिग्नल पर पहुँच चुकी थी. ऐसे में गौहाटी के सोते हुए ऑफिसर्स मेस में फिर से नयी जवानी आनी ही थी, सो वह आयी. फ्लाईट लेफ्टिनेंट विजय तो हमारी मेस की पार्टियों में सपत्नीक आते ही थे, अब पूरी स्क्वाड्रन के आग्रह के कारण अपनी सालियों को भी साथ लाने लगे और इन सालियों ने अपनी लोकप्रियता के झंडे गाड दिए. इस ईश्वरीय देन के साथ ही मेस में होने वाली पार्टियों की संख्या बहुत बढ़ गयी. नववर्ष दिवस, स्वतन्त्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, वायुसेना दिवस, स्क्वाड्रन एनीवर्सिरी जैसे दिवस साल में एक बार ही आते थे, पर साल में तीन सौ पैंसठ की बजाय मुश्किल से सौ डेढ़ सौ दिन होने लगे. शौक़ीन लोगों ने अपनी वर्षगाँठ सालाना के बजाय तिमाही मनानी शुरू कर दी. धीरे धीरे इन कन्याओं के साथ उनकी सह्पाठिनें और सहेलियां भी आने लग गयीं. जल्दी ही लगने लगा कि वह दिन दूर नहीं जब गौहाटी शहर सैकड़ों नहीं तो कम से कम दर्जनों एयर फ़ोर्स अफसरों की ससुराल के रूप में जाना जाएगा. सुदूर अतीत में कामरूप कामाख्या की ऐसी ख्याति रह चुकी थी कि वहाँ रहने वाली रूपसियाँ परदेस से आनेवालों को वहाँ भेड़ा बनाकर रख लेती थीं. निश्चय ही ये भेड़ा बन जानेवाले परदेसी भगवान राम के पुष्पक विमान के चालक रहे होंगे. इस प्रकार सीधे सीधे नहीं तो घूमफिर कर ये सिद्ध हो जाता था कि प्राचीन भारत में एरोनौटिकल इंजीनियरिंग और विज्ञान बहुत विकसित था और गौहाटी उसका मुख्य केंद्र था. लेकिन समय चक्र तो कभी रुकता नहीं. प्राचीन वैमानिकी विज्ञान और पुष्पक विमान तक का युग ढल गया तो फ्लाईट लेफ्टिनेंट विजय किस खेत की मूली थे. एक दिन उनका भी गौहाटी से स्थानान्तरण हो गया सुदूर हिंडन को. पर असंख्य शत्रुओं के ऊपर विजय की कामना करने वाला एयर फ़ोर्स ऐसी छोटी मोटी मुश्किलों से डरने वाला नहीं था.

विजय दम्पति के चले जाने के बाद अगली पार्टी में मिस्टर और मिसेज़ बरुआ को बहुत सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया गया. वे आये भी. अधेड़ उम्र के बरुआ साहेब हमारे सी. ओ. साहेब के साथ स्कॉच की छोटी चोटी चुस्कियां बहुत शालीनता से लेते रहे. मिसेज़ बरुआ सीनियर अधिकारियों की पत्नियों के साथ बैठकर मुस्कुराती रहीं. अंग्रेज़ी वे नहीं के बराबर जानती थीं. हिन्दी भी शायद उतनी ही. वे दोनों अधिक देर नहीं रुके. एक घंटे के बाद उन्होंने विनम्रता से क्षमा मांगते हुए जाने की इजाज़त माँगी. डिनर न लेने के लिए अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर दुबारा माफी माँगी और चले गए. लडकियां साथ नहीं आयी थीं. पार्टी अधमरी सी रही थी. बहुत जल्द भंग हो गयी. मिस्टर बरुआ से पूछना तो किसी ने उचित नहीं समझा था पर एक सीनियर अधिकारी की पत्नी के पूछने पर मिसेज़ बरुआ ने लड़कियों के साथ न आने का अति संक्षिप्त उत्तर दिया था “ नाट इनवाईटेड”. बरुआ दम्पति के जाने के थोड़ी देर बाद ही सी. ओ. साहेब और टू. आई. सी. (सेकेण्ड इन कमांड) भी सपत्नीक चले गए.

उनके जाने के बाद ही उधर पार्टी भंग हुई और इधर एक धमाकेदार हंगामा शुरू हो गया. मेस सेक्रेटरी एक फ्लाईट लेफ्टिनेंट नटराजन थे. सारी शाम तीव्र विरह वेदना के सताए हुए कुंवारे अफसरों ने उन्हें घेर लिया क्यूंकि मेस सेक्रेटरी होने के नाते पार्टी के निमंत्रण भेजने की ज़िम्मेदारी उन्ही की थी. नटराजन ने बड़ी सूझ बूझ वाला उत्तर देकर मुसीबत से निजात पाने की सोची. बताया कि ऑफिसर्स मेस में नाबालिगों को निमंत्रित करना, वह भी लिखित निमंत्रण के साथ बुलाना, नियम विरुद्ध था. वैसे उन्होंने आशा की थी कि फिर भी सदा की तरह वे लडकियाँ आयेंगी ही. नटराजन के ऊपर क्रुद्ध सवालों की बौछार शुरू हो गयी. किसी ने पूछा “तुझे कैसे मालूम कि वे नाबालिग हैं?’’ किसी ने धमकाया “वो जो पिछले शनिवार को तू उस खासी छोकरी के साथ शिलोंग में घूम रहा था वो नियमविरुद्ध नहीं था, बड़ा आया कायदे क़ानून वाला !” किसी और ने कहा “ लगता है तुझे उन छोकरियों ने लिफ्ट नहीं दी तभी तू दूसरों की चांस भी खराब कर रहा है“ अंत में सर्वसम्मति से ये तय पाया गया कि नटराजन को ‘नौटीराजन’ होने की सज़ा मिलेगी. एक पखवारे के अन्दर ही वह अपनी वर्षगाँठ मनायेगा. बर्थडे पार्टी में सारे कुंवारे अफसर ही होंगे. बस सी ओ साहेब को सपत्नीक बुलाया जाएगा. केवल बरुआ दम्पति को कंपनी देने के लिए. और इस पार्टी का खर्च अकेले नटराजन उठाएगा. जाते जाते यार लोगों ने फिर से याद दिलाई कि इस बार भी उन कन्याओं को लिखित निमंत्रण देने से परहेज़ हो तो अलग से फोन करके बरुआ साहेब से आग्रह करके उन कन्याओ को बुलाना उसकी सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होगी. नटराजन में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सबको नाराज़ कर सके. न ही ये सच था कि कन्याएं उसे लिफ्ट नहीं देती थीं.

तो फिर पंद्रह दिनों के अन्दर ही फिर पार्टी हुई. बरुआ दम्पति के अतिरिक्त दोनों कन्याओं के लिए दो अलग अलग लिखित और व्यक्तिगत निमंत्रण पत्र भेजे गए. पार्टी के एक दिन पहले लोगों ने नटराजन को घेर लिया. ‘चल, फोन करके रिमाइंडर दे दे कि इस बार बरुआ साहेब लौंडियों को साथ लाना न भूलें” नटराजन ने फोन मिलाया. सब लोग तितर बितर हो चुके थे सिर्फ मैं वहाँ बैठा कुछ काम कर रहा था. फोनपर उसकी बातें सुनता रहा. नटराजन को बताया गया कि बरुआ साहेब घर पर नहीं हैं तो उसने मिसेज़ बरुआ को फोन पर बुलवाया. पर एक दिक्कत हुई. मिसेज़ बरुआ ने फोन पर आते ही अपनी टूटी फूटी हिन्दी में कहा “इनविटेशन का थैंक्यू. हम जोरूर आयेगा” नटराजन को शंका हुई कि फिर वही गलती न दुहराई जाए. पर हिन्दी उसकी भी माशा अल्लाह थी. गर्मजोशी से बोला “ थैक्यू मैडम! आप आना और अपना लौंडियाँ भी ज़रूर लाना” मुझे इतना मौक़ा ही नहीं मिला कि नटराजन को राष्ट्रभाषा का बलात्कार करने से समय रहते रोक लूं. मेरे मंह से बेसाख्ता निकला “अबे, मरवाएगा क्या?” पर तीर धनुष से छूट चुका था. शायद मिसेज़ बरुआ तक मेरी भी आवाज़ पहुँच गयी हो और शायद मिसेज़ बरुआ को हिन्दी की इतनी कम समझ नहीं थी जितनी नटराजन को थी. जो भी हो, इस बार पार्टी में न बरुआ दम्पति आये, न उनकी लावण्यमयी कन्याएं. गौहाटी के ऑफिसर्स मेस में चार दिन से बिखरी हुई चांदनी फिर अपनी जगह अंधेरी रात छोड़ कर चली गयी.

क्रमशः ------