Is baar der nahi in Hindi Moral Stories by Pawan Chauhan books and stories PDF | इस बार देर नही

Featured Books
Categories
Share

इस बार देर नही

इस बार देर नही

कड़क सर्दी में वह छोटी लड़की कभी यहां तो कभी वहां अपनी किस्मत आजमा रही थी। उसके कपड़े जगह-जगह से फटे पड़े थे। स्वैटर के नाम पर उसके शरीर पर मात्र चंद धागों का ताना-बाना ही रह चुका था। उसके आगे व पीछे दोनों ओर बड़े-बड़े छेद हो चुके थे और बाजू नीचे की ओर लटक चुके थे। बालों की हालत देखकर लगता था जैसे इन्हे सालों से धोया ही न गया हो। मैल ने उन्हे गोंद की भांति अपने शिकंजे में जकड़ रखा था। वह बार-बार अपना सिर खुजाए जा रही थी। ठंड से फटा उसका चेहरा बंजर जमीन की याद को ताजा कर रहा था। इतनी छोटी-सी उम्र में उसकी आंखे जैसे अंदर की ओर घंसने को आतुर थी और हाथ व पैर बूरी तरह से फटे पड़े थे। एक हाथ में एल्युमिनियम का छोटा-सा कटोरा लिए जो एक किनारे से टूटा हुआ था को आगे कर वह सबसे पैसे माग रही थी। परंतु सब उसकी इस माग को अनदेखा कर रहे थे। कोई उसे देख आंखे तरेर रहा था, कोई गुस्से से बड़बड़ाता हुआ उसे गाली बक रहा था तो कोई उससे आगे का रास्ता नापने की बात कह रहा था।

धंुध की मोटी परत को चीरती हुई सूर्य की किरणें अब धरती को चूमने लगी थीं। इस भारी ठंड में अब तपन का हल्का-सा अहसास होने लग पड़ा था। बस स्टैंड के सामने खोखे के पास की खाली जगह पर काफी धूप खिली हुई थी। इस दायरे में यही एक थोड़ी खुली जगह थी। बाकि स्थान पर तो ऊंची-ऊंची इमारतों का कब्जा था। सर्दी की इस धूप का मजा लेने के लिए कुछ व्यक्तियों ने इस जगह को पहले ही घेर रखा था। वह लड़की भी धूप सेंकने इसी स्थान पर पहुंच चुकी थी। उसके कांपते अधनंगे बदन को इस धूप का सहारा ही बहुत था। लेकिन अभी उसने ढंग से वहां पैर भी नहीं टिकाए थे कि कुछ लोगों को उसके यहां खड़े होने पर आपति होने लग पड़ी। जैसे कि इस धूप को भी इन्होने ही खरीद रखा हो। तभी इस भीड़ में से एक व्यक्ति उठा और बाजू से पकड़कर उसे परे ऐसे धकेल दिया जैसे यह कोई अनावश्यक वस्तु हो। मासूम चेहरे पर एक अजीब-सा भाव समेटे वह थोड़े से आगे चुपचाप उसी छांव वाली जगह पर जाकर खड़ी हो गई और धूप को देख देखकर ही अपने शरीर में उसकी तपिश का अहसास जगाती रही। ठिठुरते पैरों को गर्मी देने के लिए वह एक पैर को दूसरे से गलती जा रही थी।

तभी एक भले मानुष ने वहां से गुजरते हुए उसके कटोरे में पांच रुपये का सिक्का डाला। सिक्का देखते ही उसकी आंखें चमक उठीं थीं। चेहरे के भाव बता रहे थे जैसे इस कड़कती सर्द सुबह में उसे इसी सिक्के की तलाश हो। सिक्के के साथ वह सीधे चाय के खोखे की तरफ दौड़ पड़ी। पांच रुपये होने के कारण उसे चाय के पौने गिलास से ही संतोष करना पड़ा। चाय पीते ही मानो उसके शरीर में जान आ गई थी। वह फिर अपने काम में रम गई थी। कोई बस बस स्टाॅप पर रुकती तो वह फटाफट उसमें चढ़ जाती और अपने मैले कटोरे को आगे कर भीख माँगने लगती। कोई उसे गाली बकता तो कोई घृणित नजरों से निहारता। कोई उसे धक्के देकर बाहर का रास्ता दिखाता तो कोई उसके शरीर की बास से चिढ़ जाता।

सीमा बस स्टाॅप के सामने खड़ी सब कुछ देख रही थी। सीमा, उसका पति अनूप और सात बर्ष का बेटा मयंक दिल्ली की गाड़ी पकड़ने के लिए बस स्टाॅप पर खड़े थे। सीमा लड़की के दर्द को समझ पा रही थी। उसने भी इस लड़की जितनी उम्र की अपनी लड़की को दुर्घटना में गंवाया था। सीमा को याद है उसकी कविता ने भी अपने बचपन को ऐसी ही कड़क सर्दी के ठंडे थपेड़ों में स्वैटर के अभाव में गुजारा था। इस लड़की को देखकर सीमा को अपनी बेटी कविता की याद ने घेर लिया था। फटेहाल स्वैटर की हालत को देखकर सीमा के मानसपटल पर फिर उस भयानक हादसे की तस्वीर उभर आई थी।

सीमा के परिवार की आर्थिक स्थिति नौ साल पहले ऐसी अच्छी नहीं थी जो अब है। उन दिनों उन्हे खाने को ढंग से एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी। अनूप नौकरी की तलाश में था। लेकिन इसी दौरान वह अल्सर की ऐसी गंभीर बिमारी से ग्रस्त हो गया कि इसके इलाज के लिए जो घर के पास वाली बहुत ही थोड़ी-सी जमीन थी उसे उन्हे बेचना पड़ा। अनूप एक गरीब परिवार से संबंध रखता था। माँ-बाप बचपन में ही गुजर चुके थे। चाचा-चाची के पास पला-बढ़ा अनूप कई मजबूरियों से होकर गुजरा लेकिन अपनी पढ़ाई में कभी उसने कोई कसर नहीं रखी। पिछले तीन साल से बिमार चल रहे अनूप की दवाईयों पर काफी रुपया खर्च हो रहा था। घर की सारी जिम्मेवारी सीमा के कंधों पर आ चुकी थी। रुपयों के लिए अब तो रिश्तेदारों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। गांव में तथा गांव से सटे शहर में यहां-वहां काम करके उसे अनूप के इलाज के साथ-साथ अपने परिवार की दो जून की रोटी का जुगाड़ करना पड़ रहा था।

कविता का सर्दी का डेढ महीना बिना स्वैटर के ही निकल चुका था। सीमा के पास अब इतना भी सामथ्र्य नहीं था कि वह अपनी लाडली के लिए एक स्वैटर खरीद सके या स्वंय ही बना पाए। रिश्तेदार या लोगों से उधार माँगने के लिए उसका मन उसे जरा भी इजाजत नहीं दे रहा था। वक्त के थपेड़ों ने उसे बता दिया था कि रुपए माँगने पर या तो मुझ जैसे गरीब को लोग एक बार में ही सीधे मना कर देंगे और यदि गलती से दे भी दिए तो ऊपर से चार बातें और सुनाएंगें। सीमा बातें सुनने को भी तैयार थी लेकिन उसके कदम तब रुक जाते जब वह सोचती कि वह उन्हे वापिस लौटाएगी कैसे? परन्तु माँ को तो अपनी लाडली के लिए कुछ न कुछ करना ही था। सीमा ने अपने हिस्से अब दूसरी जगह भी और काम ले लिया था। इससे जो रुपए बचे उससे सीमा ने बेटी के लिए कुछ ही समय में रात-दिन एक करके एक प्यारा-सा स्वैटर बुनकर तैयार भी कर लिया। लेकिन यह क्या! उसी रोज उसको पहनने वाली उनकी कविता एक भयानक हादसे की शिकार हो गई। स्कूल से घर आते वक्त एक ट्रक उसे कुचल कर चला गया था। कविता मृत्यु के आगोश में चली गई थी। वह स्वैटर आज भी सीमा ने संभाल कर रखा है।

अबकी बार लड़की के कदम सड़क की दूसरी तरफ खड़ी सीमा की ओर बढ़ते चले जा रहे थे। लेकिन इसी बीच दिल्ली वाली बस ने उसका रास्ता काट लिया था। सीमा की नजरें अभी भी लड़की पर ही टिकी हुई थी। इस ध्यान में उसे बस के आने का जरा भी पता नहीं चल पाया। सभी यात्री बस पर चढ़ रहे थे लेकिन सीमा अभी भी वहीं खड़ी उस लड़की को एकटक निहारे जा रही थी। अनूप ने सीमा के कंधे को लगभग झझकोरते हुए कहा, ‘सीमा क्या यहीं रहने का इरादा है? चलो, बस में चढ़ो।’

सीमा की तंद्रा एकदम टूटी। बस को सामने देखकर उसे शीघ्रता से उस पर चढ़ना पड़ा। उसे पता था कि इस छोटे से बस स्टाॅप पर लौंग रुट की बसें कम ही समय के लिए रुकती हैं। वे सिर्फ पहले से अंदर बैठी किसी सवारी को उतारने और बाहर खड़ी सवारियों को चढ़ाने के लिए ही रुकती हैं। मात्र कुछ क्षणों के लिए ही। जब तक लड़की सड़क पार करती सीमा वाली बस चल पड़ी थी। सीमा लड़की को कुछ देना चाहते हुए भी, कुछ नहीं दे पाई थी।

रास्ते में उस लड़की का ख्याल रह रह कर सीमा के मानसपटल पर कब्जा करता जा रहा था। लड़की की हालत देखकर लगता था जैसे उसकी माँ ने उसे पैदा होते ही सड़क पर भीख माँगने के लिए छोड़ दिया हो। उसके जन्म लेते ही जैसे माँ की ममता ने आखिरी सांसे ले ली हांे। परंतु यह इनके जीवन का सच है। इनकी टोली के जीने का ढंग। जो दूसरों को बेशक अटपटा या भद्दा लगे लेकिन यह उनकी दैनदिनी का अटूट हिस्सा है। इनकी दो जून की रोटी और अन्य जरुरतों के जुगाड़ का कसीदा। इनके समाज में बचपन की खिलखिलाहटों और अठखेलियों की जगह तो है लेकिन उसे शायद इन्हे महसूस करने का समय नहीं है। जन्म से मृत्यु तक इनके नसीब में ठोकरें ही लिखी रहती हैं। सीमा इनकी हकीकत से उस समय से वाकिफ थी जब वह अपने बूरे वक्त में रोज अपनी दिहाड़ी के लिए इनकी काॅलोनी से होकर गुजरती थी।

‘सीमा, ऐसे चुपचाप क्यों बैठी हो? क्या हुआ है? कंही आज पूरा सफर मौनव्रत धारण करके करने का इरादा तो नहीं है?’ अनूप के शब्दों ने सीमा के ख्यालों के प्रवाह को रोक दिया था।

‘नहीं, ऐसी बात नहीं है।’ सीमा ने ऐसे कहा जैसे वह अभी निद्रा से जागी हो।

‘तुम्हे देखकर लग तो ऐसा ही रहा है।’

‘मैं बस यूं ही..... उस लड़की के..............’

‘कौन लड़की?’ अनूप ने बात को बीच में ही काटते हुए प्रश्न किया।

‘मैं उस सुबह वाली भिखारिन लड़की के बारे में सोच रही थी। इतनी छोटी सी उम्र में ही इन्हे वे सब करना पड़ता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस कड़क सर्दी की सुबह ही इसे पेट की खातिर हर किसी के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। जो उम्र इसकी हूॅंसने, खेलने की है। उस उम्र में इतनी पीड़ा। नहीं नहीं.......। यह सब देखकर दर्द मुझे अंदर तक चीर रहा है।’ सीमा एकदम चुप-सी हो गई थी। हल्की-सी खामाशी के बाद सीमा फिर बोली,‘हमारी कविता ने भी न जाने इस ठंड को कैसे सहा होगा ............।’ कहते-कहते सीमा का गला भर आया था। आंखों में पानी उतर आया था।

‘अरे सीमा तुम भी सुबह-सुबह कहां इन लोगों की बातें लेकर बैठ गई हो। इनका तो जीवन ही ऐसे चलता है। चलो, अब इनकी बातों को छोड़ो और यह लो कुछ खा लो। सुबह से तुमने कुछ खाया भी नहीं है।’ अनूप ने नमकीन का पैकेट और बिस्कुट सीमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा।

‘नहीं, मेरा अभी कुछ भी खाने को मन नहीं कर रहा है।’

‘फिर भी कुछ तो ले लो।’ अनूप जोर देकर बोला।

‘नहीं, मुझे कुछ नहीं लेना है। भूख जैसे मर-सी गई है।’ सीमा उदास थी।

कुछ पल की खामोशी के बाद सीमा फिर बोली, ‘अनूप इस लड़की का चेहरा मुझे अतीत के उन पलों तक खींच ले गया र्है, जिन्हे याद करते हुए भी दिल डरता है। इसको देखकर मुझे हमारी कविता की याद हो आई थी। वह बेचारी भी उन दिनों एक स्वैटर के लिए तरसती रही और हम उसे वह स्वैटर तक न दे पाए थे। हमारी कविता को भी इन बेहरम ठंड के थपेड़ों ने न जाने कैसे-कैसे सताया होगा। यह सोच-सोचकर मेरा दिल बैठ जाता है। आज हमारे पास सब-कुछ है लेकिन माँ बोलने वाली मेरी प्यारी बेटी नहीं। उस बेटी के बिना कितने गरीब हैं हम!’ कहते-कहते सीमा के गालों से आंसुओं की धारा अपना रास्ता बनाती रही।

मयंक सीमा के साथ खिड़की की तरफ बैठा सब-कुछ चुपचाप सुन रहा था। जैसे वह माँ की बातों को समझने का प्रयास कर रहा था।

सीमा की बातों ने अनूप के अंर्तमन को भी छू लिया था। उसे भी अतीत की मजबूरियां और पीड़ाएं स्मरण हो आई थीं। गम में सरीक होते अनूप सीमा को ढाढस बंधाते हुए बोला,‘यही तो जिंदगी है सीमाँ उतार-चढ़ाव, सुख-दुख से भरी हुई। जिंदगी के ये रंग न होते तो शायद हमें इन दुखों-सुखों का जरा भी एहसास न होता। सभी अपने हिस्से के कर्म, अपने हिस्से के सुख-दुख लेकर जीते हैं। जो बीत गया उसे आगे आने वाले वक्त के लिए एक सीख के तौर पर इस्तेमाल करो। यही जीवन का मूल मंत्र है।’ यह सब कहते कहते अनूप ने सीमा को अपनी बाहों के घेरे में समेट लिया था।

सीमा को अनूप की बातों से काफी सहारा मिल रहा था।

सर्पीली सड़क पर दौड़ती हुई दिल्ली वाली बस अपने गंतव्य की ओर बढ़ी चली जा रही थी। सुबह जल्दी उठने के कारण सीमा थोड़ी ही देर में अनूप के कंधे पर सिर रखकर सो चुकी थी। मयंक माँ की गोदी में पहले ही बातें सुनते-सुनते सो चुका था।

पिछले कल हुई बारिश ने मौसम को और सर्द कर दिया था। आज सीमा एक बार फिर उसी बस स्टाॅप पर थी। लेकिन इस बार सिर्फ अनूप को ही जाना था। अनूप को शहर में एक मल्टीब्रांडिड कंपनी में कुछ बर्ष पूर्व एक अच्छी नौकरी मिल गई थी। स्वस्थ होते ही उसने यह नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के मिलते ही उनके दुख भरे छंट चुके थे। सीमा और मयंक ज्यादातर अनूप के साथ ही शहर में रहते थे। लेकिन कभी-कभार वह अपने गांव वाले घर पर भी रुक लिया करती थी ताकि घर की साफ-सफाई होती रहे। अनूप दिल्ली की इस सड़क को पिछले सात बर्षों से नाप रहा था। सीमा आज उस लड़की को कुछ देने की चाह में अनूप के साथ ही सुबह-सुबह चली आई थी। उसके हाथ में एक लिफाफा था जिसमें एक स्वैटर, सूट और जूतों का एक जोड़ा था। यह वही स्वैटर थी जो उसने उन मजबूर दिनों में पाई-पाई जोड़कर अपनी लाडली कविता के लिए प्यार और ममता के रंगों से बुनी थी।

अनूप के जाने के बाद बस स्टाॅप पर खड़ी सीमा ने बस स्टाॅप के इर्द-गिर्द का सारा क्षेत्र छान मारा लेकिन आज उसे वह लड़की कंही भी दिखाई नहीं दी।

‘वह उस दिन तो अंधेरी सुबह में ही यहां आ गई थी। आज क्यों नहीं आई होगी वह? कंही उसके परिवार वाले कंही और तो नहीं चले गए। वैसे भी ये लोग एक जगह ज्यादा दिन तो टिकते नहीं हैं।’ अपने में ही बुदबुदाते हुए वह बोलती जा रही थी।

सीमा के मन में कई विचार अंगड़ाईयां ले रहे थे। तभी धुंध में सीमा को दूर से एक साया आता दिखाई दिया। थोड़ी ही देर में वह धुंध को चीरता हुआ आगे निकल आया था। यह साया उसी लड़की का था जिसकी सीमा कब से राह ताक रही थी। लेकिन यह तो आज लंगड़ा कर चल रही थी और सेहत भी पहले से बहुत कमजोर थी। वह थोड़ी और नजदीक पहुंची तो सीमा ने देखा उसकी बाईं आंख में सूजन व नीलापन था। उसके कपड़े पहले से ज्यादा मैले थे। इस बार तो वह तार-तार हुआ स्वैटर भी उसके शरीर से गायब था। उसे देखकर सीमा का कलेजा फटने को हुआ जा रहा था।

सीमा ने साथ ही खड़े मूंगफली की रेहड़ी वाले से लड़की के बारे में जानने के इरादे से पूछा, ‘भाई साहब, यह सब उस लड़की के साथ कैसे हुआ? क्या आपको कुछ पता है?’ सीमा ने लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा।

पहले तो रेहड़ी वाला कुछ भी बताने से इनकार करता रहा लेकिन सीमा के बार-बार जिद करने पर वह बोला, ‘बहन जी, अब आपको क्या बताएं। चार-पांच रोज पहले की बात है। इसने सामने की दुकान से बिस्कुट का पैकेट खरीदा। उसके पास बिस्कुट की कीमत से एक रुपया कम था। जब तक वह दुकानदार छुटे गिनकर बिस्कुट का पैकेट वापिस लेता तब तक वह पैकेट खोल चुकी थी। एक रुपए की खातिर उस बेरहम दुकानदार ने हंगामा खड़ा कर दिया। उसने इस मासूम को बूरी तरह से पीटा। धोबी के कपड़े की तरह...............।’ कहते-कहते वह चुप हो गया।

कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद वह फिर बोला, ‘अगर हम दो-चार रेहड़ी वाले मिलकर इसे न छुड़ाते तो शायद यह जल्लाद एक रुपए के लिए इस मासूम को मार ही डालता। उस दिन ये बेचारी चीखती-चिल्लाती रही। पर मजाल कि किसी साथ ही खड़े व्यक्ति को इसकी आवाज़ सुनाई दी हो। सभी तमाशबीन बने रहे। बहन जी, गरीब ही गरीब की पीड़ा को समझ सकता है। ये बड़े लोग तो इन बातों को सिर्फ मुदा बनाकर अपने फायदे के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। गरीब के लिए सचमुच में कुछ करने की बात आए तो ये पीठ दिखाकर चल पड़ते हैं।’ ऐसी सामाजिक बिषमताओं पर रेहड़ी वाले का गुस्सा खूब फूटकर बाहर आ रहा था।

‘क्या लड़की के घर वालों ने पुलिस में शिकायत नहीं की?’ सीमा ने प्रश्न किया।

‘बहन जी, आप किन फालतु बातों के बारे में कह रही हैं। इस तरह का जुल्म, अपमान सहना तो इन बेचारों के नसीब में ही है। यदि ऐसी बातों के लिए ये पुलिस, कोर्ट-कचहरी का दरवाजा खटखटाते रहे तो ये भूखे मर जाएंगे। इन्हे पूछने वाला कोई न होगा। वैसे भी पुलिस को जगाने के लिए हम जैसे गरीबों को बहुत मशक्त करनी पड़ती है। यह सब नियम तो सिर्फ पैसे वालों के लिए बने हैं। किसी गरीब के लिए यहां से न्याय की उम्मीद रखना अपने आप को धोखा देने वाली बात होगी।’ रेहड़ी वाला अपने अनुभवों की कड़वी सच्चाई को बाहर निकाल रहा था।

रेहड़ी वाले के दिल में लड़की के लिए पूरी हमदर्दी थी। वह फिर बोला, ‘पता नहीं बहन जी, बेचारी को डेरे में ठीक ढंग से रोटी मिली भी होगी या नहीं। क्योंकि पांच सदस्यों के परिवार में यह लड़की और इसकी बूढ़ी माँ ही कमाते हैं। बाप है नहीं और बाकी तीनों बड़े लड़कों में से कोई दिन भर शराब के नशे में धुत्त रहता है तो किसी को आवारागर्दी से ही फुरसत नहीं मिलती। इसे देखकर साफ लग रहा है कि भाइयों की झिड़कियों और पेट की आग ने इस बेचारी को आराम करने का जरा भी मौका नहीं दिया होगा। जालिम ने कितनी बेरहमी से पीटा है बेचारी को। ईश्वर इसको कभी माफ नहीं करेगा।’ सब कहने के बाद रेहड़ी वाले ने एक गहरी सांस ली और मूंगफली खरीदने आए गा्रहक को मंूगफली देने में व्यस्त हो गया।

‘आपको इसके बारे में इतना सब कैसे पता है?’ सीमा जैसे तसल्ली कर लेना चाहती थी।

‘इन्होने जिस जगह पर डेरा लगाया है। वहीं पास में मेरा घर भी है।’

‘जी, जी। अब सारी बात समझ आई। आप लोगों ने लड़की को उस दुकानदार से बचाकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। यदि आप लोग न होते तो शायद इस बार फिर से मुझसे देरी हो जाती। लेकिन इस बार मैं जरा भी देरी नहीं होने दूंगी।’ सीमा ने अपनी यादों की गहराई में डूबकी लगाते हुए कहा।

‘जी, मैं समझा नहीं।’

रेहड़ी वाले की बात से सीमा फिर से जागी और रेहड़ी वाले की बात का जबाव देते हुए बोली,‘नहीं, कुछ नहीं। बस यूं ही।’ सीमा ने रेहड़ी वाले को टाल दिया था।

सीमा का पूरा ध्यान लड़की पर ही था। इससे पहले कि लड़की उसके नजदीक पहुंचे, उसने उसके लिए कुछ और सामान खरीदने हेतु पास की दुकान की तरफ रुख कर लिया था।

लड़की धीरे-धीरे सरकती हुई अब रेहड़ी के बिल्कुल पास पहुंच चुकी थी। रेहड़ी वाले ने उसका हाल-चाल पूछा और दोनों हथेलियां मूंगफली की भरकर उसके कटोरे में डाल दी। लड़की मुट्ठी भर मूंगफलियां तो छिलके के साथ ही फटाफट चबा गई। इससे लड़की की भूख का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था।

रेहड़ी से दो-तीन कदम दूरी पर खड़ा एक शख्स सिगरेट के धुंए के बड़े-बड़े कश हवा में फैंककर उसे और भी दूषित किए जा रहा था। पहनावे से वह अच्छे घर का का जान पड़ता था। लड़की अबकी बार उसकी तरफ मुड़ चुकी थी।

‘बाबू जी, कुछ पैसे दे दो। दो दिन से मैंने खाना नहीं खाया है।’ लड़की व्यक्ति के पास पहुंच चुकी थी।

उस व्यक्ति की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।

‘बाबू जी, कुछ पैसे दे दो। दो दिन से मैंने कुछ नहीं खाया है।’ लड़की ने अपनी बात को दोहराया लेकिन वह शख्स जानबूझ कर उसकी बात को अनसुना करता हुआ मजे से सिगरेट के धूंए के बड़े-बड़े छल्ले बना बनाकर हवा में उछाले जा रहा था।

‘बाबू जी कुछ पैसे दे दो। मैं बहुत भूखी हू।’ लड़की एक बार फिर घिघियायी।

इस बार वह शख्स नाक पर रुमाल रखते हुए गुस्से में चिल्लाया, ‘चल-चल आगे निकल। मेरे पास कोई पैसा नहीं है। सुबह-सुबह ही अपना थोबड़ा दिखा दिया है कमबख्त ने। तुम जैसों को देखकर तो किसी काम के पूरा होने की उम्मीद रखना ही बेकार है। चल आगे निकल। मनहूस कंही की।’

लड़की उस व्यक्ति की बात से डर गई थी। तभी एक लोकल रुट की बस सामने आकर रुकी। जैसे ही वह व्यक्ति बस पर चढ़ने को हुआ लड़की ने उसके पांव पकड़ लिए। फरियाद करती हुई वह फिर बोली,‘बाबू जी, मैं बहुत भूखी हूॅं। अगर मुझे खाना न मिला तो मैं मर जाऊंगी। आपको अपने बच्चों की कसम बाबू जी।’

‘मरती है तो मर। पर मेरा पीछा छोड़।’ उस व्यक्ति ने लात के एक जोरदार झटके के साथ लड़की को अपने से जुदा किया और बस पर चढ़ गया।

छिटककर सड़क के एक तरफ गिर पड़ी वह लड़की अपनी टांग को पकड़कर जोर-जोर से रोने लगी थी। शायद इस लात के झटके से उसके पुराने जख्म पर चोट लगी थी।

लड़की के रोने की आवाज सुनकर सीमा दुकान से दौड़ती हुई उसके पास पहुंची। नजदीक से उसके जख्म और भी गहरे दिखाई पड़ रहे थे। जुल्म की दास्तां सर्दी से कांपता उसका अधनंगा जिस्म साफ बयान कर रहा था। जख्मी आंख से बहते पानी के कारण आंख के दोनों ओर कीचड़ की एक मोटी-सी परत जमी हुई थी। उसे आंख खोलने में जब तकलीफ होती तो वह उसे जरा-सा मल दे रही थी। सचमुच उसकी हालत दयनीय थी।

सीमा ने सांत्वना भरा हाथ जब उसकी पीठ पर रखा तो वह दर्द से एक बार फिर कराह उठी। शायद सीमा का हाथ जख्म को छू गया था। लड़की ने सीमा का हाथ धीरे से अपनी पीठ से हटा लिया था। दुकानदार के अमानवीय व्यवहार की हद साफ नजर आ रही थी। उसके मुंह से बस यही निकला, ‘कोई इतना अमानवीय कैसे हो सकता है! वह भी इतनी छोटी-सी बच्ची के साथ।’

सीमा ने इस बार लड़की के सिर पर प्यार से हाथ फेरा। वह भावुक हो गई। इतने प्यार से उसे कभी किसी ने छुआ नहीं था। उसकी आंखों से निकलने वाली आंसु की हर बूंद कलेजे को अंदर तक चीर रही थी। एक भिखारिन लड़की के साथ सीमा के इस व्यवहार को सब लोग अजीब-सी नजरों से तमाशबीन बन देख रहे थे। सीमा ने वहीं सड़क के किनारे बैठे-बैठे ही लड़की को स्वैटर पहनाया। उसके पांव में जूते डाले। सूट के साथ पांच सौ का नोट और खाने का सामान उसके हाथ में दिया। ऐसा व्यवहार लड़की के साथ पहली दफा ही किसी ने किया था। उसकी आंखें खुशी से चमक उठी थी। लड़की ने दर्द की आह के साथ सीमा के पांव छूए और भावावेश में सीमा की छाती से लिपट गई। सीमा ने भी उसे अपनी बांहों में भर लिया था। ममता भरे अहसास से तर इस वक्त वह अपने शरीर के हर जख्म को भूल-सी गई थी। सीमा की आंखें भर आईं थी। आत्मसंतुष्टि का अहसास सीमा की नसों में तेजी से दौड़ रहा था। उसे अपनी कविता सामने खड़ी मुस्कुराती हुई नजर आ रही थी।

- पवन चौहान

गांव व डा0 महादेव, तहसील-सुन्दरनगर, जिला-मण्डी

हिमाचल प्रदेश- 175018

मो - 098054 02242, 094185 82242

Email: chauhanpawan78@gmail.com