The Author AKANKSHA SRIVASTAVA Follow Current Read घर की मुर्गी - पार्ट - 8 By AKANKSHA SRIVASTAVA Hindi Women Focused Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Vedanta 2.0 - 2 .**"Vedanta 2.0 — The First Book in the Worldthat Truly Unde... Unforgettable Voyage - Ranjan Desai - 2 : A few days passed by. After receiv... Madam Drachman and the 1887 Arizona flood: - Part 2 Madam Drachman and the 1887 Arizona flood: Part 2. The Downp... Mundhira Prologue"It feels cold around here... these woods make creep... One Call Before Midnight One Call Before MidnightThe digital clock on Ben’s nightstan... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by AKANKSHA SRIVASTAVA in Hindi Women Focused Total Episodes : 9 Share घर की मुर्गी - पार्ट - 8 (5.6k) 2.9k 8.6k एक दिन राशि को लेने उसके घर से व्योम और देवर जी आ गए अब तो राशि चाह कर भी रुक ना सकी दबे मन से वापस अपने ससुराल आ गयी। इधर जब वह ससुराल आई तो उसने देखा पूरा घर अस्त-व्यस्त बिखरा पड़ा है। किचन में उसकी छोटी ननद अंकिता खाना बना रही थी और शकुंतला जी लगातार उसकी मदद कर रही थी। राशि ने चुपचाप अपने कमरे से ये सारा दृश्य देखती रही । अगली सुबह राशि जल्द ना उठी और उसे किचन से भावना के बड़बड़ाने की आवाज आई। अरे जब भाभी गयी तो ठीक ठाक थी वहां जाते ही बीमार पड़ गयी। तभी ससुरजी टोकते हुए बोले क्यों वो इंसान नही। तीन सौ पैसठ दिन तो इस घर मे राशि ही दिखती है हर जगह बीमार है तो आराम कर लेने दो कुछ दिन। भावना चुप हो गयी और शकुंतला जी के साथ मिलकर खाना बनाने लगी। दो दिन तक घर का यह स्वरूप राशि को सकून दे रहा था कि तभी पापा जी ने बड़ी जोर से बरामदे में वैठे बैठे कहा- अजी शकुंतला जी जरा पकौड़े तल दीजिए तो मजा ही आजाएगा। शकुंतला जी ने तेज से गुस्साते हुए पापा जी को जवाब दिया- अजी यहाँ गर्मी में खड़े खड़े पसीना टपक रहा और इनको पकोड़े चाहिए। पकौड़े की तरह तलने की मुझे जरूरत नही। खड़े खड़े पैरों में दर्द।अरे भग्यवान पकोड़े और आपके पसीने से क्या लेना देना। अच्छा तो जरा किचन में खड़े हो कर आधे घण्टे काम कर लीजिये समझ आ जाएगा पकौड़े की कीमत। शकुंतला जी ने पापा जी को जवाब देते हुए कहा। पापा जी जोर से ठहाके लगाते हुए बोले वाह भाई वाह दो रोज खड़े होने पर तुम सब इतनी उफ़्फ़ह.. कर लिए लेकिन क्या किसी ने राशि बहू के बारे में सोचा बिल्कुल नही। या कभी राशि बहू ने ये कहा किसी से की खुद के फरमाइश को खुद से पूरा करिए। या कभी बहु ने ये कहा कि मुझे गर्मी लग रही ।बल्कि सदैव उसे सबकी पसन्द का ख्याल रखते हुए बढ़िया भोजन बना कर खिलाते देखा है। कभी भी उसे कुसी को ताना मरते बड़बड़ाते नही देखा। ना ही कभी उसे किसी की बुराई करते पाया। सदा जी जी मे सर हिलाने वाली बहु सबको नही मिलती शकुंतला जी। आज आप की बेटियां किचन में खड़ी हो गयी तो आपको समझ आया कि किचन में पसीना भी टपकता है। अगर इस घर मे अब मिलकर कार्य करे तो बहु भी भला क्यों बीमार हो। राशि ये सब अपने कमरे से सुन रही थी उसकी आंखें भर उठी। तब शकुंतला जी ने तय किया आज से सभी लोग मिलकर कार्य को निपटाएंगे ताकि बहू पर बोझ ना बना रहे। राशि ने उसी दिन पापा जी के पसंद के पकौड़े तल उन्हें खिलाया। उस दिन से सभी को समझ आ गया कि राशि भी इस घर का वो हिस्सा है जिसने पूरे घर को सँवार रखा है। बस इतनी सी थी ये लघु कहानी जिसमे घर घर की मुर्गी की व्यथा दिखाने की कोशिश की हु। राशि जैसी अनगिनत बहुए इस मकड़जाल में पिसती रहती है मगर राशि जैसी बहु मिलना सबके नसीब में नही। ‹ Previous Chapterघर की मुर्गी - पार्ट - 7 Download Our App