The Last Murder - 3 in Hindi Crime Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | The Last Murder - 3

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The Last Murder - 3

The Last Murder

… कुछ लोग किताबें पढ़कर मर्डर करते हैं ।

अभिलेख द्विवेदी

Chapter 3:

“मैं समझ गयी । हालाँकि, मुझे जैसे ही पता चला कि वो जर्नलिस्ट है तो इसलिए थोड़ा-सा टीज़र जैसा इन्फॉर्मेशन दिया ताकि अभी से नेक्स्ट नॉवेल की चर्चा शुरू हो जाए ।” संविदा की आँखों में चमक थी ।

“किया ठीक है तुमने, बस थोड़ा ध्यान रखना क्योंकि कब, किसके मुँह से कौन सी बात निकल जायेगी और तुम्हारी आने वाली कहानी, किसी और की होकर, तुम्हारी किताब से पहले मेरे इस शोरूम के शेल्फ पर आ जाएगी और इसका तुम्हें पता भी नहीं चलेगा ।”

“मैं ध्यान रखूँगी । अच्छा ये बताइये, मैंने मनीषा जैन को नहीं देखा, मुझे बड़ी खुशी होती अगर उनके जैसे लोग यहाँ आते । उन्हीं की तस्वीर मैंने पहली बार सिगार के साथ देखा था । गज़ब का बोल्डनेस है उनमें ।”

“वो जल्दी किसी से नहीं मिलती । और अच्छा है वो यहाँ नहीं आयी ।”

“क्यों?”

“तुम्हारी किताब से चिढ़ी हुई हैं । जिससे भी बात हो रही है उनसे तुम्हारी किताब की शिकायत कर रही थी । दरअसल उनकी भी पहली किताब मर्डर मिस्ट्री थी जिसपर फिल्म बन रही है लेकिन उन्होंने अब हॉरर-ड्रामा लिखने का प्रमोशन किया हुआ है, बस थोड़ी इनसेक्योर हैं कि कहीं तुम्हारी किताबों से उनके रीडर ना छूट जाएँ ।”

“अरे उनका लेवल अलग है और उनके जो रीडर होंगे, वो तो उनको पढ़ेंगे ही ।”

“ज़रूरी नहीं है । हॉरर-ड्रामा बहुत कम लोग पढ़ते हैं । वो लिख रहीं हैं इस मकसद से कि आगे भी उसपर फिल्म बने लेकिन जब तक ये सब होगा, तब तक तुम्हारा नाम मर्डर स्टोरी लिखने वाली फीमेल राइटर बनकर एस्टाब्लिश हो जायेगा ।”

“अरे ये तो बहुत दूर की बात हो गयी । कहाँ वो, उनका लिखने का स्टाइल और कहाँ मैं एक न्यूकमर ।” संविदा को आश्चर्य भी हो रहा था ।

“वो तुमसे उम्र में बड़ी हो सकती है लेकिन किसका टैलेंट कब और किसपर हावी होता है, ये सिर्फ मार्केट चलाने वाले समझते हैं । फिलहाल अपनी नेक्स्ट मैन्युस्क्रिप्ट कब दोगी?”

“लगभग कम्पलीट है, बस एक बार तसल्ली हो जाए, फिर आपको मेल कर दूँगी ।”

थोड़ी-बहुत दोनों की आपस में कुछ देर और बातें हुई और फिर संविदा वहाँ से निकल गयी । उसे समझ आ गया था कि नेक्स्ट स्टोरी जल्दी ही सबमिट करनी है । रॉबिन भी आगे के अपने प्लान बनाने में जुट गए थे । रॉबिन के तरीके से साफ था कि उन्हें बिज़नेस में ज़रा भी लापरवाही नहीं चाहिए । हालाँकि ये भी एक बड़ा चैलेंज है कि एक राइटर पर ऐसा दांव लगाना कि जिसकी अभी मार्केट में ज़्यादा पहचान नहीं है लेकिन उसी राइटर के साथ, एक साल में इतनी किताबें मार्केट में उतारनी है । कौन कहाँ क्या हासिल कर पायेगा, ये तो समय पर है लेकिन दोनों की रफ्तार देख कर लगता है इनके लिए सब मुमकिन ही होगा । आपको क्या लगता है?

वैसे, इधर संविदा के ऑफिस में उसका रुतबा तो बढ़ गया था लेकिन काम का प्रेशर अब इरा पर ज़्यादा आ जाता था और इससे वो खिन्न हो जाती थी । वैसे भी किसी कॉपीराइटर पर ज़रूरत से ज़्यादा कॉपी लिखने का भार दिया जाता है तो उसमें क्रिएटिविटी कम और फॉर्मेलिटी ज़्यादा दिखने लगी थी । यही इरा के साथ हो रहा था जिससे उसके हिस्से के क्लाइंट का बिज़नेस नहीं आ रहा था । उसे संविदा से कोई प्रॉब्लम तो नहीं थी लेकिन जब उसके हिस्से का भी काम उसके सिर पर पड़ता था तो उसमें एक चिड़चिड़ापन आ ही जाता था । बाकी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि बिज़नेस होना और क्लाइंट से पैसे आना ज़रूरी है, वो नहीं होगा तो उंगली उसी पर उठेगी जिसपर उस वक़्त ज़िम्मेदारी थी और जिसने उसे पूरा किया था । यहाँ इरा की गर्दन सबकी गिरफ़्त में होती थी ।

“यार संविदा तेरी बेस्टसेलर बनने के चक्कर में मैं लेस-सेलर बन कर रह गयी हूँ । देख ये हर बार नहीं चलेगा ।” इरा ने मौका मिलते ही अपनी बात कह दी ।

“हाँ, मैं जानती हूँ लेकिन क्या करूँ मैनेज नहीं हो पाता ।”

“अरे तो रिज़ाइन कर दे न! सिंपल है! वैसे भी तू अब सेलेब से कम नहीं है । कम-से-कम शहर के लोगों के लिए तो तू है ही ।”

“वो तो सिर्फ दिखने के लिए । जेब में कितने पैसे हैं ये कोई नहीं जानता ।”

“तो फिर तू खुद इसका रास्ता निकाल क्योंकि तेरे चक्कर में, मैं अपना काम नहीं बिगाड़ सकती । मुझे भी अपना करियर देखना है ।”

“ठीक है यार, मैं देखती हूँ और कुछ रास्ता निकालती हूँ ।”

“अच्छा, और बता कैसे-कैसे स्टॉकर से पाला पड़ा? किसी दूसरे सेलेब से मिलने का मौका मिला?” इरा ने नॉर्मल होते हुए अब थोड़ा गॉसिप का मज़ा लेना चाहा ।

“अभी तक तो ऐसे किसी रीडर से पाला नहीं पड़ा । हाँ, कुछ बहुत अच्छे रीडर, कॉम्पिटेटिव राइटर और कुछ पत्रकारों से पाला ज़रूर पड़ा है । मेरे खयाल से दूसरी किताब के बाद ही कुछ बदलता हुआ दिखेगा जिसकी चर्चा कर सकूँ ।”

“हम्म! और तेरी फेवरिट राइटर सुमोना रंगनाथन से मुलाकात हुई?”

“नहीं यार, एक बार उनका कमेंट या फीडबैक आ जाता तो लगता कि वाक़ई कुछ लिखा है ।”

सुमोना रंगनाथन इसी शहर और संविदा के कॉलेज से थी । लगभग 5 साल सीनियर और जानी-मानी नॉवेलिस्ट । सुमोना, संविदा की रोल मॉडल थी क्योंकि सुमोना ने भी एडवर्टाइज़िंग फील्ड से निकलकर माइथो-मिस्ट्री पर नॉवेल लिखा और फिर 5 सालों में इस तरह अपना सिक्का जमाया कि लोग उनके मुरीद होते चले गए । बेबाक इतनी कि किसी के भी बारे में जो कहना हो, खरी-खरी । सुमोना के साथ सबसे अच्छी बात थी करीब 7 भाषाओं पर पकड़ और लेखन में गहराई । उसकी किताबें हो या बातें, लोग काट नहीं पाते थे । उसकी पर्सनालिटी से संविदा इंस्पायर्ड थी । और इसलिए उम्मीद लगाए हुए थी शायद ।

“तू खुद क्यों नहीं जाकर उनसे मिलती? बोल देना कॉलेज की एलुमनाई को उनकी जूनियर गिफ्ट देने आयी है ।” इरा ने हिंट दिया ।

“पता नहीं यार, पब्लिशर से डिसकस करूँ?”

“उससे क्या डिस्कस करना? तू अपने एन्ड से कर के देख । क्या पता काम बन जाए!” इरा उसमें हिम्मत जगा रही थी ।

“तू चलेगी मेरे साथ? अकेले जाना सोच कर ही हिम्मत नहीं हो रही ।”

“मैं क्या करुँगी साथ में? मेरी मान, तू अकेले ही जा, नहीं भी कोई रिस्पांस मिलेगा तो थोड़ी किसी को कुछ पता चलेगा!” इरा की बात में दम तो तो था ।

"हम्म बात तो तेरी सही है!" ठीक है, सोशल मीडिया पर पूछ के लिए अपॉइंटमेंट ले लेती हूँ ।

"अरे, तू इतना फॉर्मल क्यों हो रही है? बेधड़क जा सीधे घर और मिलकर देख! कॉलेज के सीनियर को, जूनियर की तरफ से सरप्राइज भी मिलना चाहिए न! इरा ने उसके कॉन्फिडेंस को थोड़ा और मजबूत बनाया ।

संविदा को ये आईडिया जम गया था लेकिन प्रमोशन के लिए रॉबिन ने बोला था कि कोई भी स्टेप लेने से पहले डिस्कस ज़रूर करे । तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो किसे इग्नोर करे, रॉबिन की बात को या इरा की इस बात को । एक बात तो सही है कि अगर कुछ नहीं भी रिस्पांस मिलेगा तो थोड़ी किसी को पता चलेगा । और एक रिस्क से थोड़ी कुछ बिगड़ता है, आज़माने में कुछ नहीं जाता ।

प्लान कर के संविदा ने बिना प्लान वाले नाटक की कॉपी लिखी और पहुँच गयी सुमोना को अपना क्लाइंट बनाने ।

दरवाज़े पर घंटी बजाई तो दरवाज़ा नौकरानी ने खोला । उसने पूछा तो संविदा ने भी यही कहा कि कॉलेज से है, जूनियर है और कुछ काम से आयी है । नौकरानी ने वही मैसेज पास कर दिया । पैंतरा कब कितना सही बैठ जाये, इसके कैलक्युलेशन में बहुत दिमाग लगता है और अगर सही बैठ जाये तो अपनी काबलियत है लेकिन अगर ग़लत बैठा तो फिर शामत ही है । सुमोना दरवाज़े पर पहुँची तो उसे कोई सरप्राइज़ नहीं हुआ, हाँ उसने व्यंग्य से हँसा ज़रूर । संविदा को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन सुमोना ने इशारे में उसे अंदर आने के लिए कहा था तो वो चुपचाप उसके पीछे अंदर चली गयी । उसे बैठने के लिए इशारा किया और नौकरानी को कुछ लाने का इशारा किया, शायद खाने-पीने के लिए किया था ।

"तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ गयी झूठ बोलकर यहाँ आने की मिस संविदा? सुमोना ने बैठते हुए अपना सिगार जलाया ।

"वो दरअसल मुझे समझ नहीं आ रहा था कि डायरेक्ट कैसे कहूँ । और ये भी नहीं पता था कि आप मिलना भी चाहेंगी या नहीं । संविदा ने थूक गटकते हुए अपनी बात कही ।

तब तक नौकरानी भी ट्रे में स्नैक्स, पानी और चाय लेकर पहुँच गयी थी । लेकिन ट्रे में चाय की कप एक ही थी । संविदा समझ गयी ये उसी के लिए है । फिर भी उसने नज़रंदाज़ करने का दिखावा किया ।

"चलो कोई बात नहीं, अब आयी हो तो थूक गटकने के बजाए चाय-पानी पियो और अपनी बात कहो ।" सुमोना ने इस अंदाज़ से कहा कि संविदा को समझ आ गया कि उसपर एक एहसान हो रहा है ।

सुमोना को देख कर वो ये भी सोच रही थी कि कहीं ऐसी ही मनीषा जैन तो नहीं होंगी । ये सिगार पीने वाली फीमेल्स ऐसी ही होतीं हैं क्या? ख़ैर, अभी तो पहली शख्सियत से पाला पड़ा है, पहले इसी से निपट लें । यही खयाल ज़हन में थे ।