MAIN TO ODH CHUNRIYA - 1 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | मैं तो ओढ चुनरिया - 1

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मैं तो ओढ चुनरिया - 1

मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय एक

कोई भूखा मंदिर इस उम्मीद में जाय कि उसे एक दो लड्डू या बूंदी मिल जाय तो रात आराम से निकल जाएगी और वहाँ से मिले मक्खन मलाई का दोना तो जो हालत उस भूख के मारे बंदे की होगी , बिल्कुल वैसी ही हालत इस समय मेरे माता पिता का थी । मागा था एक लड्डू । न सही लड्डू , मलाई का दोना तो मिला । शुक्र करते बार बार सिरजनहार का ।

मेरे जन्म का स्वागत मेरे माँ – बाबा ने खुले दिल से किया था । करते भी क्यों न , पूरे सात साल के इंतजार के बाद उन्होंने मुझे पाया था । अनगिनत मन्नतें माँगी थी । तैंतीस करोङ देवी – देवताओं को सवा रुपए के प्रशाद का लालच दिया था । अब मेरे जन्म के बाद उन्होंने मन ही मन हर आराध्य को शुक्रिया कहा था । लोग बेटी के पैदा होने पर उदास होते होंगे , मुँह भी बनाते होंगे । जैसे बेटी न हुई , कोई बीमारी घर में आ गयी । इन लोगों को उन दम्पति से मिलना चाहिए जिनकी कोई औलाद नहीं है । तरसते हैं वे लोग , काश एक बेटी की दात ही उन्हें नसीब हो जाती । उन लोगों के दिल से पूछो , जिनके कई पीढीयों से बेटियाँ नहीं हुई । दीवाली के दिये की रोशनी फीकी और रंगोली मुरझाई सी दीखती है । दशहरे , राखी और भाईदूज पर भाइयों की कलाइयां और माथे सूने रह जाते है । जिनके कोई संतान ही न हो , उनके दुख का तो कहना ही क्या । जिंदगी बदरंग हो जाती है , लोगों के ताने अलग सुनने को मिलते हैं । पर ये बातें और दर्द , तकलीफ वे लोग कैसे समझ सकते हैं जिनके घर बिनबुलाए मेहमान की तरह हर साल दो साल में एक बच्चा आ जाता है । उन्होने बातें बनानी हैं । तो बनाते रहें । रवि और धर्मशीला बहुत खुश थे कि मैं उनकी जिंदगी में आ गयी थी ।

अङोसनें पहोसनें बधाई देने आती । शगुण का रुपया माँ को थमा मुझे गोद में उठा लेती ।

“ वाह जी , इसकी नाक तो बिल्कुल रवि जैसी है और गाल भी । आँखें गयी हैं माँ पर , बाल भी माँ जैसे घने हैं । हाथ की उँगलियाँ कितनी पतली और लंबी हैं । कितनी दुबली है ये । खूब मालिश किया करो । हड्डियां मजबूत हो जाएंगी । “

उनके जाने पर दुरगी दहलीज से मिट्टी उठा लाती । मेरे सिर से वारकर फेंकती । लाल मिर्चें वारकर आग में डालती । कहीं किसी की नजर लग गयी तो ...।

दूसरे दिन मेरी आँखें खुली तो मैंने कमरे का जायजा लिया । मैं एक एक चीज को ध्यान से देखना चाहती थी पर नजर टिक ही नहीं रही थी । बार बार फिसल जाती । मैं फिर से किसी चीज को देखने लगती ।

क्या देख रही है ? कहाँ आ गयी ? देख ले यह है तेरा घर । - किसी ने मुझे गोद में उठाकर सीने से लगा लिया । यह तो जानी पहचानी खुशबू है । तो यह है मेरी माँ । जिसके साथ मेरा नौ महीने पुराना रिश्ता है । मेरे चेहरे पर शायद मुस्कुराहट आ गयी थी । माँ निहाल हो गयी थी । उसने मुझे अपनी छातियों से लगाकर आँचल में छिपा लिया । मेरी आँखें नींद से मुंदने लगी और मैं सो गयी ।

तीसरे दिन रवि पंडित के पास गया छटी की पूजा के लिए समय मांगने पर , पंडितजी ने आने से मना कर दिया – अभी तो सूतक के दिन हैं । अभी की पूजा नहीं लगेगी । ऐसा करो – तुम एक बही , एक कलम , एक दवात लेकर बही पर स्वास्तिक यानि सतिए बनाना । फिर वह सारा सामान गणेश जी का और विधना माता का नाम लेकर एक लकङी की चौकी पर सजाकर बच्चे के सिरहाने रख देना । कहते है छटी की रात को विधना बच्चे की किस्मत लिखने आती है । तुम्हारी बच्ची का भला होगा । पूजा सूतक निकलने के बाद होगी जब तुम्हारी पत्नि शुद्ध होकर पूजा में बैठेगी । उस दिन के लिए पंडितजी ने सामान की लिस्ट थमा दी । रवि ने पंडितजी के पैर छूकर दो रुपए दक्षिणा दी । नोट को कुरते की जेब के हवाले कर पंडितजी ने उँगलियों पर कुछ गणना की । और दस दिन बाद का सुबह नौ बजे का मुहुर्त निकाल दिया । रवि ने खुश होकर एक बार फिर पंडित के पैर छुए और घर लौटा ।

लौटते हुए वह बाजार से बही की किताब , कलम दवात और गुङ ले आया । माँ को सारा सामान थमा दिया । दुरगी ने बिना कुछ पूछे सारा सामान संभाल कर रख लिया । तीसरे दिन उसने नीम की पत्तियाँ मिले गुनगुने पानी से दोनों माँ बेटी को नहलाया । घर आँगन गोबर से लीपा । चौकी अच्छे से धोई । शाम को लङकियों से गणेशजी बनवाए । फूल चढाकर हलवे का भोग लगाया । चौकी पर बही , कलम दवात रखकर श्रद्धाभाव से गले में पल्ला डालकर प्रणाम किया । आस पङोस में गुङ बाँटा ।

रवि बहुत देर से चुपचाप बैठा माँ को यह सब करते हुए देख रहा था । हैरान था कि कभी घर से बाहर न जानेवाली घूँघट में गठरी बनी रहनेवाली नितांत अनपढ उसकी माँ ने यह सब कैसे सीखा । उसे इस तरह हैरान परेशान देख दुरगी हँस पङी - “ इन रीति रिवाजों को मनाने के लिए किसी पढाई की जरुरत नहीं होती । ये तो अपने बुजुर्गों को देख देखकर अपनेआप आ जाते हैं । हर नयी बहु बङों को करते हुए देखती है और अपनी बारी आते ही वह भी निर्दोष तरीके से सारी विधि निपटा लेती है । इसमें हैरान होने की क्या बात है ? बता कौन सी किताब में यह सब लिखा है ? चिङिया को कौन सिखाता है कि उङना कैसे है और घोंसला कैसे बनाना है ? “

यह सब बातें मैं सुन रही थी । मुझे खुशी हुई , मैंने कोई शुभ कर्म किया था । मुझे एक अच्छा परिवार मिल गया था ।

बाकी अगली कङी में ...