The Author Alok Mishra Follow Current Read लेखक की चुनौती (व्यंग्य) By Alok Mishra Hindi Comedy stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books The Awakening Code .Part 5 of The Orion Protocol Mount Kailash Vault – Two Day... Laughter in Darkness - 10 Laughter in Darkness A suspense, romantic and psychological... The Missing Chapter - 6 Arjun, filled with rage, was dragging Jyothi away when Priya... The Secrets Beneath Mount Kailash The Orion Protocol: Part 4 Tibet–India Border, 17 Kilometers... The Girl Who Came Unwillingly - 15 Chapter 15 : "Footsteps Towards Unknown "Early in the mornin... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share लेखक की चुनौती (व्यंग्य) (213) 1.7k 5.9k लेखक की चुनौती साहित्य समाज का आईना होता है परंतु साहित्य भी समाज को उसके वास्तविक रूप में चित्रण से बचता रहा है। समाज में जहाँ अच्छाईयाँ, आदर्श और ईमानदारी है वही धूर्तता, मक्कारी और अनेकों बुराईयाँ भी है। हर व्यक्ति अपनी कहानी का नायक होने के साथ ही साथ किसी अन्य की कहानी का सहयोगी पात्र, विदूषक या खलनायक होता है। कहानियाँ हमारे आस-पास बिखरी पड़ी है उन्हें चुनकर कथा के नाटकीय रूप में प्रस्तुत करना कहानीकार की कला होती है। हमारे समाज में पढ़े जाने वाले साहित्य की कमी नहीं है परंतु पिछले कुछ दशकों में पाठकों की संख्या में अत्यधिक गिरावट आई है। इसका कारण पुस्तकों का मंहगा होना, टेलीविजन का विस्तार या समय की कमी के रूप में देखा जा सकता है। वर्तमान में एक अच्छी साहित्यिक पुस्तक का मूल्य एक साधारण पाठक की पहुँच से बाहर हो गया है। अतः साधन सम्पन्न लोग ही लेखक और पाठक रह गये है। पुस्तकों की दुकानों पर साहित्यिक पुस्तकें अपने पाठकों का इंतजार करती हुई धूल खाती रहती है। इससे लिखने के स्तर में भी अंतर आया है। लेखक अब आमजन के स्थान पर आमेजान के उच्च वर्ग के लिए लिखने लगे है। आम व्यक्ति से उठाया गया कथानक अक्सर गरीबी और भुखमरी के साथ-साथ उस समाज के कुछ अश्लील पहलुओं को बेचते हुए नजर आते है। लेखक पुस्तक लिखने के बाद भी प्रकाशन का साहस नहीं कर पाता है क्योकि प्रकाशन के बाद पुस्तकों को बेचा जा सकना आसान नही है। कुछ लेखक शासकीय सहायता और कुछ चांदो आदि की मदद से अपनी पुस्तकों का प्रकाशन करवा ही लेते है। ऐसे लेखक पुस्तकालयों और विद्यालयों में अपनी पुस्तक बेच पाने में सफलता भी स्वयं के प्रयासों से पा लेते है, परंतु लेखक को स्वयं शायद ही कोई आर्थिक लाभ मिलता हो। देखा जाये तो अनेकों लेखकों ने अपनी प्रतिभा को फिल्मों की ओर मोड़ दिया है। यहाँ गीतकार, पटकथा लेखन और संवाद लेखन ये वे अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे है। परंतु जैसा की हर जगह है, बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है वही यहाँ भी होता है। बडे़ और नामचीन लेखक जिनके नाम फिल्मों के पोस्टरों पर होते है छोटे लेखकों से दिहाड़ी पर काम करके उनका शोषण करते है। धमाकेदार कहानी, संवाद और गीतों के पीछे छुपी वास्तविक प्रतिभा का नाम को शायद ही कोई जान पाता हो। धारावाहिकों में भी फिल्मों की ही तरह लेखको का उपयोग होता है, परंतु निर्देशक के द्वारा बताये गये सूत्रों पर चलते हुए लेखक स्वयं की पहचान खो देता है। लेखकों की पीड़ा को कुछ कम करने के लिए बचता है, मंचीय लेखन। मंच पर जमे रहने के लिए काव्यमय चुटकुले बाजी का बहुत महत्व है क्योकि यदि आप अपने श्रोताओ को हँसाने में सक्षम है तो आप एक अच्छे कवि है। गंभीर कविता न कोई पढ़ना चाहता है और न कोई सुनना। ऐसे में कुछ चतुर कवियों ने अपने दल बना लिये है। वे कवि सम्मेलन जैसे आयोजनों को एक मुश्त कराने का ठेका लेते है। ऐसे कवि सम्मेलनों में वे ही कवि उन्ही कविताओं को पढ़ते औैर मंच पर बैठे अन्य कवि उसी तरह चुटकी लेते दिखाई देते है। इससें गंभीर कवियों के आत्मबल में कमी आयी है और तुकबंदी करने वाले इठलाते घूमते है। आज के युवा को साहित्य पढने को केवल पाठ्य पुस्तकों में मिल रहा है। समाज में तो कही साहित्य दिखाई भी नही देता। साहित्य के नाम पर फिल्मों और धारावाहिकों द्वारा परोसा जाने वाला अधकचरा साहित्य भी उसे वितृष्णा ही दे रहा है। फिर प्रतियोगिता के इस दौर में साहित्य के लिए उसके पास समय ही कहाँ है। तो क्या हम आगे साहित्य के बगैर ही जाने वाले है ? क्या लेखन कला समाप्ति की ओर अग्रसर है ? क्या लेखक भूखे पेट लिख सकता है ? क्या कोई पाठक भविष्य में बचा रहेगा ? आलोक मिश्रा "मनमौजी" Download Our App