Pyar bhi inkaar bhi - 1 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्यार भी इंकार भी - 1

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प्यार भी इंकार भी - 1

सूरज दूर क्षितिज में कब का ढल चुका था।शाम अपनी अंतिम अवस्था मे थी।धरती से उतर रही अंधेरे की परतों ने धरती को अपने आगोश में समेटना शुरू कर दिया था।आसमान मे मखमली बादल छितरे पड़े थे।लेकिन बरसात का अंदेशा नही था।
जुहू पर अच्छी खासी भीड़ थी। बिजली के खम्भो पर लगी ट्यूब लाइट जल चुकी थी।रंग बिरंगे कपड़ो मे लिपटे हर उम्र,हर वर्ग के मर्द औरत समुद्र की ठंडी लहरों का आनंद ले रहे थे।सब अपने मे मस्त।कौन क्या कर रहा है इसकी सुध लेने वाला कोई नही।
चारुलता और देवेन एक दूसरे का हाथ थामे एक छोर से दूसरे छोर की तरफ बढ़ रहे थे।दोनो की दोस्ती को एक साल से ज्यादा हो चुका था।इस बीते समय मे वे दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ चुके थे कि अजनबी उन्हें पति पत्नी समझने की गलती कर बैठते थे।
देवेन से चारुलता की मुलाकात तब हुई थी ,जब उसकी पोस्टिंग उसके ही दफ्तर मे हुई थी।देवेन मुम्बई सेन्ट्रल में एक्स ई एन आफिस में स्टेनो था।वहीं पर चारुलता की पोस्टिंग क्लर्क के पद पर हुई थी।
चारुलता केरल की रहनेवाली थी।वह गोरे रंग,लम्बे क़द और तीखे नेंन नक्श की आकर्षक युवती थी।चारुलता ऑफिस मे शांत खमोश बैठी रहती थी।जरूरत पड़ने पर ही वह देवेन से बात करती थी।देवेन को उसका चुप रहना अखरता था।कुछ दिनों तक तो देवेन ने कुछ नही कहा लेकिन एक दिन वह उससे बोला,"चारुलता
"जी"। उसने देवेन की तरफ देखे बिना काम करते हुए ही जवाब दिया था।
"भगवान ने बोलने के लिए तुम्हे भी जुबान दी है।हम दोनों साथ काम करते है।हमारी टेबिल भी पास पास है।लेकिन तुम ऐसे खामोश रहती हो।मानो किसी प्रियजन के बिछुड़ने का मातम मन रही हो।"
"मैं समझी नही।"चारुलता ने नज़रे उठाकर देवेन की तरफ देखा था।उसकी आँखों मे कुछ जानने की उत्सुकता थी।
"इसमें समझने के लिए क्या रखा है।जिंदगी हंसने खिलखिलाने का नाम है।औरत चिड़िया की तरह चहकती हुई अच्छी लगती है।तुम्हारी चुप्पी आफिस के वातवरण को बोझिल बनाये रहती है।मेरी निजी राय में मूक खामोश औरत ज़िंदा लाश के समान होती है।"
देवेन उस दिन न जाने आवेश मे क्या क्या बोल गया?उसकी बातों का चारुलता पर गहरा असर पड़ा।हर समय शांत खामोश रहनेवाली चारुलताउस दिन के बाद चहकने लगी।
उस दिन के बाद देवेन और चारुलता मे घनिष्ठता बढ़ने लगी।।रविवार को ऑफिस की छुट्टी रहती थी।एक शनिवार को ऑफिस से निकलते समय देवेन, चारुलता से बोला,"कल शाम को जूहू घूमने चलते है।"
चारुलता ने देवेन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।रविवार को सुबह से ही तेज बरसात होने लगी थी।पूरे दिन बरसात होती रही।ऐसा लग रहा था।बरसात आज थमेगी ही नही।लेकिन दोपहर के बाद बरसात अचानक बन्द हो गई।देवेन ने एक क्षण की भी देर नही लगाई।वह तैयार होकर घर से निकल पड़ा।
बरसात थम जरूर गई थी लेकिन आकाश मे अब भी काले बादल छाए हुए थे।वह बस से जुहू पहुंचा था।जिस जुहू पर जबरदस्त भीड़ रहती थी।उस पर गिने चुने लोग ही नज़र आ रहे थे।ऐसे बिगड़े हुए मौसम में उसे चारुलता के आने की उम्मीद कम ही थी।देवेन ने उसे पांच बजे का समय दिया था।अभी पांच बजने मे पांच मिनट बाकी थे।लेकिन लग ऐसा रहा था,रात हो गई हो।कुछ देर इन्तजार करने के इरादे से वह बस स्टॉप पर ही चहल कदमी करने लगा।
(शेष अगले भाग में