Kartvya - 5 in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | कर्तव्य - 5

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कर्तव्य - 5

कर्तव्य (5)


बारात में हमारी कुछ नई सहेलियों से मुलाक़ात हुई तो उनके साथ खेलने में बहुत आनंद आ रहा था । घर पर आने के बाद उन सब की याद आ रही थी लेकिन भाभीजी के सानिध्य में ज़्यादा कमी नहीं खली ।

शाम की दावत के लिए पूरी तैयारी हो रही थी, हम यह तय करना चाह रहे थे कि हम और पूर्व भैया कौन सी ड्रेस पहनें । हम अंदर से अपनी-अपनी ड्रेस ले आए और भाभीजी को दिखाने लगे, तभी दीदी ने कहा— “तुम लोग भाभीजी को परेशान मत करो।”

भाभीजी पूरी रात विवाह के कार्यक्रम में सो नहीं पाई थी,बहुत ही थकान के कारण उनकी आँखें झुकी जा रही थी । हमें बाहर करके दीदी ने उन्हें सोने के लिए कहा।

भाभीजी वहाँ लेट गईं और उन्हें नींद आ गई । हम लोग तो पूरी रात सोये थे तो हम फिर से दोस्तों और रिश्तेदारों के बच्चों के साथ खेलने लगे ।

शाम के समय भाभीजी के आने की ख़ुशी में दावत हुई। भाभीजी पूरा श्रृंगार करके सुंदर सी लहंगा पहन कर तैयार होकर बड़े भैया के साथ स्टेज पर बैठी किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी । हमने भी अपने नये कपड़े पहने थे, दावत शुरू होने पर पूर्व भैया ने सबसे पहले तरह-तरह की मिठाइयाँ खानी शुरू की।

“हम को मिठाइयाँ पहले नहीं खानी”यह कह कर हम लड़कियाँ चटपटे व्यंजनों का आनंद ले रहे थे ।सबके साथ मिलकर हमने भोजन का आनंद लिया ।

पीछे से किसी की जानी-पहचानी आवाज़ आई, “अरे! गुड़िया तुम यहाँ हो; कैसी हो?

मैंने पीछे मुड़कर देखा तो ख़ज़ांची भाईसाहब और भाभी जी मुझे प्यार से देख रहे थे ।

“नमस्ते भाभीजी , नमस्ते भाईसाहब आप भी भोजन करियेगा ।” मैंने कहा और अन्य लोगों से भी हम लोग कहते कि भोजन करियेगा ।

तभी हमारी कुछ अन्य सहेलियों के परिवार भी वहाँ आ गये , हम उन सब सहेलियों के साथ भाभीजी के पास जाकर उन सब का परिचय करा रहे थे ।मेरी सहेलियों को भाभीजी बहुत पसंद आई ।

रात होने पर हम थक गए और अपने कमरे में जाकर सो गए । सुबह ऑंखें खुली तो कुछ रिश्तेदार जा चुके थे, कुछ जाने की तैयारी में थे।

हम तो नई नवेली दुल्हन भाभीजी के पास गए और वहीं बैठकर आनंद लेते रहे ।

पूर्व भैया ने जब मुझे भाभीजी के पास बैठे हुए देखा तो वह ग़ुस्से से मुझे घूरते हुए मॉं से शिकायत करने लगे—
“देखो मॉं गुड़िया भाभीजी को परेशान कर रही है ।”

मॉं ने कहा— “कोई बात नहीं पूर्व, अब तुम दोनों भाभी के साथ खेल सकते हो और अपने कमरे में भी ले जा सकते हो।”

मैं भाभीजी को अपने कमरे में ले गई, वहाँ उन्हें बहुत अच्छा लगा; मैंने अपने खिलौने भी उन्हें दिखाये और कहा— “आप मेरे सभी खिलौनों से खेल सकतीं हैं ।” यह सुनकर भाभीजी ऑंखें भीग गई और उन्होंने मुझे गले लगा लिया ।

चार- पॉंच दिन के बाद भाभीजी अपने घर चली गई, हम सभी परिवार के लोगों को उनकी याद आ रही थी । पिछले पॉंच दिनों में ही भाभीजी ने अपने व्यवहार से सभी का मन मोह लिया ।

अब कुछ दिनों तक भाभीजी अपने घर पर ही रहीं, कुछ दिनों बाद सभी भाई उनको लेने के लिए गये ; मैं घर पर ही भाभीजी के आने का इंतज़ार कर रही थी ।

जब भाभीजी को लेकर आये तो मैं दरवाज़े पर ही उनका इंतज़ार कर रही थी, भाभीजी ने मुझे आते ही गले से लगा लिया; और कहने लगी— “गुड़िया तुम कैसी हो ?”

मैंने कहा— “मैं ठीक हूँ, लेकिन आपकी याद आ रही थी ।”

भाभीजी ने मुझे और पूर्व भैया को बहुत सारे खिलौने, कपड़े ,मिठाई दिये और कहा—“यह सब तुम्हारे लिए हैं ।”

हम सभी सामान लेकर मॉं के पास गये और भाभी जी को धन्यवाद कहा ।हम और भैया खिलौने निकाल कर खेलते हुए पूरे घर में चक्कर लगा रहे थे ।

क्रमशः ✍️

आशा सारस्वत