The Author Anand Tripathi Follow Current Read धरोहर By Anand Tripathi Hindi Adventure Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Split Personality - 159 Split Personality A romantic, paranormal and psychological t... The Angel Inside - 72 - Something's Burning... Author’s POVAfter the incident at the orphanage, a few days... The Garden of Unfinished Stories Leo found the garden on a day the world felt gray. His grand... Laughter in Darkness - 51 Laughter in Darkness A suspense, romantic and psychological... The Dark Lens: Uyghurs, China, and the True Cost of Modern Technology The Dark Lens: Uyghurs, China, and the True Cost of Modern T... 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में ले कर बोली रुक निगोड़े नोगोड़ी मैं अभी आई। हम सब घर आ गए थे लेकिन हमारा प्रश्न वही का वही रह गया। दिल्ली जैसे बड़े शहर में एक छोटे से घर की चार दिवारी के भीतर फिर वही प्रश्न गूंजने लगा की इस बार दिवाली का क्या योजना है। जैसे तैसे रात बीती। और भोर की पहली किरण ने हमारे मुंह को धोना शुरू किया। सब दन दना दन उठकर बैठ गए। लेकिन प्रश्न वही का वही पड़ा रह गया। जैसे कोई भारी बोझ था सर पर। दिन घोड़े की दौड़ की तरह चल रहे थे। लेकिन मन की गति दिवाली के नजदीक आते आते धीमी हो रही थी। उस दिन सुबह सुबह कोई खेल दिखाने गली की तरफ से आया। और उसके बाद बहुत सारी ऐसी कल्पना सामने घटी जैसे की मानो की वो सत्य ही है। सब कुछ कही न कही कुछ तो बया कर रही थी। अचानक मुझे याद आया की हमने इस बार की दिवाली कहा मनानी चाहिए। और मैं सीढ़ियों के दो दूनी चार करते हुए धमक करके नीचे पहुंचा। वहा घर की चौखट पर रिंकी अपने हाथो से मां के बाल बना रही थी। मैने हाफते हुए उनको कहा, क्यों न हम इस बार गांव चले और दिवाली। और चारो तरफ एक अजीब सी शांति छा गई। लेकिन मैं हाफ कर घर भरे जा रहा था। अचानक रिंकी बोलीं क्या है वहा वहा क्यों जाना है तुझे। मैं चुप था। लेकिन अचानक अम्मा बोल पड़ी। रिंकी चुप कर तुझे नही पता की वहा अपनी धरोहर है। जिसको हमारे पुरखों ने बनाया था। वहा मैं जन्मी थी बड़ी हुई थी और खेल कूद कर अपने जीवन को एक राह दिया। और तू कहती वहा क्या है। अरे वहा तो असली जन्नत ही है। मैं दुनिया की किसी भी कोने में मरू लेकिन मेरी अस्थियां मेरे पत्रिक निवास पर ही हो। ऐसा कहते हुए अम्मा तेज आसूं के साथ मध्यम सुर में रोने लगती है। जिंदगी के हसीन पल को याद करती कल्पना करती है। और बहुत पछताती है। इसलिए नहीं की वो अब इस धरोहर को छोड़ चुकी है। क्योंकि इसलिए की उनके बच्चो को ये नहीं पता है। की धरोहर क्या अमोलक चीज और गहना है। कुंभ का मेला, चाट, मिठाई, मदारी का खेल,खेत खलिहान और भी बहुत कुछ था मट्टी के खिलौने भी थे। घुमाने के लिए टायर भी हुआ करते थे। पैरो की खड़ाऊ, जनेऊ,और रस्सी वाली चप्पल पहनकर हम काका और बगल अस्पाक मिया और भी कई लोग मेला जाया करते थे। अरी रिंकी सुन ना तुझे पता भी है की मैं एक बार मुहर्रम को भी गई थी। रिंकी धीरे से बोली अम्मा किसका नाम ले रही हो। मुस्लिम त्योहार है ये। अम्मा धक्का देकर बोली। चुप कर ये सब आज के नखरे है। तुम्हारे और दूसरो के। हमारे समय में तो लोग कोई भी हो सब एक नजर से बेबाक और पाक और सिद्ध मन के होते थे। धर्म था लेकिन विश्वास में। आह मेरे गुजरे हुए कल। इतना कहकर और अम्मा बुमका मार कर रोने लगी। रिंकी के भी अंको में सहजता दिखाई दी। मैं भी थोड़ा ठिठका और सहमा। लेकिन मैने कहा। क्यों न हम गांव होकर आए। अम्मा बोली नहीं तो अभी दिवाली सिर पर है और तुम्हे अभी गांव जाना बेवकूफ मत बनाओ। नही अम्मा बेवकूफ नहीं बना रहा हूं। बस मैं तो अपनी बात कह रहा था। और कहो तो टिकट करवा लूं। अगर आपको मेरी यह इच्छा सही लगी हो तो। नही तो। इतना कहकर मैं चलने लगा जैसे मैं खड़ा हुआ। अम्मा बोली रुक मैं अभी आई। कुछ तक झाक कर वो अंदर गई और उसके पीछे गए हम। देखा की अम्मा अपनी अलमारी में से एक संदूक निकल कर कमर पर रखती है। और दरखती सीढ़ियों से उतरकर नीचे आकर हमे पाती है। और संदूक से एक चाबी निकलती है। जिसका उपयोग कभी हुआ ही नहीं था। लेकिन आज मैने उसकी आंखो में तरावट देखी। उसने हसमुख स्वर में कहा चलो हम गांव चलते है। वही दिवाली मनाई जाएगी। मैं स्तब्ध रह गया। मैने कहा सच में क्या हम गांव जा रहे है। उन्होंने कहा हा। बस फिर क्या था। हम सब गांव के लिए निकल पड़े। ऐसा पहली बार हुआ था की हम दीपावली मनाने के लिए घर से बाहर। निकले थे। रास्ते में कई छोटी बड़ी गुमटी और बड़े झरने भी मिले। बस उनको निहारना ही एक अलग सुख लगता था। हम घर पहुंचने ही वाले थे। की वो मिला जिसके घर हम बचपन में खेले थे। उनको देखा तो पहचान न पाया लेकिन उन्होंने मुझे बड़ी आसानी से पहचाना और कहा की। दोनो तीनों कहा इधर रास्ता भुलाए गए। तुम्ही ऊ छोरा हो जो हमको तंग किया करते रहे। चलो आओ गले लगाओ। हम भी चले। खेतान में गाय चर रही होगी चले खूटा बदल दे। मुझे तब बहुत कुछ अहसास हुआ। और मेरा मन भर आया। घर पहुंचा तो ऐसा अहसास हुआ। जैसे कोई राम की तरह अवध का वनवास काट कर आया हो। अम्मा बोली जय हो बाबा। वो हमारे पूर्वजों का आह्वान करती है। और रिंकी ने भी हाथ जोड़ कर निवेदन किया। घर साफ हुआ और दीप प्रज्वलित किया गया। हम तीनो ने नए कपड़े पहने। ईश्वर की प्रार्थना की। और घर के बाहर अंदर और खप्पर पर दीपक रखा। मन में खुशी थी की हम अपने पुराने घर को जिंदा कर दिया। इतना कहकर सब सोने चल दिए। और रिंकी हस कर बोली की मिल गया अम्मा को उनकी धरोहर। Download 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