Vaishya ka Bhai - 1 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | वेश्या का भाई - भाग(१)

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वेश्या का भाई - भाग(१)

वेश्या या तवायफ़ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने के नाम मात्र से ही घृणा होने लगती है,सभ्य समाज के लोंग इस शब्द को और ये शब्द जिससे जुड़ा है उसे अभद्र मानते हैं लेकिन कभी किसी ने ये सोचा है कि जो वेश्या बनती है वो स्वयं नहीं बनती ,बनाई जाती है और हमारा ये सभ्य समाज ही उसे ये कार्य करने पर विवश करता है,
वो वेश्या भी एक साधारण जीवन जीने की इच्छा रखती है,वो भी अपने लिए सम्मान चाहती है,वो भी चाहती है कि उसका एक परिवार हो जिसका वो ध्यान रखें,परन्तु उसकी भावनाओं को कभी कोई नहीं समझता,उसका परिचय केवल अश्लिलता एवं अभद्रतापूर्ण ही दिया जाता है, समाज सदैव उसे कुदृष्टि से ही देखता है,
उसका रूप-यौवन,गायन एवं नृत्य की प्रशंसा केवल रात्रि में होती है,जो पुरूष उसके पास जाता है लेकिन उस पुरूष को अपने घर की बहु-बेटियों का उस गली मुहल्ले से गुजरना भी गँवारा नहीं होता,वें स्त्रियाँ नहीं होतीं बल्कि पुरूष के मनोरंजन ,खेलने और रात बिताने का सामान होतीं हैं,जब जी भर गया तो नया खिलौना लेलो।।
कोई भी लड़की वेश्यावृत्ति में अपनी मर्जी से नहीं उतरती,उसे मजबूर किया जाता है यहाँ उतरने के लिए,ऐसी ही एक कहानी है कुशमा की जिसे हालातों ने एक वेश्या बनने पर मजबूर कर दिया जिसका नाम बाद में केशर बाई रखा गया और फिर उसका बिछड़ा हुआ भाई किस तरह उसे इस वेश्यावृत्ति के दलदल से निकालता है,ये अभागी उसी कुशमा की कहानी है....
कहानी शुरू होती है कहानी के मध्य भाग से तब बिट्रिश राज्य था,भारत गुलाम था और आएं दिन स्वतंत्रतासेनानी अपने देश को बचाने के लिए कुछ ना कुछ करते रहते थे और अंग्रेजों को ये कतई गवारा नहीं था,आए दिन आन्दोलन हो रहे थे।।
और वहीं शहर का बहुत ही मशहूर कोठा था ,जहाँ बेहतरीन से बेहतरीन हसींन और नाजनी़न वेश्याएं थी,उस कोठे की मालकिन का नाम गुलनार ख़ाला था,गुलनार एक जम़ाने में किसी गाँव के बूढ़े जमींदार की रखैल हुआ करतीं थीं,उसे जमींदार ने दिलासा दिया था कि वो उससे शादी करेगा।।
लेकिन जमींदार के पास औरतों की कोई कमी नहीं थी,वो तो गुलनार को झूठे दिलासे दिया करता था,इस बात से गुलनार जमींदार से काफ़ी ख़फ़ा हो गई ,फिर गुलनार ने जमींदार के बड़े से मौहब्बत का नाटक रचाया वो इस नाटक में कामयाब भी हुई ,जमींदार का बेटा गुलनार को दिल-ओ-जान से चाहने लगा चूँकि जमींदार बहुत ही बड़ी जमीन-जायदाद का मालिक था इसलिए गुलनार ने एक साज़िश रची।।
उसने जमींदार के बेटे के कान भरें कि अगर तुम अपने वालिद का खू़न का कर दो तो तुम इतनी बड़ी जमीन जायदाद के मालिक बन जाओगे और फिर हम तुम शादी भी कर सकते हैं क्योंकि जब तक तुम्हारे वालिद जिन्दा रहेगें तो हमारी शादी हर्गिज़ नहीं होने देगें।
तो फिर एक रात जमींदार के बेटे ने अपने पिता का कत्ल करवा दिया,गुलनार ने जमींदार के बेटे से शादी कर ली दोनों कुछ दिन खुशी खुशी रहें लेकिन फिर जमींदार के बेटे का गुलनार से मन भर गया और वो उसे कलकत्ता घुमाने के बहाने ले गया और रात को उसी होटल में उसे सोता हुआ छोड़ आया जहाँ वें ठहरें थे,
जब गुलनार को इस बात का पता चला तो उसके पैरों तलें जमीन खिसक गई क्योंकि उसके पास सिवाय अपने तन के फूटी कौड़ी भी नहीं थी,होटल का किराया बसूलने के लिए होटल के मालिक ने उसके साथ बदसलूकी करनी चाही तो उसने वहाँ रखें फूलदान से उसके सिर को लहुलुहान कर दिया और वहाँ से भाग आई लेकिन फिर उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया,होटल के मालिक ने उसकी रिपोर्ट दर्ज करा दी थी,बिट्रिश शासन था तो गुलनार पर सख्त कार्यवाही हुई और उसे पकड़कर जेल भेज दिया गया।।
जब कुछ महीनों बाद वो जेल से निकली तो उसके पास ना रहने का ठिकाना था और ना खाने का ,भूखी-प्यासी दर-दर भटकने लगी और एक रात बेहोश़ होकर वो सड़क पर गिर पड़ी,जब उसे होश़ आया तो वो एक कोठे में थीं,तब से आज तक वो इसी कोठे में हैं,बस उसके ओहदे में थोड़ा इज़ाफ़ा हुआ है कि अब वो तवायफों की मालकिन है,लेकिन उसने बाद में उस जमींदार के बेटे को भी मरवा दिया था।।

तो उसी गुलनार के कोठे में दो तवायफें बैठकर बात कर रहीं हैं.....
क्यों री! केशर ! क्या हुआ तुझे? ऐसे चेहरा लटकाकर क्यों बैठी है? शकीला ने पूछा।।
अब क्या बताऊँ तुझे? मत पूछ,केशर बोली।।
क्यों? ऐसा भी क्या है जो ना पूछूँ? शकीला बोली।।
पता है कल रात ऐसा ख़रीददार आया था कि मुझे देखकर उसके चेहरे पर पसीना छलक आया,केशर बोली।।
माना कि तू बड़ी खूबसूरत है,हूर लगती है लेकिन तुझे देखकर तो मुस्कुराहट आनी चाहिए थी ना कि पसीना,शकीला बोली।।
हाँ! रे! वही तो सोच रही हूँ रात से,फिर उसने मुझे हाथ भी नहीं लगाया और ऐसे ही मुफ्त के दाम देकर चला गया,केशर बोली।।
बड़े ताज्जुब़ वाली बात है,तुझ जैसी मक्खन-मलाई को जो हाथ भी ना लगाएं,तो वो त़ो बड़ा नाशुक्रा होगा,शकीला बोली।।
वही तो सोच रही थी रातभर से,केशर बोली
अपने अदाओं से तूने उसे मदहोश करने की कोशिश नहीं की,शकीला ने पूछा।।
की थी शकीला,बहुत कोशिश की थी,लेकिन कमबख़्त पिघला ही नहीं,केशर बोली।।
तो कोई और ही मिट्टी का बना होगा,शकीला बोली।।
मुझे भी यही लगता है,केशर बोली।।
ये तो काफ़ी पत्थर दिल निकला,शकीला बोली।।
हाँ! री! आज तक कोई भी ऐसा ना आया केशर की चौखट पर जो दोबारा आने पर मजबूर ना हुआ हो,केशर बोली।।
हाँ! री! जाने दे,ज्यादा सोंच मत,कभी कभी भूल से शरीफ़ लोंग भी आ जाते हैं कोठे पर,भूले-भटके से,शकीला बोली।।
शायद सही कहती है तू,केशर बोली।।
तो चल अब मैं चलती हूँ,खा पीकर थोड़ी देर सो लेती हूँ क्या पता रात को कितनों को झेलना पड़ जाएं?शकीला बोली।।
हाँ! तू जा मैं भी जाती हूँ ,कुछ कपड़े पड़े हैं धोने को धो लेती हूँ और गुलनार ख़ाला ने भी मुझे बुलाया था,उनसे जाकर पूछती हूँ कि क्या बात है? केशर बोली।।
ठीक है तू जा उनके पास ,शकीला बोली।।
और फिर केशर ,गुलनार के सामने हाजिर हुई और उससे पूछा...
आपने मुझे याद किया ख़ालाजान!
हाँ! आइए! तश़रीफ़ रखिए और हमारी बात को ध्यान से सुनिएगा,गुलनार बोली।।
जी! खालाजान! केशर बोली।।
आज नवाबसाहब की हवेली में महफिल सँजी है और आपको वहाँ एक मुजरा पेश करना होगा,बहुत ही रईस हैं नवाबसाहब,अगर उनका दिल खुश हो गया तो नज़राने के तौर ना जाने आपको कौन सी बेसकीमती चीज तोहफे में दे दें।। ,गुलनार बोली।।
जी! खाला! मैं पुरजोर कोशिश करूँगीं,केशर बोली।।
ख्याल रहें वहाँ और भी रईसजादे आऐगें,आपको सब पर अपनी निगाहों के तीर चलाने होगें,गुलनार बोली।।
जी! मैं ख्याल रखूँगी,केशर बोली।।
हमें आपसे यही उम्मीद थी,तो जाइए फिर रात के पहनने के लिए लिब़ास चुन लीजिए और एक बार हमें जरूर दिखला जाइएगा,गुलनार बोली।।
जी! खाला! और इतना कहकर केशर वहाँ से चली गई और रात की तैयारी करने लगी.....

रात हुई जब तैयार होकर केशर अपने कमरें से निकली तो सबकी निगाहें उस पर टिक गईं,गुलनार उसे देखकर बोली.....
तौबा...महताब़ लग रहीं हैं आप,अब जाइए देर ना कीजिए,कब से नवाबसाहब ने पालकी भेजकर रखीं है,बाहर खड़ी है,आराम से जाइए,मैं बब्बन और जग्गू को भी आपके पीछे भेज रही हूँ आपकी हिफ़ाजत के लिए।।
जी! खालाजान!केशर बोली।।
और केशर बाई पालकी में बैठकर नवाबसाहब की हवेली को रवाना हो गई.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....