Prem Gali ati Sankari - 19 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 19

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प्रेम गली अति साँकरी - 19

19 ---

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अम्मा के साथ शीला दीदी और स्टाफ़ के लोग व कुछ विजिटिंग फ़ैकल्टी थी | सब लोग कॉन्फ्रेंस-रूम में थे | अम्मा के यू.के के वो स्टूडेंट्स जो वहाँ नृत्य की कक्षाएँ चला रहे थे और उनके साथ वहाँ के दो ब्रिटिश स्पॉन्सरर्स भी आए हुए थे | वे वहाँ के केंद्र को एक बड़े संस्थान के रूप में परिवर्तित करना चाहते थे | अभी तक अम्मा के स्टूडेंट्स निजी तौर पर नृत्य-केंद्र संभाल रहे थे | उन लोगों की इच्छा थी कि यहाँ की तरह वहाँ भी विभिन्न भारतीय शास्त्रीय कलाओं का समावेश किया जा सके | उसके लिए बड़ा स्थान,बिल्डिंग, प्रत्येक विधा के गुरु आदि की आवश्यकता थी | उन्होंने काफ़ी दिन पहले अम्मा से बात की थी और ‘प्रेजेंटेशन’तैयार करने की रिक्वेस्ट भी की थी | वे चाहते थे कि इस बार के वार्षिक उत्सव में सब विधाओं को शामिल करने का कम से कम एनाउंस करने तक की प्रक्रिया को तैयार किया सके | इसके बाद वहाँ कितनी तैयारियाँ करनी जरूरी थीं | 

मैं झिझकती हुई हॉल के बाहर जाकर खड़ी हो गई | अम्मा मुझसे अधिक किस पर भरोसा कर सकती थीं? आखिर मैं ही तो उनके काम को संभालने वाली थी! वे मुझे तैयार करना चाहती थीं लेकिन मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही थी | मुझसे अधिक तो शीला जीजी उनका सहारा बन रही थीं | मैं जानती थी कि माँ की अपेक्षाएँ मुझसे क्या हैं लेकिन अपने स्वभाव के अनुसार ही चलता है मनुष्य!अम्मा जैसी शिद्दत कहाँ थी मुझमें !!

“आ जाओ न अंदर ---”शीला दीदी ने मुझे देख लिया था,वे दरवाज़े के पास मुझे बुलाने चली आईं थीं | कॉन्फ्रेंस टेबल पर लैपटॉप रखा था और सामने स्क्रीन पर प्रेजेंटेशन की पूरी तैयारी हो चुकी थी | यू.के से प्रपोज़ल देखने व उस पर चर्चा करने कई लोग आए थे जिससे जब अम्मा वहाँ जाएँ,तब शुरुआत की जा सके | यह पार्टी दरसल, पापा के एक्स्पोर्टर्स के द्वारा ही भेजी गई थी | इसीलिए अम्मा-पापा दोनों को ही इस प्रोजेक्ट में अधिक रुचि थी | साथ ही भाई का वहाँ होना इनके लिए एक और प्लस प्वाइंट था | 

मेरे हॉल में प्रवेश करने पर सबकी दृष्टि मेरे चेहरे पर घूमने लगी | ‘गिल्ट’ महसूस कर रही थी मैं! कॉन्फ्रेंस-रूम में अधिकतर अम्मा के पास वाली कुर्सी मेरे लिए खाली रहती थी,आज भी थी | मैं झिझकती हुई वहाँ जाकर खड़ी हो गई | अम्मा ने मुझे प्यार से देखा, मैं जानती हूँ –अम्मा के मन में मेरे लिए कोई शिकायत नहीं होती थी ,मेरे लिए क्या--- उन्हें मैंने कभी शिकायत करते हुए देखा ही नहीं था लेकिन मैं जब भी ऐसा कुछ कर बैठती, खुद ही ग्लानि होती थी,कैसे लग गईं थीं मेरी आँखें?नींद भी इतनी गहरी कि अभी तक पूरी चेतन ही नहीं हुई थी | 

आज अम्मा की एक तरफ़ पापा भी बैठे थे और शांती दीदी पापा के बराबर वाली कुर्सी पर | शेष स्टाफ़ के चुनींदा लोग थे और विशेष वह उत्पल चौधरी जिसने प्रेजेंटेशन तैयार किया था | वह संस्थान के साथ कई वर्षों से जुड़ा हुआ था और अम्मा से मिलने अक्सर आया करता था | खासा हैंडसम युवा था वह !और इंटैलीजैन्ट भी ! संस्थान का इस प्रकार का काम अधिकतर वही करता था | 

उत्पल को देखते ही मैंने आँखें मिचमिचाकर उसकी ओर देखा | उसने मेरी तरफ़ एक मुस्कुराती दृष्टि डाली और जैसे बैठने का इशारा किया | वर्षों से संस्थान से जुड़ा यह लड़का काम करने में बड़ा चुस्त था | 

“शी इज़ माई डॉटर अमी ---टेक्स केयर ऑफ द इंस्टीट्यूट---” अम्मा ने अतिथियों से मेरा परिचय मुस्कुराते हुए करवाया था | सबने मुझे बड़ी आत्मीयता से ‘विश’किया | मुझे ही अंदर कहीं कुछ कचोट रहा था, मैं उस परिचय के लायक थी ही कहाँ ? मुझसे ज़्यादा तो शीला दीदी और रतनी इस आत्मीयता के हकदार थे लेकिन मैं उनके रक्त, माँस, मज्जा से बनी थी | मैं कैसी भी थी लेकिन उनकी अगली पीढ़ी थी और हर चीज़ पर मेरा नाम खुदाथा | भाई तो पहले ही इस सबसे निकल भागा था | कभी-कभी मुझे लगता कि भाई कहीं जान-बूझकर तो नहीं गया जिससे उसे यहाँ के कर्तव्यों से छुटकारा मिल सके | बार-बार ऐसा कुछ सोचती फिर सिर को झटका भी दे देती | क्या बेकार की बातें सोचती हूँ ? लेकिन क्या करें समय ही कुछ ऐसा देख रहे थे कि बढ़ती उम्र के माता-पिता एकाकी पड़े रहते और बेटे विदेश जाकर उनके मन-आँगन के लहलहाते हुए पेड़ से पके हुए पत्तों की भाँति ऐसे अलग हो जाते कि फिर पेड़ों की शाखें सूख जातीं लेकिन उन पर फिर हरे पत्ते दिखाई नहीं देते | 

मुझे पिछले दिनों ही हुआ एक वाकया बहुत बार परेशान करता था--- बार-बार परेशान करता था | दिल्ली के पॉष इलाके में एक ब्रिगेडियर परिवार था | उनकी बच्ची ने हमारे संस्थान से कई वर्ष नृत्य की शिक्षा प्राप्त की थी | दो बड़े भाई ,अकेली लाड़ली बहन ! बड़े होने पर भाई अधिकतर अन्य परिवारों की तरह विदेशों में जा बसे | एक अमरीका में तो दूसरा स्वीडन में | अमरीका वाले भाई ने अमेरिकन लड़की से विवाह किया लेकिन दूसरे बेटे की शादी और बिटिया की शादी यहीं से हुईं थीं | हम सब लोग उन दोनों विवाहों के साक्षी हैं | क्या शानदार विवाह हुए थे ! वैसे बड़े बेटे की अमेरिकन बहू का भी वैसे ही स्वागत किया गया था | जब वह शादी करके आया तब ब्रिगेडियर साहब ने खूब शानदार पार्टी दी थी | लगता था जैसे उस परिवार के जैसा कोई परिवार सुखी था ही नहीं! और बच्चे कितने आज्ञाकारी, संस्कारी !

कई वर्षों तक यह गलतफ़हमी चलती रही | बिटिया दिल्ली में ही थी,वह और उसके पति माता-पिता का खूब ध्यान रखते | लगभग हरेक वीकेंड्स में आते-जाते रहते | अचानक माँ बिना किसी बीमारी के चल बसीं | बेटों को सूचना दी गई | बेटों ने आपस में सलाह की, माँ के मरने में छोटा चला जाए,पिता के लिए बड़ा चला जाएगा | बहन से बात हो रही थी कि पिता ने सुन लिया और अपना कमरा बंद करके अपने माथे में गोली दाग ली | पत्र भी लिख गए कि किसी के भी आने की ज़रूरत नहीं है, उनके पार्थिव शरीर को उनका कोई बेटा हाथ नहीं लगाएगा | दोनों के अंतिम संस्कार बेटी और दामाद ने किए | इस दुर्घटना से हा-हाकार मच गया था | मैं सोचती रह गई थी कि बेटे ऐसे भी होते हैं?

‘भाई ने अपनी राह चुन ली न ! मैं कहाँ चुन पाई थी | अम्मा-पापा की चिंता वाजिब ही थी मैं तो एक पार्टनर तक अपने लिए नहीं चुन पाई थी | भाई और एमिली का गोद लिया हुआ बच्चा भी कितना बड़ा हो गया था और जब यहाँ आता, अम्मा-पापा के चेहरों पर रौनक खिल जाती, मेरे भीतर भी---साथ ही एक झीनी सी कसक भी!लेकिन इस सबका उत्तरदायी कौन था ? मैं ही न ? कॉन्फ्रेंस-रूम में बैठे हुए भी मेरा मन न जाने कहाँ-कहाँ घूम रहा था | 

सब सैटल हो चुके थे, उत्पल ने बड़े विनम्र स्वर में पूछा ---

“मे आई ---?”

“श्योर –प्लीज़ ---” बाहर से आए हुए मेहमानों ने कहा | उनका काफ़ी समय जा चुका था | उन्हें शहर में और भी कई काम थे | सबसे पहले हमारे संस्थान में मीटिंग थी इसलिए उन्हें अपने आगे की मीटिंग्स के बारे में भी सोचना पड़ रहा था | 

“माफ़ करिए आप सब---–कुछ कारणों से देरी हो गई है | मैं अपनी और संस्थान की ओर से आपका ---सबका स्वागत करती हूँ | मुझे पूरा विश्वास है कि हमने मिलकर जिस काम को शुरू करने का सपना देखा है, वह ज़रूर पूरा होगा | आप सबको शुक्रिया और हम सबको शुभकामनाएँ | ” अम्मा की विनम्र आवाज़ का सबने ताली बजाकर स्वागत किया | अम्मा ने उत्पल से कहा ;

“उत्पल आप शुरू करें ---”

“जी---” उत्पल का ध्यान न जाने कहाँ था | वह सब तैयारी करके खड़ा था | अचानक बौखला सा गया और अपने लेपटॉप की ओर चल पड़ा | 

सबको प्रेजेंटेशन बहुत पसंद आया और वहीं पर सब बातें फ़ाइनल हो गईं | एक-दूसरे को बधाई दी गई और अम्मा ने मेहमानों से लंच के लिए चलने की रिक्वेस्ट की | उन्हें कई महत्वपूर्ण काम थे किन्तु अम्मा-पापा के इसरार करने के कारण सब लंच के लिए मान गए |