Kataasraj.. The Silent Witness - 31 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 31

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 31

भाग 31

बाऊजी को चाय दे कर पुरवा भी उन्ही के साथ बैठी चाय की चुस्की लेती रही। जब पी चुकी तो दोनो खाली गिलास उठा कर अंदर आ गई।

अब तक उर्मिला की दाल अधपकी हो कर अहरे पर रख दी गई थी और चूल्हे पर चावल चढ़ गया था।

हल्की तपिश चूल्हे की महसूस हो रही थी। इस लिए बाहर निकल आई। वो अशोक के पास दरवाजे की डेहरी पर आ कर बैठी तो उसके पीछे पीछे पुरवा भी आ गई। वो भी बगल में सट कर बैठ गई।

अशोक बोले,

"पुरवा की अम्मा..! अब फैसला तो हो गया है कि चलना है तो फिर उन लोगों को बताना भी तो पड़ेगा।"

उर्मिला ने सहमति में सिर हिलाया।

"तो….. फिर जाने की तारीख पता कर लो फिर उसी हिसाब से बाकी की तैयारी की जाए।"

उर्मिला बोली,

"हम कैसे पता करे…? अब रोज रोज मेरा जाना थोड़ी ना शोभा देगा..! आप ही चले जाइए।"

अशोक बोला,

"अब तुम तो मलकिन जानती ही हो हमारा स्वभाव। जल्दी किसी से बात चीत नही कर पाते। फिर अभी खेत पर भी जाना है। हम नही जा पाएंगे।"

अशोक ने जाने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी। अब उर्मिला को एक ही उपाय सूझ रहा था कि वो पुरवा को भेज दे।

इधर पुरवा को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वो हैरान थी कि ये अम्मा और बाऊ जी किस बारे में बातें कर रहे है..! उसने उत्सुकता से पूछा,

" काहे की तैयारी करना है अम्मा..! बाऊ जी कहां जाने से मना कर रहे हैं..?"

उर्मिला बोली,

"बिटिया…! वो साजिद भाई और सलमा बहन अपने साथ चलने को बोल रहे थे। वहां पर शिव जी का बहुत ही पौराणिक मंदिर है ना उसी के दर्शन करने के लिए। वही जाने की बात हो रही है। अब हम चल रहे हैं उनके साथ ये तो उन्हें बताना पड़ेगा ना। फिर वो कब जा रहे हैं ये भी तो पता करना पड़ेगा, फिर उसी हिसाब से तैयारी भी तो करनी होगी।"

पुरवा ने सब कुछ समझ लेने के अंदाज में सिर हिलाया।

एक घड़ी रुक कर उर्मिला ने पुरवा की ओर देखा और बोली,

"ऐसा कर बिटिया.. तू ही चली जा उनके घर। तेरे जाने से एक पंथ दो काज हो जायेगा। तुझे नाज़ की बहुत याद आती है ना। इसी बहाने तू उससे मिल भी लेना और सलमा से बता भी देना कि हम भी चल रहे हैं उनके साथ।"

लेकिन पुरवा भाव खाने के अंदाज में मुंह बनाती है जैसे उसे अम्मा का ये प्रस्ताव अच्छा नही लगा हो। अंदर से उसका दिल खुशी से फूल कर कुप्पा हुआ जा रहा था पर जाहिर ये करना था कि उसे नाज़ के घर जाना पसंद नही आ रहा है। जिससे अम्मा उसकी चिरौरी करे और वो मान मनौव्वल करवा करवाए। ऐसा मौका कभी कभी तो हाथ आता था। अब जब आज मिला है है तो उसे खूब भुना ले। यही अम्मा उसे नाज़ से मिलने जाने पर थोड़ा सा भी देर हो जाने पर कितना सुनाती थी। आज सब चुकता करने का सुनहरा मौका मिल गया था।

वो अंगड़ाई लेते हुए बोली,

"नही अम्मा…! आज नही। कल तुमने इतना सारा काम करवाया कि अभी तक मेरा बदन दुख रहा है। फिर इतनी दूर चलाना..! ना… अम्मा…! मुझसे नही जाया जा पाएगा आज।"

अब अशोक बोले,

"तू तो वैसे बड़ी उतावली होती थी नाज़ से मिलने के लिए…! पर आज जब काम है तो नही जायेगी। तू भी ना अजीब ही है समझ से बाहर। कहने से धोबी गधे पर थोड़ी ना चढ़ता है। सही ही कहा गया है।"

उर्मिला बोली,

"तो मैं अभी थोड़ी ना कह रही हूं जाने को। जा ताजे पानी से नहा ले सारी थकान दूर हो जाएगी। फिर खाना खा कर थोड़ा आराम कर ले। फिर चली जाना।"

पर अभी भी पुरवा की तरफ से कोई उत्साह नही दिखा। अशोक को बेटी के दिल की सारी बात पता थी। वो समझ रहे थे कि वो सिर्फ ऊपर से ऐसा दिखा रही है मां को कि उसे नाज़ के घर नही जाना है। उर्मिला इस बात से परेशान हो रही थी कि अगर पुरवा नही जायेगी तो फिर कैसे खबर भिजवाएगी..? पत्नी की परेशानी अब उससे नही देखी गई। बेटी की शरारत का तोड़ निकालना अब जरूरी था। वो बोले,

"रहने दे पुरवा की मां..! अब जब उसका दिल ही नही है जाने का तो मजबूर करना अच्छी बात नही है। हम कोई प्रबंध करते हैं। अभी रास्ते में आते जाते कोई ना कोई उधर का दिख ही जायेगा। हम उसी से संदेशा कहलवा देंगे। तुम परेशान मत हो।"

इतना कह कह कर उन्होंने शरारती नजरों से पुरवा की ओर देखा जैसे कह रहे हों बिटिया हम तुम्हारे बाप हैं।

पुरवा समझ गई कि उसका ये नाटक उल्टा पड़ रहा है। अब बहुत हो गया। कहीं सच में ही ना बाऊ जी किसी को भेज दें। वो बोली,

"अरे…! नही बाऊ जी..! आप काहे बेकार में आदमी खोजते फिरेंगे कि कोई संदेशा पहुंचाए। फिर तारीख भी तो पता करना है जाने का। ये काम कोई बाहरी थोड़ी ही कर पाएगा..! अब अम्मा की बात है, हम कैसे टाल सकते है..! तुम ठीक ही कह रही हो अम्मा..! अभी हम ताजे पानी से नहा लेते हैं सब ठीक हो जायेगा तब।"

जल्दी से बाहर फैला गमछा उठा कर बोली,

"अम्मा हम नहा कर आते हैं। तब तक आप खाना निकाल देना मेरा। ठीक है.!"

उसकी इस बात पर उर्मिला भी मुस्कुरा उठी। बेटी की सारी शरारत वो समझ गई थी। वो बोली,

"ठीक है..! जा तू नहा कर आ। मै खाना निकलती हूं तब तक।"

पुरवा नहाने चली गई आंगन में तो वो अशोक से बोली,

"देखा..! अभी तक कैसे नखरे कर रही थी ये लड़की..! पर आप तो बिलकुल सही नस पकड़ लिए मालिक..!"

हम तो यही समझे थे कि सच में इसे थकान हुई है। पर ये नाटक कर रही है ये आप कैसे जाने..?"

अशोक ने मुस्कुरा कर उर्मिला की ओर देखा और बोले,

"ऐसे ही थोड़ी ना कहा गया है कि बाप बेटी के ज्यादा करीब होता है। तुमसे ज्यादा उसे जानता समझता हूं। भला पुरवा नाज़ से मिलने ना जाए ऐसा हो सकता है क्या भला…? वो तो गहरी नींद में रहे तो भी उसे कह दो जाने को तो उठ कर चल देगी। ये तो कल के थकान की बात कर रही थी, वो भला सच कैसे हो सकती थी…? हम समझ गए थे। इसी लिए इसकी सच्चाई सामने लाने को झूठ बोला था।