Nasliyahinsa in Hindi Anything by Arjit Mishra books and stories PDF | नस्लीय हिंसा

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नस्लीय हिंसा

नस्लीय हिंसा से जलते फ़्रांस को देखकर सहसा ही अपने देश के एक वरिष्ठ नेता याद आ गए जो अभी हाल ही में भारत में तथाकथित नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध पश्चिमी देशों को एकजुट होकर हस्तक्षेप करने का आवाहन कर रहे थे| शायद कुछ लोगों को सिर्फ अपने देश में समस्याएं दिखती हैं और दूसरे देशों खासतौर पर पश्चिमी देशों में मौजूद समान समस्याओं पर आँख मूँद लेते हैं|

हालाँकि पश्चिमी देशों का सैकड़ों वर्षों का इतिहास दास प्रथा से भरा पड़ा है, जहाँ अफ़्रीकी मूल के लोगों को नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त किया गया था, किन्तु उसे श्वेत व्यक्ति के उत्तरदायित्व के हास्यास्पद सिद्धांत के अंतर्गत उचित ठहरा दिया गया कि सभ्य श्वेत का उत्तरदायित्व है कि वो असभ्य अश्वेत को सभ्य बनाये|

इसी अवधारणा के अंतर्गत इन तथाकथित सभ्य लोगों के शासक वर्ग ने असभ्य लोगों के लिए कठोर कानून बनाये, जिनसे मानसिक तौर पर ये सभ्य लोग आज भी जुड़ाव रखते हैं|

फलस्वरूप, एक अल्जीरियाई मूल के किशोर नाहेल को फ़्रांस के नानटेरे शहर में एक पुलिस अधिकारी गोली मार देता है| और फ़्रांस जल उठता है| ये कोई एकमात्र घटना नहीं है| अभी कुछ साल पहले पेरिस में एक अश्वेत संगीत निर्माता की चार पुलिस कर्मियों द्वारा निर्ममता से पिटाई का विडियो सामने आया था, जिसको लेकर काफी बवाल भी हुआ था|

मई 2020 में अमेरिका के मिनीपोलिस में अश्वेत जॉर्ज फ्लोयेड की पुलिस कर्मियों द्वारा की गयी हत्या और उसके बाद हुई नस्लीय हिंसा को कौन भूल सकता है, जिसका विरोध समूचे विश्व में हुआ था|

आखिर क्यूँ लगातार इस तरह की हिंसा हो रहीं हैं? क्यों एक व्यक्ति पर हुआ अत्याचार उसके सजातीय लोगों को इस प्रकार आंदोलित कर देता है?

यदि हम इस प्रकार की सभी घटनाओं के कारणों को गहराई से समझने की कोशिश करें, तो हमें पता चलेगा की इनका मूल कारण इन लोगों की बुनियादी आवश्यकताएं हैं| लगभग सभी पश्चिमी देश के कानून मूलतः किसी प्रकार के भेदभाव का समर्थन नहीं करते, नस्ल विशेष जो की अधिकांशतः अल्पसंख्यक होते हैं, उनके लिए किसी प्रकार की अलग योजनायें या छूट नहीं देते हैं| जिससे कि ये अल्पसंख्यक समाज जोकि इन देशों की पूर्ववर्ती कॉलोनी से सम्बन्ध रखते हैं, आज भी सामाजिक तौर पर दोयम दर्जे के नागरिक हैं| जिन्हें एक सम्मानित जीवन जीने के लिए बुनियादी आवश्यकताएं भी उपलब्ध नहीं हैं, और धीरे धीरे ये हाशिये पर धकेल दिए गए हैं| इसलिए जब कोई नाहेल या जॉर्ज फ्लोयेड अत्याचार का शिकार होता है तो वो घटना उन सभी शोषित वर्ग के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है और समूचे विश्व का शोषित समाज उठ खड़ा होता है|

समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब ऐसी किसी हिंसा के मूल कारण में जाए बिना, शोषित वर्ग की समस्याओं को सुलझाने के बजाय आन्दोलन को बेरहमी से कुचल दिया जाता है|

हालाँकि इस प्रकार की घटनाओं और उनसे उपजे हालातों का एक पक्ष और भी है| विश्व के लगभग सभी देश शरणार्थी समस्या से जूझ रहे हैं| कभी किसी समय शरणार्थी के रूप में गिडगिडाते हुए आने वाले लोग धीरे धीरे देश में बुनियादी आवश्यकताओं की मांग करने के साथ ही अराजकता फैलाने लगते हैं| वरना, अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए कौन सभ्य नागरिक अपने ही देश में आग लगा देगा| क्या फ़्रांस के पुस्तकालय में जलती हुई हजारों पुस्तकों से नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की जलती हुई पुस्तकों की याद ताज़ा नहीं हो गयी?  पुस्तकालय को आग के हवाले करने वाले सभ्य तो नहीं हो सकते| इन दोनों घटनाओं में सैकड़ों वर्ष का अंतर होने से क्या ये निष्कर्ष नहीं निकलता की बर्बरता और अज्ञानता आज भी कुछ लोगों में वैसे ही विद्यमान है जैसे मध्य युग में थी|

क्या ऐसे बर्बर लोगों के लिए जीवन उन्नति की योजनायें चलाने या उन्हें अधिक छूट या अधिकार देने से वो सभ्य हो जायेंगे? कभी नहीं, क्यूंकि ऐसे असभ्य और बर्बर लोग किसी न किसी बहाने से हिंसक आन्दोलन करते ही  रहेंगे और शोषित वर्ग ऐसे लोगों के उकसाने पर उनका हिस्सा बनता रहेगा|

ऐसी समस्याओं से सफलतापूर्वक निपटने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जहाँ हिंसा में लिप्त दंगाईयों को चिन्हित कर सख्ती से निपटने के साथ ही उपेक्षित वर्ग को जीवन की बुनियादी जरूरतें एवं समान अवसर देना आवश्यक है|