Wo Maya he - 12 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 12

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वो माया है.... - 12



(12)

पुष्कर के रोकने पर उमा रुक गईं। पुष्कर ने उन्हें बैठने को कहा। वह समझ रही थीं कि वह कुछ कहना चाहता है। वह बैठ गईं। पुष्कर सोच रहा था कि बात शुरू कैसे करे। उमा ने कहा,
"जो भी कहना चाहते हो कह दो। हमें नीचे जाकर नाश्ते की व्यवस्था देखनी है।"
पुष्कर ने कहा,
"मम्मी दिशा अलग माहौल में पली बढ़ी है। यहाँ का माहौल अलग है। उसे बहुत सारी बातें नहीं पता हैं।"
उमा ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"पुष्कर दिशा पहली औरत नहीं है जो अपना घर छोड़कर ससुराल आई हो। सभी औरतें ऐसा ही करती हैं। हर किसी को अपने घर से अलग माहौल मिलता है। पर नए माहौल में खुद को ढालने की कोशिश करती हैं।"
उमा ने जो जवाब दिया था उससे स्पष्ट था कि वह चाहती हैं कि दिशा भी अपने आप को यहाँ के माहौल में ढालने की कोशिश करे। पुष्कर ने कहा,
"आप सही कह रही हैं मम्मी। लेकिन हर औरत के साथ विदा होकर आने के दूसरे दिन वह सब तो नहीं होता है जो दिशा के साथ हुआ।"
पुष्कर की बात उमा को बुरी लगी। उन्होंने कहा,
"ऐसा क्या हो गया दिशा के साथ ? हम लोगों ने कोई गलत व्यवहार किया उसके साथ। सीधी सी बात थी तुम्हारी और उसकी भलाई के लिए एक ताबीज़ पहनने को कहा था। उसने मना कर दिया। जिज्जी के सामने ताबीज़ रखकर चली आई। उनकी बात मानने से मना कर दिया। कभी हमने या तुम्हारे पापा ने उनकी कोई बात नहीं टाली।"
पुष्कर ने कहा,
"मम्मी मैं मानता हूँ कि इस घर में बुआ की बात पत्थर की लकीर मानी जाती है। लेकिन वह जो कह रही हैं सही है यह तो हमेशा नहीं हो सकता है।"
उमा बहस को बढ़ाना नहीं चाहती थीं। उन्होंने कहा,
"बेटा तुम हमारी समझ पर सवाल मत उठाओ। तुम शायद यहाँ से जाने की बात कर रहे हो। हम एक बात बता दे रहे हैं। जब तक तांत्रिक बाबा यह नहीं कह देते कि सब ठीक है तुम लोग यहीं रहोगे।"
यह सुनकर पुष्कर परेशान हो गया। उसने कहा,
"हम दोनों को इन सारी बातों पर यकीन नहीं है। घर में एक हादसा हुआ। उसे आप लोगों ने बेवजह का रंग दे दिया। अब उस तांत्रिक की बात माननी पड़ेगी। मैं और दिशा यह नहीं कर सकते।"
उमा उठकर खड़ी हो गईं। उन्होंने कहा,
"हमने तुम्हें बता दिया है। तुम चाहो तो अपने पापा से बात कर लो। वह जो निर्णय लें।"
यह कहकर उमा नीचे चली गईं। पुष्कर अपना सर पकड़ कर बैठ गया। वह अब इस नई बात से परेशान था। सोच रहा था कि तांत्रिक तो अपने लालच में चीज़ों को खींचेगा। ऐसे में अगर उसे और दिशा को सचमुच रुकना पड़ा तो उनका सारा प्लान बिगड़ जाएगा। उसने सोचा कि उसे अब अपने पापा से साफ साफ बात करनी होगी।
पुष्कर यह सब सोच रहा था तभी दिशा वॉशरूम से बाहर आई। उसने कहा,
"तुम्हारे और मम्मी के बीच बातों की आवाज़ आ रही थी। फिर कुछ हुआ क्या ?"
पुष्कर ने टालने के लिए कहा,
"तुम जानती थी कि मम्मी चाय लेकर आ रही होंगी‌। फिर भी नहाने चली गई। चाय ठंडी हो गई होगी।"
दिशा ने कहा,
"मैं ठंडी चाय पी लूँगी। पर तुम बात को टालो मत। मुझे लगा कि कोई बहस हो रही थी।"
पुष्कर ने उसका हाथ पकड़ कर पास बैठाया। उसे सारी बात बताई। सब सुनकर दिशा ने कहा,
"बात तांत्रिक तक पहुँच गई है। अब तो मेरी सब जानने की इच्छा और भी बढ़ गई है।"
दिशा कुछ सोचकर बोली,
"यह कैसी बात हुई भला ? एक तांत्रिक हमारे फैसले लेगा। पुष्कर तुम पापा से बात करो।"
"मैंने भी वही सोचा है। तुम परेशान मत हो। ऐसा कुछ भी नहीं होने दूँगा जो तुम्हें ठीक ना लगे।"
दिशा परेशान सी कुछ देर बैठी रही। उसके बाद छत पर बाल सुखाने चली गई। ज़िद में उसने ठंडे पानी से नहा लिया था। अब छत पर सुबह की नर्म धूप उसे अच्छी लग रही थी। बाल सुखाते हुए वह सोच रही थी कि इस परिवार मे कुछ भी सुलझा हुआ नहीं है। हर एक बात की पर्त में कुछ है। वह सोच रही थी कि उसका निबाह कैसे होगा। फिर उसने सोचा कि उसे कौन सा जीवन भर यहाँ रहना है‌। ज़िंदगी तो उसे पुष्कर के साथ काटनी है। वह पुष्कर को अच्छी तरह से जानती है।
तैयार होकर दिशा खाली चाय के कप लेकर नीचे गई। वह दोनों कप धोने लगी तो नीलम ने कहा,
"रहने दो तुम्हारी आदत नहीं होगी। रख दो बाकी बर्तनों के साथ धुल जाएंगे।"
सुबह से नीलम तीसरी बार उसे ताना दे चुकी थी। दिशा भी चुपचाप सुनने वालों में नहीं थी। उसने कहा,
"कप धोने में कलाकारी की ज़रूरत नहीं है मामी जी। एक बच्चा भी धो सकता है। रही बात आदत की तो मेरी मम्मी ने इस तरह पाला है कि हर स्थिति का सामना कर सकूँ।"
कप धोकर उसने रसोई में रख दिए। उसके बाद उमा से बोली,
"मम्मी मैं नहा चुकी हूँ। बताइए रसोई में क्या मदद करूँ आपकी ?"
नीलम उसके जवाब से चिढ़ गई थी। उसने कहा,
"रसोई में तो खाना ही बनता है। इस समय नाश्ते की तैयारी हो रही है।"
दिशा को लगा कि नीलम से उलझने का कोई मतलब नहीं है। उसने उमा से कहा,
"क्या नाश्ता बन रहा है मम्मी ? मुझे बताइए मैं भी मदद करूँगी।"
पुष्कर की बात उमा को चुभ गई थी। वह उससे नाराज़ थीं। उन्होंने कहा,
"तुम रहने दो। वैसे भी कुछ दिनों के लिए यहाँ रहने आई हो। तुम्हें लगे कि मुझ पर ज़िम्मेदारी डाल रही हैं।"
"मम्मी मदद की बात तो मैंने खुद कही है। फिर कुछ क्यों सोचूँगी।"
उमा स्वभाव से सख्त नहीं थीं। इसलिए दिशा से इस तरह बात करना उन्हें खुद अच्छा नहीं लगा था। उन्होंने कहा,
"पोहा बनाने जा रहे थे। सारी तैयारी हो गई है। अब बस कढ़ाई चढ़ाने जा रहे थे। हम बना लेंगे।"
"मम्मी मैं बना दूँगी...."
यह कहकर दिशा बर्तनों के बीच रखी कढ़ाई की तरफ बढ़ गई। उसने कढ़ाई गैस चूल्हे पर रख दी। नीलम ने कहा,
"रसोई में प्याज़ लहसुन भी इस्तेमाल नहीं होता है।"
"पुष्कर ने बताया था...."
दिशा ने चूल्हा जला दिया। उसके बाद कुकिंग ऑयल देखने लगी। उमा ने उसे बोतल दे दी। उन्होंने कहा,
"तुमने पहले खाना बनाया है कभी ?"
"मम्मी हमारे घर में कोई नौकर नहीं था। खाना मैं और मेरी मम्मी मिलकर बनाते थे। मुझे कुकिंग का शौक भी है। इसलिए अपनी तरफ से भी बहुत सी चीज़ें सीखती रहती हूँ। पोहा मैंने कई बार बनाया है।"
नीलम ने उमा से कहा,
"वैसे दीदी पहली बार रसोई में आने पर बहू कुछ मीठा बनाती है।"
उमा भी समझ रही थीं कि नीलम उकसाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने उसकी बात का जवाब देने की जगह कहा,
"विशाल के पापा नहाकर पूजा करने गए हैं। जिज्जी की पूजा भी कुछ देर में खत्म हो जाएगी। जाकर विशाल से तैयार होने को कह देते हैं। पुष्कर को भी कह देंगे। सब एकसाथ ही नाश्ता कर लेंगे।"
पोहा बनाते हुए दिशा ने कहा,
"पुष्कर से मैं कहकर आई थी कि तैयार होकर नीचे आ जाए। आप भइया को कह दीजिए।"
उमा विशाल के पास चली गईंं।

दिशा का बनाया पोहा सबको अच्छा लगा। कल जो हुआ उसके बाद घरवालों को यह लगा था कि दिशा सिर्फ अपने बारे में सोचने वाली लड़की है। घर गृहस्ती के बारे में कुछ नहीं जानती। दिशा उनकी यह सोच तोड़ना चाहती थी इसलिए अपने मन से नाश्ता बनाया था। वह संदेश देना चाहती थी कि वह बेवजह किसी से दबती नहीं है। पर परिवार को साथ लेकर चलना जानती है। नाश्ते के बाद किशोरी ने अपना संदूक खोलकर उसमें से शगुन निकाल कर दिशा को दिया।
नाश्ते के बाद पुष्कर और दिशा ऊपर अपने कमरे में आ गए थे। पुष्कर ने कहा,
"तुमने तो एक चाल में ही बाजी अपने नाम कर ली। बुआ ने शगुन दिया मतलब उन्हें पोहा अच्छा लगा था।"
"मैंने कोई चाल नहीं चली पुष्कर। ना ही मैं ऐसा करने की ज़रूरत समझती हूँ। मैंने नाश्ता अपनी खुशी से बनाया था ताकि घरवालों के मन में कोई कड़वाहट हो तो दूर हो जाए। मेरे बारे में कोई गलतफहमी पालकर ना रखें।"
पुष्कर चुप हो गया। दिशा ने कहा,
"तुमने कहा था कि पापा से बात करोगे। पर तुम तो ऊपर आ गए।"
"पापा को ज़रूरी काम से स्कूल जाना था। नाश्ते के बाद वह वहीं चले गए। इसलिए बात नहीं हो पाई।"
दिशा ने आश्चर्य से कहा,
"स्कूल गए मतलब ?"
"बताया तो था कि पापा यहाँ के सरकारी स्कूल में वाइस प्रिंसिपल थे। चाचा भी वहीं पढ़ाते हैं। वहाँ किसी से कुछ काम था।"
"अच्छा....कब तक आएंगे ?"
"दोपहर में....खाना खाने के बाद बात कर लूँगा।"
दिशा चाहती थी कि पुष्कर कल बीच में छूट गई कहानी पूरी करे। उसने कहा,
"अब दोपहर तक तो कोई काम नहीं है। तुम आगे की कहानी बताओ।"
पुष्कर जानता था कि दिशा यही कहेगी‌। वह भी आगे की कहानी सुनाने को तैयार था। तभी आवाज़ आई,
"नमस्ते पुष्कर भइया....."
पुष्कर की ममेरी बहन अनुपमा थी। पुष्कर ने आगे बढ़कर उसे गले लगाया। उसने कहा,
"तुम तो बहुत बड़ी हो गई।"
"आपने बहुत सालों बाद देखा भी तो है।"
उसने दिशा की तरफ देखकर कहा,
"नमस्ते भाभी। मैं भइया की ममेरी बहन हूँ। शादी में आ नहीं पाई थी। कल ही पेपर खत्म हुए। मम्मी को लेने आना था तो पापा के साथ आ गई।"
अनुपमा आराम से बैठ गई। वह पुष्कर और दिशा के साथ बातें करने लगी।