Hanuman Prasad Poddar ji - 57 in Hindi Biography by Shrishti Kelkar books and stories PDF | हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 57

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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 57


भगवन्नाम जपमें लगाने की एक और अनोखी योजना

भगवान् से भाईजी को स्पष्ट आदेश मिला था कि जगत्का भला करना चाहते हो तो भगवन्नाम का प्रचार करो। इसका पूरा विवरण पिछले पृष्ठोंमें आ चुका है। इसके पश्चात् भाईजी ने भगवन्नाम प्रचार के लिये कितनी तरह की योजनाएँ बनाई। इसका भी कुछ विवरण दिया जा चुका है। भाईजी की अडिग आस्था थी कि भगवान् का नाम उनका अभिन्न स्वरूप तो है ही साथ ही भगवान् की ही शक्ति से वह भगवान्से भी अधिक शक्तिशाली और ऐश्वर्यवान् है। ऐसे अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने भगवन्नाम की महिमा को हृदय से स्वीकार किया है और अपनी कृतियों में उन्मुक्त प्रतिपादन किया है। परन्तु मुझे स्मरण नहीं आता कि किसी संत ने भगवन्नाम-प्रचार के लिये कभी और कहीं इतना अधिक प्रयास किया हो। बस, ध्यानमें आते हैं एकमात्र श्रीचैतन्य महाप्रभु। श्रीभाईजी के जीवनमें नाम निष्ठा श्रीचैतन्य महाप्रभु की तरह ही थी और उन्हीं की भाँति श्रीभाईजी ने नगर-कीर्तन, सामुदायिक कीर्तन, ऐकान्तिक कीर्तन, नाम-प्रचार यात्राएँ, प्रवचनोंमें अथवा एकान्तवार्तामें जप की प्रबल प्रेरणा आदि का आश्रय तो लिया ही पर इन सबके अतिरिक्त कुछ बातें और हैं जो श्रीभाई जी की विशिष्टता को उद्भासित करती है। युगधर्मके अनुसार आधुनिक सुविधाओं का सहारा लेकर भाईजी ने प्रचार प्रणाली की परिधि को बहुत अधिक विस्तृत कर दिया। इनमेंसे एक थी 'कल्याण' पत्रिका के द्वारा जन-जन से नाम-जपके लिये निवेदन। सन् 1929 से ही भाईजी प्रतिवर्ष 'कल्याण' में नामजपकी सूचना निकालकर लोगों को अपने-अपने घरोंमें नामजप करने की प्रार्थना करते। यह जप यज्ञ प्रतिवर्ष लगभग ढाई महीने चला करता। सब लोग 'हरे राम' महामन्त्र का जप करते और निश्चित अवधि के बाद उसकी सूचना कल्याण-कार्यालय को भेजते। उसे जोड़कर सब स्थानोंके नाम एवं कुल जप की संख्या प्रतिवर्ष 'कल्याण' में प्रकाशित की जाती। प्रकाशित सूचनाओं के अनुसार सन् 1929 में 455 करोड़ नाम-जप हुआ। यह संख्या बढ़ते-बढ़ते सन् 1969-70 में 779 करोड़ नामजप तक पहुँच गई। सन् 1929 की संख्याको ही औसत मानकर देखें तो भाईजी के जीवनकालमें इसी एक माध्यमसे 16,380 करोड़ से अधिक जप हुआ। भाईजी को गये 30 साल हो गये यह पद्धति अद्यावधि चल रही है। इसके अतिरिक्त दैनिक प्रवचनों से एवं व्यक्तिगत पत्रों या वार्तालाप से कितने लोगों ने कितना जप किया इसकी गणना असंभव है। कई साधक उनकी प्रेरणा से अभीतक प्रतिदिन एक लाख नामजप करते हैं। इतना ही नहीं मैंने स्वयं देखा भाईजी वृन्दावन से सैकड़ों की संख्या में तुलसीमाला मँगाकर अपने पास रखते और जो भी जरा भी रुचि दिखाता उसे माला देकर प्रतिदिन जप करने की प्रेरणा देते। इन सभी उपायों से अनुमानातीत नाम जप का प्रचार हुआ। कितने व्यक्ति आज तक जप कर रहे हैं, इसकी कल्पना करना भी अ संभव है।

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भगवन्नाम जपमें लगाने की एक और अनोखी योजना
भगवान् से भाईजी को स्पष्ट आदेश मिला था कि जगत्का भला करना चाहते हो तो भगवन्नाम का प्रचार करो। इसका पूरा विवरण पिछले पृष्ठोंमें आ चुका है। इसके पश्चात् भाईजी ने भगवन्नाम प्रचार के लिये कितनी तरह की योजनाएँ बनाई। इसका भी कुछ विवरण दिया जा चुका है। भाईजी की अडिग आस्था थी कि भगवान् का नाम उनका अभिन्न स्वरूप तो है ही साथ ही भगवान् की ही शक्ति से वह भगवान्से भी अधिक शक्तिशाली और ऐश्वर्यवान् है। ऐसे अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने भगवन्नाम की महिमा को हृदय से स्वीकार किया है और अपनी कृतियों में उन्मुक्त प्रतिपादन किया है। परन्तु मुझे स्मरण नहीं आता कि किसी संत ने भगवन्नाम-प्रचार के लिये कभी और कहीं इतना अधिक प्रयास किया हो। बस, ध्यानमें आते हैं एकमात्र श्रीचैतन्य महाप्रभु। श्रीभाईजी के जीवनमें नाम निष्ठा श्रीचैतन्य महाप्रभु की तरह ही थी और उन्हीं की भाँति श्रीभाईजी ने नगर-कीर्तन, सामुदायिक कीर्तन, ऐकान्तिक कीर्तन, नाम-प्रचार यात्राएँ, प्रवचनोंमें अथवा एकान्तवार्तामें जप की प्रबल प्रेरणा आदि का आश्रय तो लिया ही पर इन सबके अतिरिक्त कुछ बातें और हैं जो श्रीभाई जी की विशिष्टता को उद्भासित करती है। युगधर्मके अनुसार आधुनिक सुविधाओं का सहारा लेकर भाईजी ने प्रचार प्रणाली की परिधि को बहुत अधिक विस्तृत कर दिया। इनमेंसे एक थी 'कल्याण' पत्रिका के द्वारा जन-जन से नाम-जपके लिये निवेदन। सन् 1929 से ही भाईजी प्रतिवर्ष 'कल्याण' में नामजपकी सूचना निकालकर लोगों को अपने-अपने घरोंमें नामजप करने की प्रार्थना करते। यह जप यज्ञ प्रतिवर्ष लगभग ढाई महीने चला करता। सब लोग 'हरे राम' महामन्त्र का जप करते और निश्चित अवधि के बाद उसकी सूचना कल्याण-कार्यालय को भेजते। उसे जोड़कर सब स्थानोंके नाम एवं कुल जप की संख्या प्रतिवर्ष 'कल्याण' में प्रकाशित की जाती। प्रकाशित सूचनाओं के अनुसार सन् 1929 में 455 करोड़ नाम-जप हुआ। यह संख्या बढ़ते-बढ़ते सन् 1969-70 में 779 करोड़ नामजप तक पहुँच गई। सन् 1929 की संख्याको ही औसत मानकर देखें तो भाईजी के जीवनकालमें इसी एक माध्यमसे 16,380 करोड़ से अधिक जप हुआ। भाईजी को गये 30 साल हो गये यह पद्धति अद्यावधि चल रही है। इसके अतिरिक्त दैनिक प्रवचनों से एवं व्यक्तिगत पत्रों या वार्तालाप से कितने लोगों ने कितना जप किया इसकी गणना असंभव है। कई साधक उनकी प्रेरणा से अभीतक प्रतिदिन एक लाख नामजप करते हैं। इतना ही नहीं मैंने स्वयं देखा भाईजी वृन्दावन से सैकड़ों की संख्या में तुलसीमाला मँगाकर अपने पास रखते और जो भी जरा भी रुचि दिखाता उसे माला देकर प्रतिदिन जप करने की प्रेरणा देते। इन सभी उपायों से अनुमानातीत नाम जप का प्रचार हुआ। कितने व्यक्ति आज तक जप कर रहे हैं, इसकी कल्पना करना भी अ संभव है।