The Author Charu Mittal Follow Current Read नाम जप साधना - भाग 1 By Charu Mittal Hindi Anything Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Vanished Without a Trace Vanished Without a TraceThe first thing I noticed was the si... Chasing butterflies …….8 Chasing butterflies ……. (A spicy hot romantic and suspense t... Mundhira - Chapter 1 This world is a dangerous place, kid. There are creatures ou... Princess Of varunaprastha - 12 Like a servant, Chitraketu joined his two hands and said, "A... The Stranger Who Knew My Name The Stranger Who Knew My NameThe rain-slicked streets of the... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Charu Mittal in Hindi Anything Total Episodes : 18 Share नाम जप साधना - भाग 1 (2.8k) 7.3k 15.4k आज के अधिकांश लोग किसी न किसी संत या धर्म संस्थाओं से जुड़े हैं। यहाँ तक कि बहुत लोगों ने संतों से दीक्षा भी ले रखी है। परंतु देखने में आया है कि भजन करनेवालों की संख्या बहुत कम है। गुरु बनाने वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन नाम जप करनेवाले विरले ही मिलते हैं। नाम निष्ठा कहीं-कहीं देखने को मिलती है। नाम जप करनेवाले भी इतना जप नहीं करते जितना कर सकते हैं। लोग सत्संग प्रवचन भी खूब सुनते हैं, बड़े बड़े धार्मिक आयोजन भी करते हैं। लाखों रुपये खर्च करके संतों के प्रवचन व कथा करवाने वाले लोगों को भी देखा.. बहुत पास से देखा। अधिकांश लोग नाम जप साधना से शून्य ही मिले। कहाँ तक बतायें संतों के पास रहनेवाले भी अधिकतर साधना शून्य ही मिले। कई तो संत भेष में आकर भी नाम जप साधना में नहीं लग पाये। क्या कारण है कि इतनी सरल साधना होने पर भी क्यों इससे वंचित हैं? विशेषकर कलियुग में तो भवसागर पार जाने के लिये हरिनाम ही आधार है। ये पंक्ति किसने नहीं सुनी 'कलियुग केवल नाम आधारा'। फिर लोग क्यों नहीं नाम जपते और जो लोग जपते हैं वे भी बहुत थोडे में ही क्यों संतोष कर लेते हैं ? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये मैंने लोगों को बहुत नजदीक से अनुभव किया। उनसे ये प्रश्न किये तो कारण ज्ञात हुआ। भजन न होने के जो जो कारण मुझे लोगों से ज्ञात हुए प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं कारणों को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है। नाम जप के प्रति अनेको शंकाऐं जन साधारण के मन में हुआ करती हैं जो स्वाभाविक ही हैं। उनकी शंकाओं को ध्यान में रखते हुए ये पुस्तक लिखी गई है। जो शंकाऐं व प्रश्न भजन में विघ्न रूप हैं, उन्हीं शंकाओं व प्रश्नों पर एक चोट है प्रस्तुत पुस्तक | मैं आशा करता हूँ कि जो इस छोटी सी पुस्तक को पढ़ेगा उनकी शंकाओं का अवश्य अवश्य ही समाधान होगा, प्रश्नों का उत्तर मिलेगा। भजन में प्रवृत्ति होगी। इस पुस्तक में मेरा अपना कुछ भी नहीं है, सब महापुरुषों का ही कृपा प्रशाद है। इस कृपा प्रशाद को पाकर आप भजन में लग गये तो मैं अपना यह छोटा सा प्रयास सफल समझुंगा। ––करुण दास**********************************************आज के अधिकांश लोग किसी न किसी संत या धर्म संस्थाओं से जुड़े हैं। यहाँ तक कि बहुत लोगों ने संतों से दीक्षा भी ले रखी है। परंतु देखने में आया है कि भजन करनेवालों की संख्या बहुत कम है। गुरु बनाने वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन नाम जप करनेवाले विरले ही मिलते हैं। नाम निष्ठा कहीं-कहीं देखने को मिलती है। नाम जप करनेवाले भी इतना जप नहीं करते जितना कर सकते हैं। लोग सत्संग प्रवचन भी खूब सुनते हैं, बड़े बड़े धार्मिक आयोजन भी करते हैं। लाखों रुपये खर्च करके संतों के प्रवचन व कथा करवाने वाले लोगों को भी देखा, बहुत पास से देखा । अधिकांश लोग नाम जप साधना से शून्य ही मिले। कहाँ तक बतायें संतों के पास रहनेवाले भी अधिकतर साधना शून्य ही मिले। कई तो संत भेष में आकर भी नाम जप साधना में नहीं लग पाये। क्या कारण है कि इतनी सरल साधना होने पर भी क्यों इससे वंचित हैं? विशेषकर कलियुग में तो भवसागर पार जाने के लिये हरिनाम ही आधार है। ये पंक्ति किसने नहीं सुनी 'कलियुग केवल नाम आधारा'। फिर लोग क्यों नहीं नाम जपते और जो लोग जपते हैं वे भी बहुत थोडे में ही क्यों संतोष कर लेते हैं ? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये मैंने लोगों को बहुत नजदीक से अनुभव किया। उनसे ये प्रश्न किये तो कारण ज्ञात हुआ। भजन न होने के जो जो कारण मुझे लोगों से ज्ञात हुए प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं कारणों को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है। नाम जप के प्रति अनेको शंकाऐं जन साधारण के मन में हुआ करती हैं जो स्वाभाविक ही हैं। उनकी शंकाओं को ध्यान में रखते हुए ये पुस्तक लिखी गई है। जो शंकाऐं व प्रश्न भजन में विघ्न रूप हैं, उन्हीं शंकाओं व प्रश्नों पर एक चोट है प्रस्तुत पुस्तक | मैं आशा करता हूँ कि जो इस छोटी सी पुस्तक को पढ़ेगा उनकी शंकाओं का अवश्य अवश्य ही समाधान होगा, प्रश्नों का उत्तर मिलेगा | भजन में प्रवृत्ति होगी। इस पुस्तक में मेरा अपना कुछ भी नहीं है, सब महापुरुषों का ही कृपा प्रशाद है । इस कृपा प्रशाद को पाकर आप भजन में लग गये तो मैं अपना यह छोटा सा प्रयास सफल समझुंगा। ––करुण दास********************************************** › Next Chapter नाम जप साधना - भाग 2 Download Our App