Wo Maya he - 51 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 51

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वो माया है.... - 51



(51)

मोहल्ले में एक घर पर अखंड रामायण का पाठ हो रहा था। किशोरी वहीं गई हुई थीं। उमा को भी वहाँ जाना था। पर वह बद्रीनाथ के इंतज़ार में रुक गई थीं। बद्रीनाथ सामान लेकर घर पहुँचे। उमा ने उन्हें पानी लाकर दिया। बद्रीनाथ ने पानी पी लिया। उमा ने उनसे कहा,
"विशाल को खाना खिला दिया है। वह अपने कमरे में आराम कर रहा है। आप भी खाना खा लीजिए। फिर हम कुछ देर के लिए रामायण में चले जाएं।"
"बाजार में शिवराज मिल गया था। उसके साथ समोसा खा लिया था। भूख नहीं है। तुम रसोई समेट कर चली जाओ। अब शाम को ही खाएंगे।"
उमा कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में चली गईं।
बद्रीनाथ चारपाई पर लेट गए। जबसे शिवराज ने उन्हें बताया था कि उन्होंने विशाल को गंगाराम बैंक में देखा था तबसे वह परेशान हो गए थे। उस दिन विशाल कहीं जाने की जल्दी में था। नाश्ता करने से मना कर रहा था। उन्होंने पूछा था कि इतनी जल्दी किस बात की है। कुछ देर बैठकर नाश्ता करने में क्या हर्ज़ हो जाएगा। तब उसने कुछ कहा नहीं था। चुपचाप नाश्ता करने बैठ गया था। नाश्ता करने के बाद वह फौरन घर से निकल गया था। बद्रीनाथ को अब लग रहा था कि वह बैंक ही गया होगा। लेकिन उन्हें यह सवाल परेशान कर रहा था कि जब उस बैंक में उनके परिवार का कोई अकाउंट ही नहीं है तो वह करने क्या गया था ? विशाल से बात करके ही उन्हें इस बात का जवाब मिल सकता था। वह सोच रहे थे कि उमा के जाने के बाद बात करते हैं।

बद्रीनाथ सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुँचे। विशाल के कमरे के दरवाज़े पर पहुँच कर उन्होंने उसे पुकारा। विशाल बिस्तर पर लेटा था। उठकर दरवाज़े पर आया। उसने कहा,
"पापा कोई काम था..... नीचे से आवाज़ लगा देते मैं आ जाता।"
बद्रीनाथ कमरे के अंदर चले गए। कुर्सी पर बैठकर बोले,
"विशाल पहले तो खेती पर ध्यान देते थे। अब तो वह भी छोड़ दिया।"
"पापा बटाई पर है तो वही देखेगा। हमें तो फसल में हिस्से से मतलब है।"
"फिर भी बीच बीच में देखना चाहिए कि क्या कर रहा है ? तुम तो एकदम से सब छोड़कर बैठ गए।"
विशाल कुछ नहीं बोला। बद्रीनाथ ने कहा,
"शंकरलाल की भट्टे वाली ज़मीन पर खेती होती है। उसकी कमाई तो तुम्हारे पास आती है। उसका हिसाब रखते हो ना ?"
विशाल को यह पूछताछ अच्छी नहीं लग रही थी। उसने कहा,
"रखते हैं.... हमारे खेतों का तो सारा हिसाब आपको देते हैं। उस ज़मीन से भी जो मिलता है वह हमारे और आपके ज्वाइंट अकाउंट में जमा कर देते हैं। हमने आज तक कुछ छुपाया थोड़ी ना है।"
बात कहने के तरीके से स्पष्ट था कि विशाल को इस तरह जवाब तलब किया जाना पसंद नहीं आया है। बद्रीनाथ को भी उसके कहने का तरीका ठीक नहीं लगा। उन्होंने कहा,
"कुछ नहीं छुपाते हो ?"
विशाल ने कुछ गुस्से से कहा,
"हमारी ज़िंदगी में छुपाने लायक है क्या। बस जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही है।"
बद्रीनाथ को उसका जवाब अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा,
"बेटा ऐसा कोई नहीं है जिसकी ज़िदगी में तकलीफ ना आए। पर हर कोई तुम्हारी तरह सब छोड़ नहीं देता है।"
"किसके लिए सबकुछ पकड़ कर रखते ?"
बद्रीनाथ ने उसके चेहरे की तरफ देखकर कहा,
"गंगाराम बैंक में अकाउंट किसके लिए खोला है।"
यह सुनकर विशाल परेशान हो गया। बद्रीनाथ ने सिर्फ अंदाजा लगाया था कि उसका वहाँ अकाउंट हो सकता है। उन्होंने कहा,
"कुछ दिन पहले तुम गंगाराम बैंक गए थे।"
विशाल को लग रहा था कि बद्रीनाथ ने किसी को उसके पीछे लगा रखा है। यह बात और परेशान करने वाली थी। उसे लगा कि कहीं उन्हें कौशल के बारे में तो नहीं पता चला। उसने कहा,
"हम गंगाराम बैंक गए थे यह बात किसने कही ?"
विशाल ने बैंक जाने की बात को नकारा नहीं था। बल्की यह पूछ रहा था कि उन्हें किसने बताया। बद्रीनाथ को लगा कि उन्होंने सही अंदाजा लगाया है। उन्होंने कहा,
"शिवराज रस्तोगी हमारे पुराने मित्र हैं। उन्होंने तुम्हें गंगाराम बैंक में देखा था।"
विशाल ने याद करते हुए कहा,
"शिवराज जी....वही जो आपके साथ स्कूल में थे। उसके बाद अपना बिज़नेस करने लगे।"
बद्रीनाथ ने हाँ में सर हिलाया। उसके बाद बोले,
"उस बैंक में तो हमारा कोई खाता नहीं है। तुमने अलग से खुलवाया है।"
विशाल यह समझ गया था कि शिवराज ने अधिक कुछ नहीं बताया होगा। उसने कहा,
"वहाँ खाता खुलवा कर हम क्या करेंगे ? खाते में जमा कराने के लिए भी तो कुछ चाहिए। हमारे एक दोस्त के लिए जानकारी लेने गए थे। वह मेरठ में रहता है। यहाँ आकर अपना काम शुरू करना चाहता है। लोन के संबंध में जानकारी लेने गए थे।"
बद्रीनाथ अब तक यह सोचकर परेशान थे कि आखिर विशाल वहाँ गया क्यों था। उसके पास अपनी कोई कमाई नहीं है जो अलग से खाता खोले।‌ विशाल ने जो जवाब दिया उससे वह संतुष्ट हो गए थे। उन्होंने बात बदलते हुए कहा,
"बेटा अब जो हो गया है उसे तो ठीक नहीं कर सकते हैं। लेकिन आगे सही रहे इसकी तो कोशिश कर सकते हैं। जब भी हम इस बारे में बात करते हैं तुम सिरे से नकार देते हो। अभी इतनी उम्र नहीं बीत गई है तुम्हारी कि नई शुरुआत ना हो सके।"
विशाल ने उनकी तरफ देखकर कहा,
"आपको इतना होने के बाद भी लगता है कि माया नई शुरुआत होने देगी। पापा वह हमारी ज़िंदगी में कुछ नया नहीं होने देगी। अच्छा होगा कि कुछ अच्छा होने की उम्मीद छोड़कर जो चल रहा है वैसा ही चलने दें।"
शिवराज ने जब बाबा कालूराम के बारे में बताया था तो बद्रीनाथ के निराश हो चुके मन में एक उम्मीद जगी थी। उन्होंने विशाल को बाबा कालूराम के बारे मे बताया। उनकी बात सुनकर विशाल ने कहा,
"पापा पहले ही हम लोग इस मामले में ठगे जा चुके हैं।"
"हमने शिवराज से यही बात कही थी। उसने कहा कि बाबा सबकी मदद नहीं करते हैं। केवल तभी किसी की मदद करते हैं जब उनका कोई खास लेकर जाता है। शिवराज अभी बाहर गया है। लौटते ही मिलवाएगा। हमें तो पूरा भरोसा है कि बाबा हमारी मदद करेंगे। अब तुम भी नई शुरुआत के लिए तैयार हो जाओ। कोई काम धंधा शुरू करो तो बात आगे बढ़े।"
बद्रीनाथ खड़े हो गए। उन्होंने कहा,
"हमारी बात पर विचार करना।"
यह कहकर वह कमरे से निकल गए।

बद्रीनाथ नीचे आए तो दरवाज़े पर दस्तक हो रही थी। उन्होंने जाकर दरवाज़ा खोल दिया। किशोरी लौटकर आई थीं। किशोरी आंगन में आकर चारपाई पर लेट गईं। दरवाज़ा बंद करके बद्रीनाथ उनके पास आ गए। उन्होंने कहा,
"क्या हुआ जिज्जी ? आप लौट आईं। उमा कुछ देर पहले ही गई है वहाँ।"
"हाँ मालूम है....हम बहुत देर से वहीं थे। अब अधिक बैठने की क्षमता नहीं रह गई है। अब वहाँ लेटने को कहाँ मिलता। इसलिए चले आए।"
"चलिए अच्छा किया। खाना खाकर गई थीं ?"
"हम तो खाकर गए थे। पर उमा बता रही थी कि तुमने नहीं खाया।"

बद्रीनाथ मोढ़ा लेकर पास में बैठ गए। उन्होंने कहा,
"बाजार में शिवराज मिल गया था। बहुत समय के बाद मिलना हुआ था। इसलिए साथ में चाय नाश्ता कर लिया। घर से भी खाकर गए थे। इसलिए भूख‌ नहीं थी। अब शाम को ही खाएंगे।"
किशोरी ने एक आह भरकर कहा,
"जानते हो प्रजापति ने रामायण पाठ क्यों रखवाया है ?"
"उनका लड़का न्योता देने आया था। पर हमने कुछ पूछा नहीं था। कोई खास बात है जिज्जी।"
"उनके छोटे लड़के की अच्छी नौकरी लग गई है। मंझली बहू उम्मीद से है। हर घर में खुशियां आ रही हैं। हमारे घर की खुशियां माया के श्राप से झुलस जाती हैं। अब तो इससे उबरने का कोई उपाय भी नहीं दिखता है।"
यह कहकर किशोरी भावुक होकर रोने लगीं। बद्रीनाथ ने उन्हें चुप कराते हुए कहा,
"जिज्जी....एक उपाय तो नज़र आया है।"
यह सुनकर किशोरी को जैसे नई स्फूर्ति मिल गई। वह उठकर बैठ गईं। उन्होंने कहा,
"कैसा उपाय बद्री....."
बद्रीनाथ ने उन्हें बाबा कालूराम वाली बात बताई। सुनते ही किशोरी ने हाथ जोड़कर कहा,
"हे भोलोनाथ....अब इस घर पर अपनी कृपा करिए। बाबा कालूराम माया के श्राप से मुक्ति दिला दें।"
"उम्मीद तो पूरी है जिज्जी। शिवराज अपने काम से लौट आए तब हमें लेकर जाएगा।"
"बड़ी अच्छी खबर सुनाई तुमने बद्री। उस ठग ने तो ऐसा गच्चा दिया था कि लग रहा था अब कभी कुछ अच्छा होगा ही नहीं। उमा को बताया तुमने।"
"अभी कहाँ बताया जिज्जी। हम बाजार से आए तो उसने कहा कि रामायण में जाना है। अब आएगी तो बता देंगे। वह भी बहुत परेशान रहती है।"
बद्रीनाथ ने किशोरी से कहा,
"अब चलकर अपने कमरे में लेट जाइए। हम भी कुछ देर आराम कर लेते हैं।"
किशोरी को उनके कमरे में छोड़कर बद्रीनाथ आराम करने चले गए। किशोरी अपने बिस्तर पर लेटकर ईश्वर को धन्यवाद देने लगीं। उनके अपने जीवन में तो कभी सुख रहा नहीं था। उनका सारा सुख बद्रीनाथ और उनके परिवार की खुशी में था। लेकिन माया के कारण वह सुख छिन गया था। कई साल उन्होंने इंतज़ार किया था कि पुष्कर के ज़रिए इस घर को खुशियां मिलें। दिशा के साथ उसकी शादी के लिए राज़ी ना होने पर भी उन्होंने यह सोचकर हाँ की थी कि किसी भी तरह घर में खुशियां आएंगी। पुष्कर की मौत ने उन खुशियों का रास्ता भी बंद कर दिया था।
अब बाबा कालूराम से उन्होंने नई उम्मीद लगा ली थी।