prosperity or riot in Hindi Motivational Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | खुशहाली या दंगा

Featured Books
  • The Devil (2025) - Comprehensive Explanation Analysis

     The Devil 11 दिसंबर 2025 को रिलीज़ हुई एक कन्नड़-भाषा की पॉ...

  • बेमिसाल यारी

    बेमिसाल यारी लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००१गाँव...

  • दिल का रिश्ता - 2

    (Raj & Anushka)बारिश थम चुकी थी,लेकिन उनके दिलों की कशिश अभी...

  • Shadows Of Love - 15

    माँ ने दोनों को देखा और मुस्कुरा कर कहा—“करन बेटा, सच्ची मोह...

  • उड़ान (1)

    तीस साल की दिव्या, श्वेत साड़ी में लिपटी एक ऐसी लड़की, जिसके क...

Categories
Share

खुशहाली या दंगा

तीन दिन से भूखे प्यासे हनुमान के गांव के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे बैठे-बैठे माधव बेहोश होकर जमीन पर गिर जाता है।

एक सप्ताह बाद माधव और हनुमान की बेटी का विवाह होने वाला था, इसलिए हनुमान की पत्नी दोनों बेटे उनकी पत्नियां माधव को देखने अपने सारे काम छोड़कर भागते हैं।

और घर में हनुमान के सामने हनुमान की बेटी माधव की होने वाली पत्नी कांता माधव की सेहत की चिंता करके रोने लगती है। कांता की आंखों में पहली बार उसके पिता हनुमान की वजह से आंसू आए थे, इसलिए हनुमान कांता को रोने से चुप करवा कर कहता है "मैं कल महापंचायत बुलवाकर इस जटिल समस्या का हाल करूंगा।"

माधव हनुमान के बचपन के मित्र का बेटा था। देश के बंटवारे के समय जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे उन दंगों में माधव के माता-पिता की दंगाइयों ने हत्या कर दी थी। हनुमान अपने बच्चों जैसे माधव से प्यार करता था। हनुमान का मानना था कि उसकी बेटी कांता के लिए माधव जैसा लड़का मिलना मुश्किल है।

हनुमान का पूरे जिले में बहुत मान सम्मान था। वह नामी और ईमानदार वकील था, एक मुजरिम को गलती से धोखाधड़ी की केस से बरी करवाने कि वजह से हनुमान ने वकालत छोड़ दी थी।

राज्य की कई नामी राजनीतिक पार्टियां उसे अपने क्षेत्र से विधायक के लिए उम्मीदवार चुनने के लिए उसके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी, किंतु हनुमान ने किसी भी पार्टी का उम्मीदवार बनने की वजह स्वयं की इच्छा से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया था।

लेकिन हनुमान को अपने होने वाले दामाद माधव की वजह से चुनावों में अपनी हार निश्चित लग रही थी, क्योंकि उसके होने वाले दामाद माधव ने ऐसा मुद्दा उठा दिया था, कि अगर हनुमान हिंदुओं के खिलाफ फैसला लेता तो हिंदू उससे नाराज हो जाते अगर वह मुसलमान के खिलाफ फैसला लेता तो मुसलमान उससे नाराज हो जाते और क्षेत्र में हिंदू मुसलमान की तादाद बराबर थी। इस वजह से विधानसभा चुनाव में उसे अपनी हार होती दिखाई दे रही थी।

हनुमान के पूर्वजों की जमीन पुरानी मस्जिद के साथ थी, उस जमीन पर राहगीरों के लिए कुऐ की खुदाई करवाते समय सरस्वती मां की प्राचीन मूर्ति निकली थी और उस सरस्वती मां की प्राचीन मूर्ति के कुछ अवशेष मस्जिद के साथ खाली पड़ी मस्जिद की जमीन की खुदाई में भी निकले थे, इसलिए इलाके के सारे हिंदू उस जमीन के लिए चंदा इकट्ठा करके हनुमान को मुंह बोली कीमत देखकर उस जमीन पर और मस्जिद के साथ वाली खाली जमीन पर कोर्ट में सरस्वती मां के प्राचीन मंदिर का दवा करके सरस्वती मां का मंदिर बनना चाहते थे।

लेकिन मुसलमान को यह डर था कि मंदिर और मस्जिद की दीवारें एक होने की वजह से कोई शरारती तत्व हिंदू मुस्लिम दंगा फसाद करवा सकता है और वह मस्जिद की खाली जमीन को मिलाकर भविष्य में पुरानी मस्जिद को सुंदर खूबसूरत मस्जिद में तब्दील करने की सोच रहे थे।

सारी बातों पर सोच विचार करके हनुमान महापंचायत बुलाकर अपना फैसला सुनाता हैं कि "मैं अपने होने वाले दामाद माधव की बात से सहमत होने के बाद जिस जमीन की खुदाई में सरस्वती मां की प्राचीन मूर्ति निकली है, उस जमीन को सरस्वती मां के नाम से ज्ञान का मंदिर यानी की विद्यालय बनवाने के लिए दान में देता हूं।"

हनुमान की यह बात से हिंदू मुस्लिम दोनों पक्ष सहमत हो गए थे, क्योंकि इलाके में मंदिर मस्जिद तो बहुत थे, लेकिन विद्यालय एक भी नहीं था।

और हिंदू मुसलमान चंदा इकट्ठा करके सरस्वती मां के नाम से एक विशाल विद्यालय बनवा देते हैं।

और इस तरह हनुमान अपने होने वाले दामाद माधव से सहमत होकर देश के भविष्य बच्चों के लिए दंगा नहीं खुशहाली की नींव रख देता है।

और माधव अपने होने वाले ससुर के फैसले से खूश होकर अपनी भूख हड़ताल खत्म कर देता है।