fox and hen in Hindi Children Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | लोमड़ी और मुर्गी

Featured Books
  • 99 का धर्म — 1 का भ्रम

    ९९ का धर्म — १ का भ्रमविज्ञान और वेदांत का संगम — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎...

  • Whispers In The Dark - 2

    शहर में दिन का उजाला था, लेकिन अजीब-सी खामोशी फैली हुई थी। अ...

  • Last Benchers - 3

    कुछ साल बीत चुके थे। राहुल अब अपने ऑफिस के काम में व्यस्त था...

  • सपनों का सौदा

    --- सपनों का सौदा (लेखक – विजय शर्मा एरी)रात का सन्नाटा पूरे...

  • The Risky Love - 25

    ... विवेक , मुझे बचाओ...."आखिर में इतना कहकर अदिति की आंखें...

Categories
Share

लोमड़ी और मुर्गी

बाल कहानी :- लोमड़ी और मुर्गी
एक बार एक जंगल में एक मुर्गी और लोमड़ी कहीं बाहर भोजन की तलाश में जा रही थीं। उन दोनों में गहरी दोस्ती थी। मुर्गी पेड़ पर चढ़ जाती और जैसे ही उसे लोमड़ी के अनुरूप कोई शिकार दिखायी देता तो वह बाँग देती। बाँग की आवाज सुनकर नीचे छिपी लोमड़ी शिकार को पास आते देखकर उस पर हमला करती। इस प्रकार लोमड़ी अपने लिए भोजन का प्रबन्ध करती।
एक बार मुर्गी कहीं बाहर जा रही थी। तभी वहाँ कँटीली झाड़ियों में फँस गयी। वह लाख कोशिशों के बाद भी निकल न सकी। तभी लोमड़ी ने इस शर्त पर उसकी जान बचायी थी कि वह भविष्य में हमेशा शिकार करने में उसकी मदद करेगी। इसी कारण दोनों एक - दूसरे के मित्र बन गयीं और समय आने पर दोनों एक - दूसरे की सहायता करतीं।
एक दिन वे दोनों कहीं गाँव से बाहर जा रही थीं। शाम का समय हो चुका था। धीरे - धीरे रात्रि का अन्धकार छाने लगा था। तभी किसी की आहट मिलने पर मुर्गी पेड़ पर चढ़ गयी। शिकार के पास आने पर मुर्गी ने बाँग दी। मुर्गी की बाँग सुनकर जैसे ही शिकार को नजदीक देखकर लोमड़ी उस पर झपटी। वह आश्चर्यचकित हो डर से काँपने लगी। अरे! यह तो जंगली कुत्ता है। जंगली कुत्ते के जोर से भौंकने पर लोमड़ी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। अगले ही पल जंगली कुत्ते ने लोमड़ी पर हमला किया। मुर्गी विवश हो यह सब देख रही थी कि मैंने यह क्या कर दिया? कुछ ही देर में मुर्गी को बेसुध लोमड़ी जमीन पर पड़ी दिखाई दी। जंगली कुत्ता उसे खींचकर जंगल के भीतर ले गया। मुर्गी वहाँ से तुरन्त उड़ी और अपने घर आ गयी। सभी के पूछने पर उसने यही कहा कि- "मुझे भी कई दिनों से लोमड़ी दिखाई नहीं दी। मैं स्वयं परेशान हूँ।" जानवरों को मुर्गी पर शक तो हुआ, लेकिन वे भी लोमड़ी की हरकतों से परेशान थे, इसलिए सब चुप रहे।
संस्कार सन्देश :- हम जिसके साथ जैसा बर्ताव करते हैं। एक दिन हमारे साथ वैसे ही घटना घटती है।




बाल कहानी - अहंकारी सेठ
एक समय की बात है। बेलही नामक एक गांँव में एक अमीर सेठ गोपाल रहता था। वह बहुत ही धनवान था। गाँव के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। इस वजह से सेठ घमण्डी और अहंकारी हो गया था।
बेलही गाँव मुख्य सड़क से हटकर कुछ दूरी पर बसा हुआ था और शहर जाने के लिए कोई भी साधन उस गाँव से नहीं था। लोग या तो अपने निजी साधन से या फिर पैदल ही मुख्य सड़क तक जाया करते थे।
एक दिन गोपाल सेठ अपनी बड़ी सी गाड़ी में सवार होकर कहीं जा रहा था। रास्ते में उसी के गांँव का गरीब किसान हरिया पैदल अपनी बीमार बेटी को गोद में उठाये हुए जाता दिखा। बेटी को गोद में लेकर चलते-चलते हरिया बहुत थक गया था। सेठ की गाड़ी देखकर हरिया के मन में थोड़ी उम्मीद जगी कि काश! सेठ उसकी बीमार बेटी को सड़क तक छोड़ दे, तो जल्दी अस्पताल पहुंँच जायें। गोपाल ने गाड़ी से झाँककर तो देखा, लेकिन गाड़ी नहीं रोकी। हरिया बेचारा दु:खी मन से चुपचाप चलता गया।
बात बीत गयी। हरिया की बेटी की तबियत धीरे-धीरे सुधर गयी। गाँव के सारे किसान इस समय धान की फसल की कटाई में लगे थे। हरिया अपने परिवार के साथ खेतों में काम कर रहा था, तब-तक उसका पड़ोसी बिरजू दौड़ता हुआ आया और उससे बोला, "हरिया! जल्दी चलो, गोपाल सेठ की बेटी को बिच्छू ने काट लिया है। तुम शायद उसे बचा सको।" हरिया की आंँखों के सामने अपनी बीमार बेटी को पैदल चलते हुए वह दिन याद आया, लेकिन अगले ही क्षण वह तुरन्त अपना काम वहीं छोड़कर बिरजू के पीछे चल दिया। सेठ के घर पर रोना-पीटना मचा था और सेठ भी आज घर पर नहीं था। हरिया ने आंँखें बन्द करके दो-चार बार मन्त्र पढ़कर उस बच्ची पर जल छिड़का और उसके सिर को सहलाया। बिच्छू के जहर का असर कम हुआ और कुछ ही क्षणों में सेठ की बेटी आँखें मलती हुई उठ बैठी।
गाँव भर के लोग हरिया की खूब तारीफ कर रहे थे। तब-तक सेठ भी घर आ गया। पूरी बात जानकर सेठ का मन हरिया के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर गया। वह हरिया के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और बोला, " हरिया! मुझे क्षमा कर दो। उस दिन तुम अपनी बीमार बेटी को गोद में‌ लेकर पैदल जा रहे थे, तब मुझे तनिक भी दया नहीं आयी, लेकिन आज तुमने साबित कर दिया कि वास्तव में तुम बहुत बड़े हो। धन - वैभव से नहीं बल्कि मनुष्य दया और करुणा जैसे गुणों से महान और बड़ा बनता है।
संस्कार सन्देश :- हमें अपनी धन - सम्पत्ति पर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए और अपने आस - पास के लोगों की यथा - सम्भव सहायता करनी चाहिए।