Shuny se Shuny tak - 50 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 50

Featured Books
  • فطرت

    خزاں   خزاں میں مرجھائے ہوئے پھولوں کے کھلنے کی توقع نہ...

  • زندگی ایک کھلونا ہے

    زندگی ایک کھلونا ہے ایک لمحے میں ہنس کر روؤں گا نیکی کی راہ...

  • سدا بہار جشن

    میرے اپنے لوگ میرے وجود کی نشانی مانگتے ہیں۔ مجھ سے میری پرا...

  • دکھوں کی سرگوشیاں

        دکھوں کی سرگوشیاںتحریر  شے امین فون کے الارم کی کرخت اور...

  • نیا راگ

    والدین کا سایہ ہمیشہ بچوں کے ساتھ رہتا ہے۔ اس کی برکت سے زند...

Categories
Share

शून्य से शून्य तक - भाग 50

50===

मनु अपने बारे में न सोचकर एक बेटी के पिता के बारे में सोच रहा था| एक ऐसी बेटी जिसके कारण वे कितने परेशान रहे थे, रहे थे| वे एक वात्सल्यपूर्ण पिता थे, एक उत्तम मित्र थे, एक ईमानदार व्यक्ति थे और सबसे बड़ी बात कि वे उसके माता-पिता के बाद उन बच्चों के सिर पर वटवृक्ष की शीतल छाया से बने रहे थे और आज भी बने हुए हैं| आशिमा का विवाह अकेले मनु कैसे कर पाता यदि दीना अंकल उन बच्चों के पीछे ढाल बनकर न खड़े रहते| उसके अपने चाचा ने तो यहाँ से जाने के बाद गलती से भी उन बच्चों की कोई खबर नहीं ली थी| अभी तो दूसरी बहन रेशमा सामने थी| अगर वे आशी की चिंता से मुक्त होंगे तबही रेशमा के बारे में सोच सकेंगे जो वास्तव में उसकी ड्यूटी थी| 

मनु अच्छी तरह जानता, समझता था कि यदि वह इस रिश्ते से मना भी कर देगा तब भी दीना अंकल उससे कुछ नहीं कहेंगे, कभी अपने कर्तव्य से नहीं हटेंगे| नहीं, नहीं उनकी बेटी के प्रस्ताव को स्वीकार करना, एक प्रकार से उनका अपमान ही होगा| वह हरगिज़ ऐसा नहीं कर सकता| आशी की बातों से उसके मन की पीड़ा न जाने कितनी गुणा बढ़ गई थी लेकिन दीना अंकल से उन बातों को साझा करना उन्हें और तकलीफ़ देना था| 

“आप कुछ चिंता न करें अंकल , सब अच्छा ही होगा| अगर आशी ने आपसे हाँ की है तो मैं भी अपने मम्मी-डैडी के सपनों को पूरा करने में आनाकानी नहीं करूँगा| ”मनु ने बड़े प्यार से कहा| 

दीना की आँखों में आँसू भर आए| वैसे वे अपनी कोई कमज़ोरी किसी के सामने ज़ाहिर नहीं होने देना चाहते थे लेकिन ऐसी उनकी कौनसी कमज़ोरी थी जो मनु नहीं जानता या समझता था| वह बात अलग थी कि मनु उन्हें कभी छोटा या कमज़ोर महसूस नहीं होने देना चाहता था इसीलिए यह और भी महत्वपूर्ण था कि आशी की बातें उनके साथ शेयर न करके उन्हें अपने भीतर ही दबा ले| 

दोनों अपने चैंबर्स में जाने के लिए खड़े हो चुके थे| उसने दीना अंकल को ज़ोर से आलिंगन में ले लिया जैसे किसी छोटे बच्चे को सहलाने की कोशिश कर रहा हो| उनकी आँखों से आँसू की कुछ बूंदें मनु के कंधे पर चू गईं| कुछ देर तक दोनों इसी प्रकार एक-दूसरे को थामे खड़े रहे | आज मनु का आलिंगन उन्हें अपने दोस्त डॉ सहगल की बाहों का सहारा लग रही थीं| उन्होंने मनु को अपने से अलग किया और बेसिन पर जाकर एक बार मुँह पर छींटे मारकर अपने को नॉर्मल करने की कोशिश की| बेसिन काफ़ी दूर कोने में था लेकिन ऐसा नहीं था कि मनु कुछ देख, समझ नहीं पा रहा था| 

जब तक दीना अंकल अपने आपको संभालकर उसके पास आए, वह भी खुद को संभाल चुका था| एक मौन समझौता सा दोनों के दिल में हो चुका था| बाहर निकलते समय दोनों काफ़ी सामान्य हो चुके थे| इसके बाद उन दोनों में इस विषय पर कोई चर्चा नहीं हुई| 

अमरावती पर्वत की पवन के झौंके आशी को उन बातों के बीच खींचकर ले गए जिन बातों को आशी मनु से कहकर आई थी| लिखते-लिखते उसकी आँखें बरस पड़ीं थी, कैसे कह पाई थी वह सब उस मनु को जिसको वह न जाने कबसे प्यार करती थी| जानती थी कि मनु भी उससे प्रेम करता है, समर्पित प्रेम!इसीलिए मनु की परीक्षा लेनी बहुत जरूरी लगी उसको| क्या ऐसी बातों का कोई औचित्य था जो वह उससे कहकर आई थी? यह बात बाद में महसूस हुई, जब अपने आत्माभिमान में उसने मनु को अपने अहं की भट्टी में झौंका था तब कहाँ उसे इस बात का अहसास हुआ था?