Shuny se Shuny tak - 68 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 68

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शून्य से शून्य तक - भाग 68

68===

अनन्या के करीब जाने के बाद एक ओर उसे शारीरिक व मानसिक संतुष्टि का अहसास होता था तो दूसरी ओर अपने ऊपर ग्लानि कि वह दीना अंकल जैसे अच्छे इंसान के विश्वास को किस प्रकार तोड़ सका?उसका मानसिक क्लेश उसे भीतर से खोखला करने लगा| दीनानाथ उसके स्वभाव से परिचित तो थे ही, उन्होंने उसे बचपन से देखा था, अब आशी से अधिक उसने और उसकी बहनों ने उनका ध्यान रखा था और आज भी वह उन्हें ज़रा सा परेशान देखकर स्वयं परेशान हो जाता था| क्या उसकी खुशी उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखती थी जिसे उनके ही खून ने बर्बाद कर दिया था| एक ओर वे यह भी सोचते कि आशी तो शादी करना ही नहीं चाहती थी ये तो वही थे जिन्होंने सोचा था कि शादी के बाद मानसिक व शारीरिक संबंध बनने से दोनों एक पक्के रिलेशन में बंध जाएंगे और जीवन का आगे का सफ़र आसान हो जाएगा| अभी रेशमा भी उनके सामने थी| 

बच्चों के पिता डॉ.सहगल उनके लिए सारी सुविधाएं करके इस दुनिया से सिधारे थे, वे तीनों बच्चे इतने समझदार थे कि यदि दीना उनकी इतनी चिंता न भी करते तब भी आराम से अपने घर में रहकर अपने जीवन की गाड़ी को सही पटरी पर अच्छी प्रकार से चला सकते थे लेकिन उन सबको अपने दीना अंकल की चिंता ही अधिक रही और वे कोशिश करके भी उन्हें छोड़कर नहीं जा सके| दोनों ओर के संबंध अत्यंत भावुक व संवेदनशील थे| 

आशी को फ्रांस गए हुए अब छह माह से अधिक हो गए थे लेकिन उसने कभी मनु से बात करने की चेष्टा नहीं की थी बल्कि मनु बात करने की कोशिश करता तब वह टालमटोल करके उससे बात भी न करती| मनु को  अभी तक आशी से सिवा इंसल्ट के कुछ नहीं मिला था| 

“मैं ठीक कह रहा हूँ बेटा मनु, अनु को उसका स्थान मिलना  ही चाहिए---”न जाने कब अनन्या अनु बन गई थी?

“अंकल----”मनु के मुँह से दबी हुई आवाज़ निकली| वह बहुत शर्मिंदा था| 

“मैं तुमसे बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूँ बेटा, बल्कि तुमने अनन्या को अपनाकर मेरे दिल का बोझ हल्का कर दिया है| वरना मैं कभी भी अपने आपको माफ़ नहीं कर पाता| ”वह रो पड़े थे| 

“अंकल प्लीज़, ऐसा मत करिए---”उसने उनके आँसु पोंछकर उनके हाथों में अपना मुँह छिपा लिया और फफककर रो पड़ा| ग्लानि से वह बेहद झुका जा रहा था| मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे और वह जैसे धरती में गड जाए ऐसी मन:स्थिति में था| 

“मैं बिलकुल ठीक कह रहा हूँ मनु बेटा, वह अनन्या ही है जिसकी ज़रूरत तुम्हें है, इस घर को है, हम सबको है| ”उन्होंने गंभीर स्वर में कहा| 

“अंकल, आशी----?”उसके मुँह से निकला| 

“अब उसका भाग्य है और वह है, शायद विधाता ने उसे यही सब भोगने के लिए भेजा है| ”आँसु भरी हुई आँखों और भरे हुए गले से उन्होंने कहा| उदासी की बदलियाँ मनु और दीना जी, दोनों के चेहरों पर छाई हुई थीं| 

“अंकल !---”मनु कुछ रुका फिर शायद यह सोचकर बोल उठा कि अब सब बातें खुल ही गई हैं तब कुछ भी छिपाने से क्या लाभ है| अंत में समस्या का समाधान तो अंकल ही करेंगे| 

“बहुत अकेला महसूस करता था, अनन्या ने मुझमें फिर से जीने की आशा भर दी वरना मैं आशी के जाने के बाद तो बिलकुल टूटने लगा था---”अब दीना के आँसु रुक गए थे लेकिन मनु की आँखों से बरबस आँसु फिसले जा रहे थे| 

“मैं कैसे उसे घर ला सकता हूँ ?कौन से रिश्ते से?ये हमने क्या कर दिया---क्यों हम खुद को वश में नहीं रख पाए ?” मनु के आँसु रुक ही नहीं रहे थे| 

“मनु ! वह भी हमारी बच्ची है, उसकी इज़्ज़त भी हमारी इज़्ज़त है, मैंने तुम्हें इस परेशानी में डाला है, मैं ही तुम्हें इससे निकालूँगा----”

“अंकल, मैं कैसे उसे घर ला सकता हूँ ?”वह फिर से जाने कैसे अंकल पर आ गया था| 

“तुम उसे शादी करके पूरे सम्मान से घर लाओगे| ”

“आप भूल रहे हैं, मैं शादीशुदा हूँ---”मनु का मन चीख-चीखकर जैसे अपने ऊपर हँस रहा था| 

“मैं कुछ भी कैसे भूल सकता हूँ बेटा?पिता हूँ----”

“बिना तलाक मैं शादी कैसे कर सकता हूँ और शादी के बिना उसे घर कैसे ला सकता हूँ ?”सब बातें खुलकर हो रही थीं जो जरूरी भी थीं| 

“तलाक भी होगा और तुम्हारी शादी भी अनन्या से होगी---और ये क्या फिर से अंकल कहने लगे हो मुझे!मैं पिता हूँ तुम्हारा, डैडी कहो मुझे---”

मनु दीना अंकल के सीने से चिपट गया| दोनों को एक शांति सी महसूस हुई जैसे !