Raj gharane ki Dawat - 3 in Hindi Comedy stories by puja books and stories PDF | राज घराने की दावत..... - 3

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राज घराने की दावत..... - 3

              राज घराने की दावत, 3


" जाओ!!!मुझे तुम्हारी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है सुधीराम "


" अच्छा चलो एक काम करते हैं "!!!!!!तुम अपने पुत्र से स्वयं ही पूछ लो यदि मैंने उससे कुछ पूछा होगा तो मैं अपनी मुझे उखाड़ लूंगा और....यदि नहीं पूछा होगा तो तुम अपनी उखाड़ना "


यह सुनकर मतकू राम अपने पुत्र से पूछता है तो उसका पुत्र बताता है की सुधि राम ने उसे कुछ नहीं पूछा इसलिए सुधीराम मतकू राम को देखते हुए कहता है कि" अब बोलो मतकू राम??? "


" क्या सोचा फिर???? "

उसके ऐसे व्यंग्य को मतकू राम सह ना  सका और वह सीधा ही सुदी राम के हाथ को पकड़ लेता है और फिर दोनों दोस्तों में ऐसा युद्ध शुरू हो जाता है कि मानो तो कृपया आपस में बुरी तरह टकरा रहे हो और जोर-जोर से आवाज कर रही हूं 

दोनों में भीष्ण युद्ध हो जाता है और दोनों कभी मतकू राम श्री राम के ऊपर गिर जाता है कभी सुदी राम मतकू राम के ऊपर गिर जाता है


और लड़ते-लड़ते दोनों ही हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे होते हैं


मतकू राम:-" महावीर बजरंगबली "


सुधि राम:-" भूत पिशाच निकट नहीं आवे महावीर जब नाम सुनावे"

मतकू राम  :-"जय जय जय बजरंगबली"


सुधि राम"-" प्रभु जी रखियो लाज हमारी "


मतकू राम लड़ते हुए कहता है अपना मुंह बिगाड़ करके "यह तो सुदी राम हनुमान चालीसा में आता ही नहीं है"


सुधीर राम मतकू राम से लड़ते हुए कहता है "यह हमने खुद रचा है क्या यह कोई तुम्हारी तरह रति हुई विद्या है जिसको जितना चाहो उतना ही आगे रख दो....."


मतकू राम सुदी राम को बोलता है

"अरे सुदी राम तुम रचना की बात कहते हो यदि हम रचना पर आ गए तो एक दिन में हम 1 लाख स्तुतिया रच दे बस इसीलिए नहीं रखते क्योंकि इतनी आवश्यकता किसको है???"


फिर दोनों पंडित अलग-अलग तरफ खड़े हो जाते हैं और दोनों अपनी-अपने रचनाओं की डिंगे हाकते रहते हैं 


अब मतकू राम और सुधीराम का युद्ध हाथापाई से खत्म होकर शास्त्रों की लड़ाई पर आ गया था जो की क्या पंडितों के लिए ही है यह शोभा देता है??

फिर किसी ने मतकू राम के घर पर दोनों की यह भीषण लड़ाई होते हुए देख ली होती है और सुधि राम के घर पर जाकर बता दिया जाता है 

सुधि राम जो की तीन पत्नियों के स्वामी थे.. सुदी राम का  दूर-दूर  तक जजमानी का जज्बा था..,,,,,, और फिर दक्षिण के साथ-साथ लड़की मिल रही हो गृह स्वामीनी  मिल रही हो तो भला एक पंडित कैसे उसको ऐसे  अस्वीकार करते?????

उनकी तीनों पत्नियों का आतंक पूरे मोहल्ले में छाया रहता था

सुधीर राम ने उन तीनों के नाम बहुत ही रसीले मिठाइयों पर रखे हुए थे,,,, पहली पत्नी का नाम तो था इमरती,,,,, दूसरे का नाम था जलेबी,,,,, और तीसरी का नाम था रसगुल्ला,,,,,,

लेकिन तीनों तीनों मोहल्ले वालों के लिए किसी कड़वे करेले से काम नहीं थी......

घर में नित्य आंसुओं की नदियां बहती रहती थी 

और पंडित जी ने तो वैसे भी खून की नदियां कभी नहीं भाई 

पर मजाल है बाहर का आदमी उनको कुछ कह कर भी निकल जाए और तीनों की तीनों ऐसी थी कि जब भी कोई मुसीबत आती तो तीनों पत्नियों एक साथ खड़ी हो जाती थी यह पंडित सुदी राम के नीति का ही सफल था और उनको जैसे ही पता चला कि उनके पति सुधीर राम जी कोई संकट आया है तो तीनों की तीनों एकदम काली की तरह कुपित हो गई

और तीनों घर से साथ निकल पड़े और उनमें से दो जो कि ज्यादा मोटी नहीं थी वह सबसे पहले मतकू राम के घर के महायुद्ध के आंगन में पहुंच गई अब जैसे ही पंडित मतकू  राम ने उनको आते हुए देखा तो उनकी समझ में आ गया कि अब सुदी राम के साथ पंगा लेना कोई समझदारी की बात नहीं है और वह वहां से हाथ छुड़वाकर सटक लेते हैं फिर सुदी राम जी मतकू राम को बहुत ललकारते हैं लेकिन मतकू राम ने एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया


"अबे मतकू राम भाग क्यों रहे हो कुछ तो स्वाद लेते जाओ मेरी तीनों पत्नियों बड़ी रसीली है तुम्हें बहुत अच्छे से मिठाई खिलाएंगी """" सुधि राम मतकू राम को कहता है 


" हार गया भाई!!! मैं हाथ जोड़ तेरे आगे!!! मैं हार गया" मतकू राम सुधीर राम को कहता है 

" अरे ऐसे कैसे मतकू राम थोड़ी दक्षिण तो लेते जाओ"


फिर मतकू राम भागते भागते हुए सुधीराम को कहता है की "दया करो भाई!!! दया करो!!"फिर वह अपने घर पर भाग कर आ जाता है और शाम की नहा धोकर पूजा कर लेता है फिर वह सोचता है कि अब विलंब नहीं करना चाहिए


और अपनी पत्नी से कहता है कि" तुम तैयार होना चलने के लिए?? "

उनके पत्नी कहती है कि" हम तो कब से तैयार है,,,,, तुम ही पूजा पाठ में लगे हुए,,,,भला रात को कौन देखता है? कि तुम कितनी देर पूजा करते हो?? "