Jivan Sarita Naun - 6 in Hindi Poems by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" books and stories PDF | जीवन सरिता नौन - ६

Featured Books
  • فطرت

    خزاں   خزاں میں مرجھائے ہوئے پھولوں کے کھلنے کی توقع نہ...

  • زندگی ایک کھلونا ہے

    زندگی ایک کھلونا ہے ایک لمحے میں ہنس کر روؤں گا نیکی کی راہ...

  • سدا بہار جشن

    میرے اپنے لوگ میرے وجود کی نشانی مانگتے ہیں۔ مجھ سے میری پرا...

  • دکھوں کی سرگوشیاں

        دکھوں کی سرگوشیاںتحریر  شے امین فون کے الارم کی کرخت اور...

  • نیا راگ

    والدین کا سایہ ہمیشہ بچوں کے ساتھ رہتا ہے۔ اس کی برکت سے زند...

Categories
Share

जीवन सरिता नौन - ६

नौं सौ रसियों की रसभीनी, मन अबनी सरसाई।

गौरव बांटत दोनों कर, बनवार शहर पर आई।।

अवध धाम बनवार बन गया, सरयू नदि सी पाकर।

तन मन के मल दूर हो गए, पाबन जल में नहांकर।।51।।

अगम पंथ में,पंथ बनाती, ग्राम ककरधा आई।

छिद्र –छिदा के सभी मैंटकर हृद पर नहर विठाई।।

 शूल मिटाती द्विकूलों के किशोरगढ़ को पाया।

रूप किशोर बनाया उसका,भदेश्‍वर को सरसाया।।52।।

 कहां भदेश असुर का स्‍थल, शाप मुक्‍त सा कीना।

पंच महल की भूमि बना जो, सबका स्‍वर्ण नगीना।।

दौलत बांटत दौलत पुर को, रिझा-रिझौरा काया।

दौनी को गौनी सी करके, मैंना चमन बनाया।।53।।

बेरों के खेरे को सच में, मूंगों से भर दीना।

शस्‍य – श्‍यामलम,हरा-भरा, बेरखेरा को कीना।।

मिली सरांय पंथ में जब ही, श्रमकण बहां लुटाएं।

खुशहाली बांटी मनमानी, धन से धनद बनाए।।54।।

भारत का हिमगिरि, काया का शिर ही श्रेष्‍ठ रहा है।

शोभा सागर, अतुल, अनूठा, शिरसा जिसे कहा है।।

गिनती का क्रम कौन बखाने, गिनो सेकरा भाई।

धन, धान्‍यों से सजी सजायी, जिसकी काया पाई।।55।।

खीर बांटती खिरिया छोड़ी, सूखा नद अपनाया।

उसे सनेही भ्रात मानकर, अपने गले लगाया।।

सूखा नद ने, नौन बहिन को, नीर भैंटकर माना।

करत विदाई, जल धन देकर, संकट साथ निभाना।।56।।

जब–जब संकट आएं भगिन पै, रक्षा भ्रात करेगा।

सूखा रह सदां, स्‍नेह नीर दे, सारे कस्‍ट हरेगा।।

दान लिया सूखा भ्राता से, साथ इकहरा पाया।

खिरिया से सम्‍मान ले, सबसे सब कुछ पाया।।57।।

सूखा कहने लगा, कहां कहां से जल लाया।

रानी घाटी के संतों से, पावन गंगा लाया।।

सरयूदास महामुनि, इस गंगा को, गंगा ही से लाए।

गोमुख तहां, बह रही गंगा, गो-मुखी नाम धराए।।58।।

रानी घाटी से वही जब गंगा, ग्राम बाजना आई।

लखत लखेश्‍वरी, डोंगरपुर, साथ मरउआ छाई।।

स्‍याऊ, रिठौंदन, ईंटों छानी, देख रिछारी प्‍यारी।

मस्‍तूरा को अपना कर के, रही ली वसा किनारी।।59।।

आय सिंघारन डेम बनाया, बेला को सरसाया।

प्‍यार पचौरा को देके, गड़ाजर साथ निभाया।।

चरखा होती चली छिरैंटा, ग्राम इकहरा आया।

खिरिया साथ इकहरा पर, तेरा साथ निभाया।।60।।

और सुनो ,दूजी गंगा जो, प्रकटी पावन घाटी।

हरीभरी कर दई है उसने, यहां की मांटी- माटी।।

ग्राम करहिया गोलेश्‍वर से, झरना- गंग बहाया।

साथी बना मेहगांव गांव को, तेरा साथ निभाया।।61।।

एक और गयेश्‍वरी-बराहना माता ने, जलदीना।

झरना बहा करहिया के ढिंग, गौलार घाटी चीन्‍हा।।

हनूं लाल, जो मकरध्‍वज हैं, उनकी लीला न्‍यारी।

पर्वत तर विश्राम कर रहे, कीरत जग विस्‍तारी।।62।।

धूम-धाम से, धाम सजा है, गंगा वहां प्रकट दिखाई।

झर – झर झरना तहां झर रहा, यह उनकी प्रभुताई।।

ग्राम दुबहा को गौरव बांटा, धन धान्‍यों भर दीना।

कितना क्‍या बताऊं तुझको, यह सब मैंने दीना।।63।।

खिरिया से जब आगे चल दी, ग्राम भानगढ़ पाया।

सर्वा को सब कुछदेकर के, माला माल बनाया।।

यहां मेंगरा मिला नौन से, उसने भी चर्चा खोली।

मैं भी पाबन जल लाया हूं, नौन नदी तब बोली।।64।।

कहां से लाए हो जल भाई, अपनी बात बताओ।

तुमसे मिल, मैं धन्‍य हो गई, आओ आओ आओ।।

तभी मेंगरा ने खोला यह, अपना चिट्ठा न्‍यारा।

लाया- सिद्ध गुफा मद्धा से, यह गंगा जल प्‍यारा।।65।।

मद्दाग्राम संत मुनियों का, तप कर क्षेत्र सजाया।

सिद्ध गुफा पर कई यज्ञ की, तभी नाम यह पाया।।

सिद्धेश्‍वर हैं, सिद्ध गुफा के, औढ़र दानी स्‍वामी।

पाबन धरती इनने कीनी, गंगा झरना नामी।।66।।

पाकर के चरणामृत गंगा, क्षेत्र किया बड़भागी।

बनबारी, बनबार, मऊछ, अमरौल भी मन जागी।।

भोरी को भर कर धान्‍यों से, पिपरौआ सरसाया।

आस पास को सुख देते , छीमक को अपनाया।।67।।

सिद्ध धाम से चला मेंगरा, सैंतौल को सुख दीना।

यहीं आनकर मिला चिनौरिया, चीनौर अपना कीना।।

ककरधा घाटी, का जल मेरा, अति पाबन है सारा।

ररुआ, घरसौंदी, भैंगना का, जल लाया हूं न्‍यारा।।68।।