Pratishodh - 9 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्रतिशोध - 9

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प्रतिशोध - 9

पहले उमेश फिर होटल मैनेजर और उसके दोस्त।दस दिन तक रात और दिन उसका शरीर नोचते रहे।न चाहते हुए भी वह विवश थी।कुछ नही कर सकती थी।उसे होटल में कैद कर रखा था।और दस दिन बाद वह उन लोगो के चुंगल से बाहर निकल पायी थी।
बाहर आकर उसने सोचा था।
वह वापस लौटकर मामी के पास नही जा सकती थी।पहले ही मामी उसे नही चाहती थी।औऱ अब तो वह मामी का गहना और रु चुरॉकर भागी थी।फिर किस मुँह से वह वापस लौट सकती थी।
मर्दो से उसे नफरत हो गई थी।इतनी नफरत कि उसे आदमी दुश्मन नजर आने लगे।और उसने मर्दो से बदला लेने का फैसला किया।जो मर्दो ने उसके साथ किया उसी को उसने हतियार बनाया।यानी अपने जिस्म को।वह काल गर्ल बन गयी।वह रात होने पर किसी लोकल स्टेशन पर पहुंच जाती।फिर वह प्लेटफॉर्म पर घूमने लगती।वह लोगो का जायजा लेती।किसी अकेले को देखकर वह उसके करीब जाकर धीरे से कहती
मैं साथ चलू
कई बार उसे पहली बार मे ही ग्राहक मिल जाता।और कई बार कई लोगो के पास उसे जाना पड़ता तब कोई एक तैयार होता।जी भी मर्द उसे अपने साथ ले जाता उसका नाम पूछता।किसी के लिए मीरा,किसी के लिए सबनम किसी के लिए जुली।हर रात को वह अपना नाम बदल लेती।।
वह अपने ग्राहक के घर जाते ही शराब की मांग करती।खुद सिर्फ पिंड का नाटक करती।प्यार जताकर वह ग्राहक को इतना पिला देती की उसे होश ही नही रहता।और वह इसी का फायदा उठाती।उसकी नगदी और गहने चुराकर रात में ही रफूचक्कर हो जाती।
कभी कभी ऐसा भी होता कि कोई ऐसा ग्रहक मिल जाता जो शराब न पिता हो।ऐसे ग्राहक को लूटने में उसे कई तरीके अपनाने पड़ते।वह अपने पास बेहोश करने की दवा भी रखती थी।जैसे ही मौका मिलता वह इस दवा का इस्तेमाल भी करने से न चूकती।
और वह पूरे एक महीने तक मुम्बई में रहकर लोगो यानी मर्दो को अपने जिस्म के जल में फंसाकर उन्हें लूटने का कम करती रही।औऱ एक महीने बाद उसने अपने रहने की जगह बदल ली।वह मुम्बई छोड़कर वापी चली गयी रहने का भी उसका कोइ ठिकाना नही था।अलग अलग जगह जाकर वह रहने लगती।रहे चाहे जहाँ भी वह मर्दो को लूटने के लिए मुम्बई ही जाती।इसी महानगर में मर्दो ने उसे लूटा था।यही पर मर्दो को लूटने के लिए रात होते ही वह आ जाती।और सुबह होने से पहले ही वापस लौट जाती।शुरू में जरूर उसे परेशानी हुई।लेकिन अब तो वह इस काम मे पारंगत हो चुकी थी।शातिर खिलाड़ी बन चुकी थी।
वह प्रतिशोध कि आग में जल रही थी।छोटे से कस्बे की भोली भाली मासूम लडक़ी के भोले पन और नादानी और उसकी मजबूरी का फायदा उठाकर उमेश उसे अपने साथ भगा लाया था।उसकी मांग मे सिंदूर भरकर उसे हर तरह से लूट लिया।और उसे अकेला छोड़कर भाग गया था।
उमेश ने जो किया उसे वह भूली नही थी।उसे उमेश की तलाश थी।असली प्रतिशोध तो उसे उमेश से ही लेना था
उसे उमेश की तलाश थी।दुनिया चाहे जितनी बड़ी हो लेकिन रानी को पूरा विश्वास था एक न एक दिन उमेश उसे जरूर मिलेगा और तब वह ऐसा प्रतिशोध लेगी की कोई ओर मर्द किसी औरत से बेवफाई न कर सके।