Nafrat e Ishq - Part 10 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 10

Featured Books
  • Split Personality - 93

    Split Personality A romantic, paranormal and psychological t...

  • One Step Away

    One Step AwayHe was the kind of boy everyone noticed—not for...

  • Nia - 1

    Amsterdam.The cobbled streets, the smell of roasted nuts, an...

  • Autumn Love

    She willed herself to not to check her phone to see if he ha...

  • Tehran ufo incident

    September 18, 1976 – Tehran, IranMajor Parviz Jafari had jus...

Categories
Share

Nafrat e Ishq - Part 10



सहदेव के कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। खिड़की के बाहर बहती हवा की सरसराहट और दीवार घड़ी की टिक-टिक माहौल को और रहस्यमयी बना रही थी। तभी अचानक एक तेज़ आवाज़ गूंजी—"Boo!"



सहदेव हड़बड़ाकर पलटा। उसकी आंखें चौड़ी हो गईं और हाथ में पकड़ी फोल्डिंग लकड़ी और कसकर पकड़ ली। उसकी नज़र सामने खड़े तीन मास्क पहने लोगों पर पड़ी। उनके चेहरे किसी डरावनी फिल्म के पात्रों की तरह लग रहे थे। सहदेव के शरीर में सिहरन दौड़ गई। बिना सोचे-समझे, उसने फोल्डिंग लकड़ी से सबसे आगे खड़े व्यक्ति के सिर पर ज़ोर से वार कर दिया।  



"अरे, सहदेव! पागल है क्या तू?" घायल व्यक्ति चीखते हुए बोला।  



सहदेव ने चौंककर उसकी आवाज़ पहचानी।  



"सूरज?" उसने फुसफुसाते हुए कहा।  



सूरज ने तुरंत अपना मास्क उतार दिया और सहदेव को घूरते हुए बोला, "हाँ, मैं सूरज हूँ! और तूने मुझे सिर पर मार दिया! ये क्या बर्ताव है?"  



सहदेव का चेहरा शर्म और हैरानी के मिले-जुले भावों से भर गया।  



तभी, पीछे खड़े दूसरे व्यक्ति ने सूरज के सिर पर हल्की चपत लगाई और मजाकिया अंदाज़ में बोला, "अरे, प्लान तो काम कर गया! लेकिन तू चिल्लाना बंद करेगा या नहीं?"



अब सूरज के साथ खड़े दोनों व्यक्तियों ने अपने-अपने मास्क उतारे। सहदेव ने उनकी ओर ध्यान से देखा।  



"सुशील और विजय?" सहदेव हैरानी से बोला।  



"हाँ, हम ही हैं। और तुम्हारे रिएक्शन के लिए ही ये सब प्लान किया था," विजय ने हंसते हुए कहा।  





सहदेव को समझ में आने लगा कि यह सब एक शरारत थी। सुशील और विजय, उसके बचपन के दोस्त, जो अक्सर अजीबो-गरीब मजाक करने में माहिर थे, इस बार भी अपनी आदत से बाज़ नहीं आए थे।  



"तुम लोग पागल हो क्या? ये मजाक था? मेरा दिल तो दौड़ने लगा था!" सहदेव ने गुस्से और राहत के मिले-जुले भाव से कहा।  



सुशील ने मजाकिया लहजे में कहा, *"दिल दौड़ने लगा था? अच्छा हुआ, तेरा एक्सरसाइज हो गया। वैसे, तूने सूरज के सिर पर वार क्यों किया? क्या तुझे लगा कि हम भूत हैं?"



सहदेव ने खुद को शांत करते हुए कहा, "भूत नहीं, लेकिन किसी खतरे का शक ज़रूर था। और तुम लोगों ने इस तरह डराने की क्या ज़रूरत थी?"



सूरज ने सिर मलते हुए बोला, "तू तो वैसे भी हमेशा ज्यादा सोचता है। हमें लगा, तुझे थोड़ा हिलाना-डुलाना पड़ेगा। पर ये पता नहीं था कि तू सच में मार देगा।"



सहदेव ने अपनी लकड़ी नीचे रखी और थोड़ी झेंपते हुए कहा, "सॉरी, यार। लेकिन ये सब इतना अचानक हुआ कि मैं डर गया।"  

सहदेव को थोड़ी राहत मिली कि यह सब महज़ एक मजाक था। उसने तीनों को बैठने का इशारा किया। तीनों दोस्त हंसते-हंसते उसके कमरे में इधर-उधर बैठ गए। सूरज ने दर्द से सिर पकड़ रखा था, लेकिन उसकी मुस्कान बताती थी कि वह मजाक का आनंद ले रहा था।  



"यार, तुम लोग अचानक यहाँ कैसे आ गए?" सहदेव ने पूछा।  



सुशील ने जवाब दिया, "हम तीनों ने सोचा कि तुझे सरप्राइज दिया जाए। बहुत दिन हो गए थे, हम मिले नहीं थे। और तेरे पीजी में रहना वैसे ही बोरिंग लगता है।"



विजय ने बात बढ़ाई, "और वैसे भी, तेरे साथ आखिरी बार इतना मज़ा स्कूल के दिनों में किया था। हमने सोचा, पुराने दिनों को वापस लाते हैं।"



यह सुनकर सहदेव की आंखों में पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो गईं। वे चारों स्कूल के समय में साथ पढ़ते थे और शरारतों में माहिर थे। चाहे वह क्लास बंक करना हो, अध्यापक के साथ मस्ती करना हो, या दोस्तों को डराना—वे चारों हमेशा साथ रहते थे।  





"याद है, स्कूल के समय जब हम लाइब्रेरी में किताब पढ़ने के बहाने छिप जाते थे?" सहदेव ने हंसते हुए पूछा।  



सूरज ने तुरंत जवाब दिया, "और हां, उस दिन की याद है जब सुशील ने प्रिंसिपल के कमरे में नकली सांप रख दिया था?"



सभी ठहाके मारकर हंस पड़े। सुशील ने गर्व से कहा, "अरे, वो मेरा मास्टरप्लान था! लेकिन तूने प्रिंसिपल की शक्ल देखी थी? उनकी चीख अभी तक मेरे कानों में गूंजती है।"



विजय ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा, "और जब उन्होंने उस सांप को पकड़कर क्लास में दिखाया, तो तुझे सजा दी गई थी।"



सभी ने मिलकर उस वाकये पर जोरदार ठहाका लगाया।  





बातों का सिलसिला लंबा खिंच गया। चाय और स्नैक्स के साथ उनके पुराने किस्से ताजा होते गए।  



सहदेव ने कहा, "तुम लोग यहां हो तो अब यह रात यादगार बनेगी। वैसे, कुछ देर पहले मैं खिड़की पर परछाई देख रहा था। पता नहीं, यह सिर्फ मेरा भ्रम था या सच में कुछ था।



सूरज ने चुटकी ली, "तूने डरने की आदत नहीं छोड़ी। कोई परछाई नहीं थी, हम ही थे। लेकिन मानना पड़ेगा, तेरे डर से ही ये सब मजाक और मजेदार बन गया।"



सुशील ने कहा, "चल, अब तेरा डर खत्म हो गया, तो हम असली पार्टी शुरू करते हैं।"





सहदेव के कमरे में अब हंसी और जश्न का माहौल था। तीनों दोस्तों ने उसकी आलमारी से कुछ पुराने बोर्ड गेम निकाल लिए, जिन्हें उन्होंने आखिरी बार बचपन में खेला था।  



"यार, यह गेम तो पुराना है, लेकिन मजा आज भी वही है,"विजय ने कहा।  



सहदेव ने महसूस किया कि उसके दोस्तों का यह अचानक आना, उसकी रोजमर्रा की उबाऊ जिंदगी में एक नई ऊर्जा लेकर आया था।  





रात गहरी होती गई। बातें चलती रहीं, और हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। सूरज, सुशील, और विजय की मौजूदगी ने सहदेव की जिंदगी में कुछ घंटों के लिए ही सही, लेकिन बहुत सारी खुशियां भर दी थीं।  



सहदेव ने महसूस किया कि दोस्ती का रिश्ता कितना अनमोल होता है। भले ही उनकी जिंदगी अब अलग-अलग राहों पर थी, लेकिन जब वे साथ होते थे, तो वक्त जैसे ठहर जाता था।  



"यार, तुम लोग वापस कब आओगे?सहदेव ने पूछा।  



सुशील ने मुस्कुराते हुए कहा, "जब भी तुझे फिर से डराने का मन करेगा, हम आ जाएंगे।"



सभी फिर से हंस पड़े।  



रात के इस खास पल ने यह साबित कर दिया कि दोस्ती के छोटे-छोटे मजाक और यादें जिंदगी के सबसे बड़े तोहफे होते हैं