KYA KHUB KAHA HAI in Hindi Poems by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | क्या खूब कहा है...

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क्या खूब कहा है...

कोई ठहर नहीं जाता किसी के भी जाने से
यहां कहां फुरसत है किसी को नया पाने से

पहले मरते थे लोग दवा से महरूम हो कर
आजकल वो लोग मर रहे हैं; दवा खाने से

लोग बहुत बेरहम.. बे–अक्ल आजकल के
अपनों की फ़िक्र नहीं; उन्हें लगाव जमाने से

दूर जाकर चैन से नहीं रहने देते किसी को
उन्हें तो मज़ा आता है पास रहकर सताने से

हक़ीक़त दर्द भरी है तो कोई हाथ नहीं देता
वर्ना जमाना ख्वाब भी चुरा लेता है सिराने से

ताल्लुक था जब तक तो सर पे उठाया गया
इंसानी नस्ल हैं कहा बाज आते हैं गिराने से ..!!

 

 

 

क्या खूब कहा है..

हां.. ना.. में उलझे तो जवाब का मतलब समझे
असल चेहरा दिखा तो नकाब का मतलब समझे

महक रहा था वो जब तक डाली में था गुलाब
जब चुभा कांटा फिर गुलाब का मतलब समझे

आधी जिंदगी जी लिए ; इन्हीं किताबों के भरोसे
जब तजुर्बे मिले फिर किताब का मतलब समझे

जिम्मेदारियां की बेचैनी में मुकम्मल नींद कहा है
जब सोए सुकून से तब ख्वाब का मतलब समझे

जब तक लायक थे देते रहे साथ सबका दुःख में
खुद को जरूरत पड़ी तो हिसाब का मतलब समझे

लिख तो दिया है पता नहीं दिल की बात
कोई समझे या नहीं समझे....!!

 

 

 

मुद्दतो की थकान है सुकून की तलाश है
चेहरे पर शिकन है सुकून की तलाश है

जरा बैठे है ओर थोड़ी सांस भर ले
रास्ते मे तपन है सुकून की तलाश है

हकीकत की चादरो से ढांक दो इनको
टूटा हर सपना है सुकून की तलाश है

कभी ऐसे जियेंगे की खुलकर सांस आये
अभी तो पहना कफन है सुकून की तलाश है ..!!

 

 

 

गुलों के जैसे खिला कीजिए ना
मिलकर संग में चला कीजिए ना

भरोसा नहीं कोई जिंदगी का
हंसकर सभी से मिला कीजिए ना

मिला है सब को मुकद्दर का हिस्सा
शिकवा,शिकायत गिला कीजिए ना

अपना हो या हो वो पराया
दुनिया में सबका भला कीजिए ना

गम की अंधेरी रातों में अक्सर
दीप बनकर खुशी का जला कीजिए ना ..!!

 

 

 

जब तुम पीछे छूट रहे हो
सारे सपने टूट रहे हो

तब औरों को दोष ना देना
अपनी कमियाँ खोज ही लेना

औरों में जब हल खोजोगे
असफलता हर पल भोगोगे

सपने तुम्हारे और क्या जाने
वो सब अपनी गरज के दीवाने

तुम्हारी मंजिल तुम्हे ही जाना
क्यों औरों से आस लगाना

जब तुम पीछे छूट रहे हो
सारे सपने टूट रहे हो

तब औरों को दोष ना देना
अपनी कमियाँ खोज ही लेना..!!

 

 

 

उदास सी शाम बहुत है
दर्द में आराम बहुत है

चर्चे उनके हैं खास बड़े,
किस्से हमारे आम बहुत है

खरीद लिए सस्ते में गम
खुशियों के तो दाम बहुत है

इक्के पान के करें भला क्या,
हुक्म के यहां गुलाम बहुत है

बहुत बटोरे झूठ सुर्खियां
सच्चाई हुई गुमनाम बहुत है

मंजिल बेशक मिली है लेकिन
करने हासिल मुकाम बहुत है

जंग जीत रही है नफरतें
मुहब्बत पर इल्जाम बहुत है

मिला सबक ये नजदीकी से
दूर से दुआ सलाम बहुत है।

दुनियां का जो है रखवाला,
जुबां पर उसका नाम बहुत है..!!