Jungle - 25 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 25

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जंगल - भाग 25

                       (3)

            (    देश के दुश्मन )

            काफ़ी हॉउस मे माया इंतजार कर रही थी, राहुल का, तभी कोई उसके हाथ मे रुका पकड़ा के नुकड़ मे ही कोई आगे निकल लोगों की भीड़ मे छुप गया था। तभी उसने दूर से राहुल को आते देखा... उसके वाल बिखरे हुए, चेहरा पसीने वाला रुमाल से पुझ रहा था, कितनी टेंशन थी, कितना दुःख था, कितना महूस हो चूका था... सास चढ़ी हुई थी।     

     माया ने दूर से हाथ हिला दिया था, राहुल पास आ कर चेयर पे बैठ कर हथेलियो मे चेहरा भींच लिया था... कुछ वो बोलती, राहुल बोला  ---" आज का दिन मनहूस ही निकला... कोई मिला तुम्हे... पर उनको कौनसा पता हैं तुम्हारा.. " एक दम वो हैरान हुआ, ये कया... "रुका गुलाब का फूल साथ मे वो भी बंद किये ---"राहुल बोला...

"कब मिला " राहुल का अटपटा प्रश्न था।

"---मै कया जानू। "  माया ने कहा। कब कोई ऐसी चुस्ती करे गा कोई। राहुल ने कहा, " तुम कयो घबरा रही हो, कोई तो हैं, जो बहुत नजदीक हैं आपने। " सारी बात उसने माया को बताई।

                  " रुके मे कोई खास नहीं, ये रोज हैं, वो भी बंद " इसका मतलब कया हैं, "कोई पार्लर हैं रोज के नाम पे ---" राहुल ने कहा। 

      तभी एकाएक सरसराहट हुई.... माया बोली, " हाँ... वो आदमी हमारे बीच ही हैं। " राहुल का मुँह खुला का खुला ही रह गया... उसने पेनी आँखो से देखा... " कौन " माया ने छोटा विस्की का पेग गले मे उड़ेल लिया था। " चलो यहाँ से चले... यहां ठीक नहीं लगे मुझे। " रोज को उसने पर्स मे रख लिया....

                 -------*-------

            वही सरदार उनको गाड़ी मे बिठा कर एक पार्क मे ले आया था.... तभी सरदार ने कहा, " चौधरी को तुम हैरत मे लगे, ----- पर ये जो भी हैं बुरा हैं " राहुल ने कहा पीछे ही रुको, और तुम इस अड्रेस पे कल आना.... ये गुप्त था जो कर रहे थे।

                    माया ने कहा, " सेक्टरी को बुलाओ। " 

राहुल ने कहा, "उसको कयो बीच खींच रही हो।" माया ने कहा ये पार्क हैं, उसको कहो, लेने आये, गाड़ी मे, उसके घर चले गे... फिर देखना, दूध का दूध पानी का पानी कर दूगी। " राहुल ने वैसे ही किया। पर बात तो बता दो, कौन इस खेल मे, 

     माया ने बिना किसी डर के कहा, " कौन? आपका सेक्टरी महश्य, पांच साल पहले उसकी बीबी पार्लर रोज का काम करती थी, उसने ही टकराई थी वही लड़की.... कयो गेम ऐसे बनी। " कितना सच था, कितना झूठ था.... पर कैसे मान लू, सोच रहा था, राहुल... शिमले की कहानी फिर कया थी.. सोचने पर मजबूर था... तभी फोन की घंटी वजी... रिंगटोन...

" वैरी गुड, अभी तक कुछ भी नहीं हुआ जनाब " 

"कौन हैं आप, कहा मिलू आप को " राहुल ने चौकते हुए पूछा था...

"---मै कौन हू... " ये भारी जी आवाज़ थी... "मै वो हू, अगर चल जाऊ, तो तबाही... सुनो बरखुरदार शिमले को किसी रोमंटिक फ़िल्म की तरा मत लो, धमाका किया करसी बेकार की.. चार करोड़ लिया, चीप चुराई.. और निकल गए... नहीं इतनी आसानी से नहीं, बरखुरदार... भूलते नहीं हम " फिर चुप।

स्पीकर ऑन था.... माया सुन सकती थी।  माथे पर सलवटे दोनों के थे।

(चलदा )--------------------( नीरज शर्मा )