Roushan Raahe - 2 in Hindi Moral Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | रौशन राहें - भाग 2

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रौशन राहें - भाग 2

भाग 2: शहर की दुनिया

काव्या का सफर अब एक नई दिशा में मोड़ ले चुका था। गाँव से बाहर निकलने के बाद, उसने कभी सोचा नहीं था कि वह इतनी जल्दी एक बड़े शहर में कदम रखेगी। उसकी आँखों में उत्साह था, पर दिल में डर भी था। यह एक नई शुरुआत थी, और हर नई शुरुआत में कुछ न कुछ चुनौती होती है।

शहर का माहौल बिल्कुल अलग था। गाँव की सादी ज़िंदगी और यहाँ की तेज़-तर्रार जिंदगी में बहुत फर्क था। इमारतें इतनी ऊँची थीं कि आकाश भी कभी-कभी छिपा हुआ सा लगता था। सड़कें चौड़ी थीं, लेकिन उनमें बहुत भीड़ थी। लोग बिना रुके अपने रास्ते पर चल रहे थे, जैसे किसी को समय की कोई कद्र न हो। काव्या ने पहली बार यह महसूस किया कि वह एक छोटे से गाँव से निकलकर एक विशाल और तेज़ दुनिया में कदम रख चुकी है।

बस से उतरते हुए उसने साँस ली। यह साँस शायद एक नए जीवन की शुरुआत थी। काव्या ने अपनी आँखों से इधर-उधर देखा। यह शहर था, जहाँ सपने साकार हो सकते थे, लेकिन साथ ही यह वह जगह भी थी जहाँ हर किसी को अपनी पहचान बनाने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता था।

"काव्या, तुम सही कदम उठा रही हो," उसने अपने आप से कहा और एक गहरी साँस लेकर आगे बढ़ी।

काव्या का पहला ठिकाना था एक हॉस्टल, जहाँ लड़कियाँ अपने पढ़ाई के सिलसिले में रुका करती थीं। हॉस्टल की दीवारों पर रंग-बिरंगे पोस्टर लगे हुए थे, और अंदर का माहौल बहुत ही हंसमुख और हल्का था। लेकिन काव्या को यह सब नया लग रहा था।

हॉस्टल में काव्या की पहली मुलाकात हुई सुषमा से, जो यहाँ दूसरी साल की छात्रा थी और इस शहर में काफी समय से रह रही थी। सुषमा को देख काव्या को थोड़ी राहत मिली। वह अपनी शरारती मुस्कान के साथ काव्या से मिली और कहा, "यहाँ का माहौल थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन तुम्हें जल्दी ही सब कुछ समझ में आ जाएगा।"

"थैंक यू," काव्या ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।

शहर में पहली बार कदम रखने के बाद काव्या ने महसूस किया कि यहाँ के लोग बहुत अलग हैं। वे सब अपने काम में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें किसी और से कोई मतलब नहीं होता। गाँव में जहाँ हर कोई एक-दूसरे के काम में दखल देता था, यहाँ सब अपने रास्ते पर चल रहे थे। काव्या ने ठान लिया था कि वह इस नई दुनिया में खुद को साबित करेगी।

अगले दिन काव्या ने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। यहाँ के छात्रों के चेहरे पर आत्मविश्वास था, और हर किसी का ध्यान सिर्फ अपनी पढ़ाई पर था। काव्या को लगा जैसे वह एक अलग ही दुनिया में आ गई है। यहाँ के वातावरण में उसके लिए बहुत कुछ नया था—नई किताबें, नए प्रोफेसर, और नए दोस्त।

पहला दिन बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। काव्या के पास बहुत सी किताबें थीं, लेकिन उसके पास इतना समय नहीं था कि वह उन्हें पढ़ सके। प्रत्येक विषय पर नया ज्ञान मिल रहा था, लेकिन उसकी शुरुआत थोड़ी कठिन थी। काव्या ने महसूस किया कि उसे हर पल संघर्ष करना होगा।

शहर की लड़कियाँ, जो पहले ही इस जीवन का हिस्सा बन चुकी थीं, उन्हें यह सब सहज और सामान्य लगता था। लेकिन काव्या को इस सब में घुलने और अपनी जगह बनाने में थोड़ा समय लगेगा।

हॉस्टल के अन्य छात्रों से बातचीत में काव्या को समझ आया कि यहाँ का जीवन बहुत ही प्रतिस्पर्धात्मक था। हर किसी को अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। कोई भी किसी से कम नहीं था।

काव्या ने दिल ही दिल में यह ठान लिया कि वह इस प्रतिस्पर्धा में भी पीछे नहीं रहेगी। वह अपनी पढ़ाई में पूरी मेहनत करेगी और किसी भी हाल में अपने सपनों से समझौता नहीं करेगी।

"काव्या, तुम क्या सोच रही हो?" सुषमा ने एक दिन उसे देखा जब वह उदास बैठी थी।

"बस यही सोच रही हूँ कि मैं यहाँ कैसे ढलूँगी," काव्या ने कहा, "यह शहर, यह लोग, मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं यहाँ कुछ खास नहीं कर सकती।"

"तुम सोचने के बजाय करना शुरू करो। यहाँ की दुनिया तुम्हारी राह को आसान नहीं बनाएगी, लेकिन अगर तुम ठान लो, तो कोई भी चीज़ तुम्हें रोक नहीं सकती," सुषमा ने समझाया।

काव्या ने सुषमा की बातों को ध्यान से सुना और अपने अंदर एक नई ताकत महसूस की। उसने अपने जीवन को लेकर नए उद्देश्य निर्धारित किए और धीरे-धीरे संघर्ष की राह पर कदम बढ़ाया।

उसे पता था कि यह यात्रा आसान नहीं होने वाली थी। लेकिन एक बात काव्या ने समझ ली थी—अगर वह अपने सपनों का पीछा करती रही, तो उसे अंततः सफलता मिलेगी।

शहर के इस अनजाने माहौल में काव्या ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी। यह सिर्फ शुरुआत थी, और काव्या का संघर्ष अब और भी बढ़ने वाला था।

(जारी...)


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