Jurm ki Dasta - 3 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | जुर्म की दास्ता - भाग 3

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जुर्म की दास्ता - भाग 3

एयरपोर्ट के बाहरी प्रांगण मे खड़े जयदीप की चौकन्नी निगाहें बाहर आने वाले यात्रियों को ध्यानपूर्वक देख रही थीं। जैसे ही लड़की का कुछ परिचित-सा चेहरा उसे कस्टम काउण्टर पर दिखाई दिया वैसे ही वह और भी अधिक सजग हो गया।


शायद यही है शेफाली सोचा उसने


फिर भी यह जानने के लिए कि उसका अनुमान ठीक है या नहीं उसने बड़ी सावधानी के साथ कोट की भीतरी जेब में रखा रंगीन फोटो निकालकर देखा। फोटो से चेहरा मिलता था।


तो यही है शेफाली-उसने फोटो वापिस जेब में रखते हुए मन ही मन अपने आप से कहा। पहचानने के बावजूद भी


उसने उसकी ओर बढ़ने का कोई प्रयत्न नहीं किया। वहीं दूर खम्बे के पास से उसे देखता रहा और सोचता रहा कि वह जो दूसरी इसके साथ है वह शायद इसकी नौकरानी शारदा होगी। लेकिन कपड़े तो अमरीकन ी बढ़िया पहन रखे हैं। क्यों न पहने। अमरीकन नौकरानी है कोई देशी नौकरानी तो नहीं जो फटे पुराने कपड़े पहने। उसने तो सुना था कि अमरीका में फर्श साफ करने वाले नौकर-नौकरानियां भी कार में बैठकर काम करने जाते हैं। फिर पत्र के मुताविक शेफाली तो हमें अपनी सहेली समझती है।


यह है जिन्दगी।


कस्टम से सामान क्लीयर हुआ तो वे दोनों एयरपोर्ट से बाहर की ओर चल दीं। जयदीप के निकट से ही गुजर कर गई। तभी उसे मालूम हुआ कि जिस नौकरानी को उसने अमरीकन समझा था वह दरअसल अमरीकन नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी ही थी। रंग गोरा होने की वजह से थोड़ा धोखा खा गया था। फिर भी नौकरानी शेफाली की तरह से एकदम अत्याधनिक कपड़े यानि पैंट कमीज नहीं पहने हुई थी। मगर साड़ी भी नहीं पहन रखी थी बल्कि स्कर्ट ब्लाउज पहन रखा था और उसमें वह काफी सुन्दर दिखाई दी थी जयदीप को।


जब वे दोनों अपने सामान उठाने वाले पोर्टर के साथ बाहरी दरवाजे तक पहुंच गई तो जयदीप अपने स्थान से हिला और उनके पीछे चल दिया।


रात आठ बजे के करीब जब जयदीप अपने कैरेट क्लब से घर लौटा तो पिता को आवश्यकता से अधिक चिन्तित पाकर पूछ बैठा-क्या बात है पापा? आज आप बहुत ज्यादा परेशान नजर आ रहे हैं।"


रतलाम से तुम्हारे मामा की चिट्ठी आई है और ज्यादा तबीयत खराब हो गई है उनकी।"


"तो आपके घबराने से तो उनकी तबियत ठीक होने से रही।" जयदीप बोला- " बेहतर होगा कि मां को लेकर दो- चार दिन के लिए रतलाम हो आइए ।"


"सोच तो यही रहा था। लेकिन यह दूसरा पत्र भी तो आ गया है?"


"दूसरा पत्र? किसका?"


"शेफाली का।” मैनेजर उमाशंकर ने उसे एक अमरीकी डाक का लिफाफा दिखाते हुए कहा- "वह कल सुबह चार बजे के प्लेन से यहां पहुंच रही है।"

"यह शेफाली कौन है?"


"सेठ पदमचन्द की लड़की। सुजान से झगड़ा होने से पहले मैं उसी की तो जमीन-जायदाद की देखभाल किया करता था।"


"तो क्या आप उसे रिसीव करने जाएंगे?" जयदीप बोला


"अब छोड़िए भी यह सारे चक्कर। आ जाएगी तो रतलाम से लौटने के बाद उससे मिलने के लिए चले जाइएगा।"


"मिलने की बात नहीं है बेटा ।” उमाशंकर ने चिन्तित से स्वर में कहा- " मामला कुछ ज्यादा ही खतरनाक होता जा रहा है। मैने कल्पना भी नहीं की थी कि सुजान इतनी नीचता पर उतर आएगा।"


"अब सुजान ने क्या किया है?"


"यह तो तुम्हें मालूम ही है कि त्रिलोचन के मरने के बाद सुजान खुलकर खेलने लगा और शेफाली की जायदाद में जबर्दस्त गड़बड़िया करने लगा। जब मैंने उसे ऐसा करने से रोकना चाहा तो उसने मुझे नौकरी से निकाल बाहर किया।"


"यह बातें तो महीनों पुरानी हो गई पापा.... "


"उन पुरानी बातों में से ही नया खतरा उभर कर आ रहा है बेटे ।'


"मे कुछ समझा नहीं।"


"जब सुजान ने मुझे नौकरी से निकाला तो मैंने अमरीका में शेफाली को सब कुछ बिस्तार से लिखकर भेज दिया था कि बाप के मरने के बाद वह उसकी सम्पत्ति में गड़बड़ी कर रहा है। मुझे यकीन है कि यह खबर मिलने के बाद ही उसने अब यहां हिन्दुस्तान आने का फैसला किया है?


"मगर उसका आना सुजान के लिए खतरनाक होगा। उस बदमाश के लिए आपको चिन्तित होने की क्या जरूरत ? "


"मैं उसके लिए नहीं शेफाली के लिए चिन्तित हूं।"


"वह क्यों?"


"तुम्हारे आने से कुछ देर पहले रहमत मियां का फोन


आया था। उन्होंने मुझे बताया कि सुजान शेफाली का 

अपहरण करने की साजिश रच रहा है।"


"क्या कह रहे हैं आप?"


"मैं ठीक कह रहा हूं।" सुजान का बाप त्रिलोचन सिंह, मैं और रहमत मियां, सेठ पदमचन्द के हमेशा खैर ख्वाह रहे। यही वजह है कि जब तक त्रिलोचन जिन्दा रहा। हमने उनकी बेटी के मालिक होने की उभ्र तक बड़ी ईमानदारी से सारा इन्तजाम किया। एक नया पैसा भी कभी इधर से उधर नहीं होने दिया। मगर अफसोस कि छ: महीने पहले त्रिलोचन मर गया और सारा इन्तजाम सुजान के हाथ में आ गया। उस देवता स्वरूप आदमी के यहां यह शैतान कहां से पैदा हो गया, राम जाने। लेकिन इन छ: महीनों में ही सुजान ने वह धांधली मचाई कि तौबा । मैंने विरोध किया तो मुझे वहां से निकाल दिया। रहमत मियां घर के नौकर हैं लेकिन दिल से अपने असली मालिक की बेटी के ही खैरख्वाह हैं। इसीलिए उन्होंने सुजान की साजिश की खबर मुझे दी।"


"लेकिन सुजान अपहरण जैसी हरकत कर जाए यकीन नही आता।"


"जब आदमी लालच में अंधा हो जाता है तो अपहरण तो क्या हत्याएं तक कर बैंठता है। सुजान भी दौलत के लालच में पागल हो गया है। वह कुछ भी कर सकता है।"


"हमें इस बात की खबर फौरन पुलिस को दे देनी चाहिए।"


"सोचा तो मैंने भी यही था।"


"फिर क्या दिक्कत हैं?"


"सुजान का साथ कुलवन्त दे रहा है।"


"कुलवन्त कौन?"


"एक ट्रांसपोर्टर है, जो वास्तव में स्मगलिंग का धंधा करता है। उसकी पुलिस में काफी पहुंच है। उसार हमने पुलिस में खबर की तो मुझे खतरा है कि यह बात कुलवन्त के माध्यम से सुजान के पास पहुंच जाएगी और वह सावधान हो जाएगा।"


"सावधान हो जाएगा तो हो जाए। कम से कम उस लड़की का अपहरण तो न कर सकेगा।"