Adhuri udaan in Hindi Short Stories by Manoj Kumar books and stories PDF | अधूरी उड़ान

Featured Books
  • فطرت

    خزاں   خزاں میں مرجھائے ہوئے پھولوں کے کھلنے کی توقع نہ...

  • زندگی ایک کھلونا ہے

    زندگی ایک کھلونا ہے ایک لمحے میں ہنس کر روؤں گا نیکی کی راہ...

  • سدا بہار جشن

    میرے اپنے لوگ میرے وجود کی نشانی مانگتے ہیں۔ مجھ سے میری پرا...

  • دکھوں کی سرگوشیاں

        دکھوں کی سرگوشیاںتحریر  شے امین فون کے الارم کی کرخت اور...

  • نیا راگ

    والدین کا سایہ ہمیشہ بچوں کے ساتھ رہتا ہے۔ اس کی برکت سے زند...

Categories
Share

अधूरी उड़ान

**अधूरी उड़ान**  

*

 

राजू एक छोटे से गाँव का लड़का था, जहाँ ना तो ढंग का स्कूल था और ना ही बिजली-पानी की पूरी सुविधा। उसका घर मिट्टी और खपरैल से बना हुआ था, जिसमें बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता था। उसके पिता खेतों में मजदूरी करते थे और माँ पास के शहर में झाड़ू-पोंछा लगाने जाती थीं। घर की माली हालत इतनी खराब थी कि कई बार एक वक़्त का खाना भी मुश्किल से नसीब होता था।

 

लेकिन इन मुश्किलों के बीच राजू के सपने बहुत बड़े थे। वह पढ़-लिखकर इंजीनियर बनना चाहता था। उसे मशीनें बहुत पसंद थीं। जब कोई पुराना रेडियो या पंखा खराब हो जाता, तो वह उसे खोलकर समझने की कोशिश करता। किताबों के प्रति उसका प्रेम इतना गहरा था कि जब दोस्त खेलते, वह पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ता रहता।

 

गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए भी राजू हर साल अव्वल आता था। उसके शिक्षक कहते, “अगर इस बच्चे को सही मौका मिला, तो ये बहुत आगे जाएगा।” लेकिन घर की हालत देखकर कोई उम्मीद नहीं करता था कि राजू शहर जाकर पढ़ पाएगा।

 

दसवीं में उसने जिले में टॉप किया। सब चकित रह गए। उसे शहर के एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल गया, लेकिन वहाँ पढ़ने और रहने के लिए पैसे चाहिए थे। उसके पिता ने साफ मना कर दिया — “हमारे पास इतना पैसा नहीं बेटा, सपना देखना अच्छा है, लेकिन हकीकत से भागना नहीं।”

 

राजू टूटा नहीं। उसने गाँव में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, खेतों में भी काम किया, और रातों में खुद पढ़ता रहा। धीरे-धीरे उसने शहर जाने लायक पैसे इकट्ठे कर लिए। कॉलेज में दाखिला मिल गया, लेकिन चुनौतियाँ वहीं खत्म नहीं हुईं। वह दिन में पढ़ता, और रात को होटल में बर्तन धोता, झाड़ू लगाता, कभी-कभी बस अड्डे पर अख़बार भी बेचता।

 

कई रातें ऐसी गुजरीं जब उसने खाली पेट पढ़ाई की, लेकिन उसने हार नहीं मानी। ठंड की रातों में पतली चादर में काँपते हुए वह सपना देखता था कि एक दिन उसके माता-पिता आराम की ज़िंदगी जिएंगे। जब उसके दोस्त कॉलेज के बाद मस्ती करते, वह एक कोने में बैठकर पुराने नोट्स में डूबा रहता। कुछ लोग उसका मज़ाक उड़ाते, लेकिन उसे फर्क नहीं पड़ता था।

 

अंततः उसकी मेहनत रंग लाई — उसने इंजीनियरिंग में टॉप किया और उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। वो दिन उसकी ज़िंदगी का सबसे खास दिन था। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वो आँसू ख़ुशी के थे।

 

पहली तनख्वाह से उसने गाँव लौटकर अपने माता-पिता के पैर छुए और कहा, “अब आपकी तकलीफों का अंत हुआ।” उसने गाँव में एक लाइब्रेरी बनवाई, और बच्चों को मुफ़्त में पढ़ाने लगा। साथ ही उसने गाँव के लिए एक डिजिटल क्लासरूम भी शुरू किया, ताकि दूसरे बच्चों को वही तकलीफें ना झेलनी पड़ें।

 

गाँववालों ने गर्व से कहा, “राजू ने साबित कर दिया कि हालात कैसे भी हों, अगर इरादा मजबूत हो, तो उड़ान अधूरी नहीं रहती।”

 

राजू मुस्कराया और बोला, “जिसके पास सपना होता है, उसके पास रास्ता भी खुद-ब-खुद बन जाता है। अगर आप ठान लें, तो कोई भी मंज़िल

दूर नहीं होती।”

 

---