Mera Rakshak - 12 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 12

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मेरा रक्षक - भाग 12

मीरा की आँखें धीरे-धीरे खुली।
उसने महसूस किया कि उसके ऊपर कुछ भारी था…
और यह कोई सपना नहीं, बल्कि हकीकत थी — वह रणविजय था।


उसकी गर्म साँसें अब भी उसके गालों से टकरा रही थीं, और उसकी छाती की हल्की धड़कन उसे खुद के दिल की धड़कनों में मिल रहा था।
उसका सिर धीरे-धीरे रणविजय की छाती से हटा था, लेकिन उसका हाथ अभी भी उसके कंधे पर था, और उसकी बाँहें रणविजय के आसपास फैली हुई थीं।


मीरा ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं, और पहली बार देखा कि रणविजय इतना पास था।
इतना पास कि उसके चेहरे की हर लकीर, हर उभार, हर श्वेत दाग साफ दिख रहे थे।
यह चेहरा जिसे वह हमेशा खौफ और बर्बादी से जोड़ती रही थी, आज उसका पूरा रूप कुछ अलग ही था।


रणविजय की नज़रें बंद थीं, उसकी लब हल्की सी हँसी में सुकून पा रहे थे, और उसकी साँसों की रफ्तार कुछ धीमी और शांत थी।
लेकिन मीरा जानती थी कि वह हमेशा से ऐसा नहीं था।
वो एक खतरनाक आदमी था, जिसे उसने कई बार सुना और देखा था —
लेकिन अब उसे इस नई रणविजय से सामना हो रहा था।
क्या यही वह लड़का था, जो पूरी दुनिया को डराने का हौंसला रखता है?
क्या ये वही लड़का है, जिसके नाम से दुनिया कांपती है?


मीरा ने धीरे से अपनी आँखें चौड़ी कीं,
लेकिन रणविजय को देखती हुई उसकी नसों में अजीब-सा हलचल महसूस हो रहा था।
उसने अपने दिल की धड़कनों को धीमा किया, और फिर अपने अंदर गहरी शांति की तलाश करने लगी।
फिर भी, उसने महसूस किया कि इस एक पल में कुछ ऐसा था जो उसे पहले कभी नहीं लगा था।
उसके दिल के अंदर एक कशमकश चल रही थी — क्या उसे इस पल को पकड़ लेना चाहिए या इससे भाग जाना चाहिए?



रणविजय के शरीर से मिलते उसके हाथ और चेहरा उसे अपनी दुनिया का हिस्सा जैसा महसूस करा रहे थे।
क्या यह सच था?
क्या वह अब अपने डर को छोड़ सकती थी और इस अजनबी के साथ कुछ और पल बिता सकती थी?



मीरा ने धीरे से अपने हाथ को रणविजय की छाती से हटाया, और धीरे-धीरे उठने की कोशिश की,
लेकिन उसने देखा कि रणविजय की आँखें बिना खोले उसकी पकड़ मजबूत हो गई।
"तुम जा नहीं सकतीं… अभी नहीं…"


यह बोलकर रणविजय ने उसे और करीब खींच लिया।
उसकी पकड़ में कुछ ऐसा था, जैसे किसी ने उसे कभी इतनी गहरी समझ के साथ अपनी बाँहों में समेटा हो।


यह सब अजीब था, लेकिन मीरा को ऐसा महसूस हो रहा था कि वह खुद को उसके करीब जाने से नहीं रोक पा रही थी।


वो जानती थी कि रणविजय से जो अजनबियत थी, अब वह खत्म हो चुकी थी।
वह अब सिर्फ एक शख्स नहीं था, जो उसकी जिंदगी में मुश्किलें और दर्द लेकर आया था,
वह अब उसकी एक निजी कहानी का हिस्सा बन चुका था।


उसका डर, उसकी तन्हाई, और उसकी कड़वाहट अब मीरा के पास महसूस हो रही थी,
और एक अजीब सा भावनात्मक जुड़ाव महसूस हो रहा था।


मीरा ने हल्की सी सांस ली, और धीरे से रणविजय की आँखें खोलने की कोशिश की।
वो जो कुछ भी था, वह अब मीरा के लिए एक अलग दुनिया का हिस्सा बन चुका था।


"क्यूं रोक रहे हो मुझे रणविजय?"
उसने हल्की सी बुदबुदाई।
यह सिर्फ एक सवाल नहीं था, बल्कि एक ऐसा सवाल था, जिसे मीरा को खुद से भी पूछने की जरूरत महसूस हो रही थी।
क्या वह इस बदलाव को सहन कर सकती थी?
क्या वह रणविजय के साथ इस नए सफर को शुरू कर सकती थी?


रणविजय ने उसकी आँखों में एक नई आंतरिक ताकत देखी, जो पहले कभी नहीं थी।
उसकी नज़रें अब मीरा की आँखों में गहरे उतरने लगीं।
उसने फिर से मीरा को अपनी बाँहों में समेट लिया, लेकिन इस बार उसकी पकड़ में कुछ था, कुछ बहुत सच्चा और इमोशनल।
उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान थी, जैसे उसने बहुत कुछ पाया हो…
लेकिन मीरा के मन में अभी भी कई सवाल थे।
"क्या ये सुकून सिर्फ इस पल के लिए है?"
"क्या रणविजय सिर्फ इस पल के लिए है?"



लेकिन कुछ अंदर ही अंदर उसे समझने लगा था कि इस पल को जीना ज़रूरी था।
वो सोचने लगी कि शायद अब उसका दिल कह रहा था,
"आगे बढ़ो मीरा… इसे महसूस करो… इस पल को खो मत देना…"

वो इस पूरे सफर में अब एक कदम और आगे बढ़ने के लिए तैयार थी…
रणविजय के साथ।