Me and my feelings - 125 in Hindi Poems by Darshita Babubhai Shah books and stories PDF | में और मेरे अहसास - 125

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में और मेरे अहसास - 125

सच्चाई

जिंदगी की सच्चाई को जल्द समझ जाना चाहिए l

ढ़ंग से जिंदगी को जीने का तरीक़ा आना 

चाहिए ll

 

कोई उम्रभर साथ नहीं चलता ये स्वीकार 

करके l

खुद ही अकेले चलने के ज़ज्बे को पाना 

चाहिए ll

 

कोई अपेक्षा नहीं कोई गिला शिकवा भी 

नहीं सबसे l

कंधे से कंधा मिलाकर वक्त को बिताना 

चाहिए ll

 

कल हो ना हो बस इसी लम्हें को भरपूर 

जी कर l

प्रकृति की गोद में खुशी का गीत गाना 

चाहिए ll

 

उम्र गर शांति ओ सुकून से गुजारनी हो 

तो l

जीवन में हर रिश्ता बखूबी से निभाना 

चाहिए ll

१६-४-२०२५ 

 

चाँद

हौसलों के चाँद की चमक बढ़ रही हैं l

ओ उड़ान के साथ ख्वाइशे चड़ रही हैं ll

 

जिंदगी में उतार चढ़ाव को सहकर भी l

सदाक़त से अपने हक़ को लड़ रही हैं ll

 

अस्तित्व को बनाये रखने के लिए ही l

खुद को गर्दिशों में भी जकड़ रही हैं ll

 

बड़ी ही बेरहम ज़ालिम दुनिया में वो l

जहाँ पर है वहीं डटकर खड़ रही हैं ll

 

अरमान की परवाज़ आसमाँ तक गई l

मुकम्मली आसमान को पकड़ रही हैं ll

१७-४-२०२५ 

दहेज

दहेज का शजर दिनप्रतिदिन फेलता जा रहा हैं l

इन्सानों का लालच का मुँह खुलता जा रहा हैं ll

 

बाप सारी उम्र पाई पाई इकट्ठा करता रहता l

इंसानियत की तरह बदन झुकता जा रहा हैं ll

 

कोई किसीका नहीं इस दुनिया मे इस लिए l

छोटी सोच जैसे समाज़ सिमटा जा रहा हैं ll

 

मतलब के हाथों में इतिसाब कर दिया कि l

अन्दर है वैसा ही बाहिर दिखता जा रहा हैं ll

 

लोग अपने आप इस तरह गुम हो चुके है l

भावना ओ अना परस्त मिटता जा रहा हैं ll

१८-४-२०२५ 

 

अना-परस्त=स्वाभिमान

इंतिसाब=समर्पित करना

 

देश की मिट्टी 

 

देश की मिट्टी की ख़ुशबु घर वापिस परदेशी को ले आएंगीं l

अपनों के प्यार की जुस्तजू घर वापिस परदेशी को ले आएंगीं ll

 

जहाँ पहचान उस घर, आँगन, गालियाँ, दोस्त 

वहीं पर आज l

ख्वाबों से निकाल रूबरू घर वापिस परदेशी को ले आएंगीं ll

 

कई सालों से बस वीडियो कॉल पर बातचीत 

होती रहती है l

तस्वीरों जैसा ही हूबहू घर वापिस परदेशी 

को ले आएंगीं ll

 

याद आएंगी जब बचपन के बचकानी बातों 

और लडकपन की l

हर ख्वाइश का जुगनू घर वापिस परदेशी 

को ले आएंगीं ll

 

जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देगी और 

खिंच लाएंगी l

फिझाओ के घुँघरू घर वापिस परदेशी 

को ले आएंगीं ll

१९-४-२०२५ 

अनुभव

जिंदगी के अनुभव से चमक-दार नज़र आते हैं l

समय की रफ़्तार के आगे बेजार नज़र आते हैं ll

 

नादानी और बचकानी हरकतों में उम्र गुजार दी l 

अब पहले से तो काफ़ी समझदार नज़र आते हैं ll

 

बढ़ाचढ़ा कर शिकायत किया करते थे जिसकी वो l

दुश्मन भी आज उसके तरफ़-दार नज़र आते हैं ll

 

जरा सी बात मुँह फुलाकर उठकर चल देते है l

रूठने वाले से मिलन के आसार नज़र आते हैं ll

 

दिल्लगी एक ही झटके में दिल की लगी बन गई l

ख्वाबों और ख्यालों में लगातार नज़र आते हैं ll

२०-४-२०२५ 

चाय

चाय की प्याली नहीं चाहिये आँखों से जाम 

पी कर आये हैं l

दो घूंट में सदियों की प्यास बुझाकर जिंदगी 

जी कर आये हैं ll

 

जरा सी आग क्या लगी हवा देने लगे जाने पहचाने चहरे तो l

मोहब्बत का दुश्मन ओ बेरहम ज़माने का मुँह 

सी कर आये हैं ll

 

बोलने वाले बोलेंगे उनका का काम है बोलते 

ही रहना इस लिए l

भरे बाजार इश्क़ बदनाम ना हो इस वजह  

बी कर आये हैं ll

 

दिल दुखाने का कोई इरादा तो कतह नहीं था 

ना जाने कैसे l

छोटी सी बात पर दिल तोड़कर और रुलाकर 

भी कर आये हैं ll

 

कौन सा शुरूर छाया हुआ था दिल और दिमाग में की l

जो नहीं करना था वो नशें में ओ अनजाने में 

ही कर आये हैं ll

२१-४-२०२५ 

 

पृथ्वी 

 

पृथ्वी की हर जगह में सौंदर्य छलकता हैं l

उसकी हर धड़कन में संगीत धड़कता हैं ll

 

ये माता हमारी यहां बस्ती दुनिया सारी l

चारौ ओर पैड पौधों से जग महकता हैं ll

 

पैमाना ए शबर रखना जरूरी हो गया है l

अद्भुत नजारा देखने को दिल मचलता हैं ll

 

खेत खलिहानों नदी तालाब भरने को l

खुद तप जाती है तब पानी बरसता हैं ll

 

चिड़ियाँ बोलें और प्यारी ख़ुशबू डोले l

खिले फल औ फूल से मन बहकता हैं ll

२२-४-२०२५ 

पुस्तक

पुस्तकों से दोस्ती करके बहुत कुछ पाओगे l

आदर और सम्मान मिलेगा जहां भी जाओगे ll

 

पढ़ने के अभ्यास से ओ ऊँच सोच के साथ l

खुद में और समाज में बड़ी क्रांति लाओगे ll

 

माँ शारदे के वरदान से, जीवन में खुशहाली l

संसार में अद्भुत ज्ञान का सागर बहाओगे ll

 

अच्छाई और सदाक़त की राह पर चल के l

मुकम्मल ज्ञान को अपने अंदर समाओगे ll

 

इसका संग इतना प्यारा बने मुर्ख महान l

दुनिया में सबसे ज्यादा नाम कमाओगे ll

२३-४-२०२५ 

 

दिनकर

मानवता का दिनकर लोगों के दिलों में उगना जरूरी हो गया हैं l

हर समय हर लम्हा चौकन्ना रहकर जगना 

जरूरी हो गया हैं ll

 

एक दिन तो पंचभूत में ही मिल जाना है 

ये स्वीकार करके l

मिट्टी से भले बने हो पर सोने का लगना 

जरूरी हो गया हैं ll

 

खुद से ऊपर उठकर इन्सानियत को गले 

से लगाकर फ़िर l

दूसरों के दुख दर्द का अह्सास भी करना 

जरूरी हो गया हैं ll

 

सब के साथ मिलजुलकर जीना सीखकर  

जीवन में आगे बढ़के l

दिल का बड़ा होने के साथ मन बड़ा रखना 

जरूरी हो गया हैं ll

 

अपनी आवडत और प्रतिभा को निखारने 

के बाद हमेशा ही l

सभी के साथ रिश्ता निभाना और निभना 

जरूरी हो गया हैं ll

२४-४-२०२५ 

 

स्मृति

पुरानी स्मृतियाँ दिल में हलचल मचा जाती हैं l

सुहाने प्यारे मीठे लम्हेंकी याद रुला जाती हैं ll

 

तहखाने में से निकली हुई पुरानी तसवीरें l

छोटी सी मुलाकात की आग लगा जाती हैं ll

 

प्यारी सी अठखेलियाँ झकझोरते हुए आज l

जुस्तजू औ ख्वाबों में रोम-रोम समा जाती हैं ll

 

वो बाँकपन, अल्लड ओ बेफ़िक्र सी स्मृति l

फ़िर वहीं खुशी का दिलासा दिला जाती हैं ll

 

जानी पहचानी कदमो की धीमी सी आहट l

बेकरार से चिंतित दिल को सिला जाती हैं ll

२५-४-२०२५ 

 

बौद्धिक

बौद्धिक ज्ञान से सोच सकारात्मक हो जाती हैं l

भीतर आंतरिक खोज सकारात्मक हो जाती हैं ll

 

नया दिन जो भी साथ लाया उसे स्वीकार करें l

जिंदगी रोज ही रोज सकारात्मक हो जाती हैं ll

 

 

ज्ञान पाकर सही दिशा में प्रयास करके जरूर ही l

मंज़िल को पाने की दोड़ सकारात्मक हो जाती हैं l

 

करुणा, दया, क्षमा के पाठ सीखकर आगे बढ़े ओ l 

दिनकर की ऊर्जा से भोर सकारात्मक हो जाती हैं ll

 

खुशी से ज़ंग जितने का ज़ज्बा बढ़ा देती है तो l

अपनों की चिट्ठी से फ़ौज सकारात्मक हो जाती हैं ll

२६-४-२०२५

 

दिल में छुपी हुई सारी बात लिखो l

ख़ामोश अनकहे ज़ज्बात लिखो ll

 

युगों से तरसे है जिस भावना को l

तनमन भीगे एसी बरसात लिखो ll

 

हर बार दिनकर की कविता कहीं l

एक बार मुकम्मल सी रात लिखो ll

२७-४-२०२५ 

माँ की दुआएं  

माँ की दुआओ का असर देख लो l

होने लगी दुनिया में क़दर देख लो ll

 

पाठशाला से घर आएं हुए नादान l

बच्चों की आँख में तड़प देख लो ll

 

सो साल का बुढ़ा भी माँ को तरसे l

सभी उम्र में होती गरज देख लो ll

 

माँ की प्रार्थना से हासिल हुआ l

नाम हो जाता है अमर देख लो ll

 

सारी क़ायनात भले फिरो पर l

आज आचल में सफ़र देख लो ll

२८-४-२०२५ 

 

सफ़र करते रहो मंज़िल खुदबखुद मिल जाएंगी l

चलते रहो तो ख़ुशी और कलियां खिल जाएंगी ll

 

सफ़र औ मंज़िल एक ही सिक्के की दो बाजू हैं l

सफ़र की आख़िर मंज़िल मुकम्मल दुनिया पाएंगी ll

 

सफ़र ए मंज़िल में कई जाने अनजाने हादसों से l

मनचाही मंज़िल चहरे पर प्यारी मुस्कान लाएंगी ll

 

बेह्तरीन मंज़िल के लिए बेह्तरीन सफ़र करना 

ज़रूरी l

ख़ुद पर यकीन करके आगे बढ़ तो जश्न मनाएंगी ll 

 

याद रख अनजानी शक्ति कहीं से भी आकर l

राह में किसी मोड़ पे कलियों से सजाएंगी ll 

२९-४-२०२५ 

प्रेम के इन्द्रधनुष

प्रेम के इन्द्रधनुष की बारिस हो रही हैं l

पिया मिलन की तमन्ना को बो रही हैं ll

 

सुहाने नशीले मौसम में सावन की धीमी l

रिमझिम छांट चैन और सुकून खो रही हैं ll

 

मन झूम झूम के नाच के खुशी से गा रहा l

प्रति लम्हे में रोम रोम को भीगो रही हैं ll

 

अल्फाज़ में बयां नहीं कर सकते हसरत l

जिंदगी के रंगमंच में रंग संजो रही हैं ll

 

सावन की आवरा बहकती बदली आज l

आती जाती धड़कनों में समो रही हैं ll

३०-४-२०२५ 

 

चाय तो सिर्फ़ बहाना है बातें करने का l

जरिया है मन को खुशियों से भरने का ll