Mera Rakshak - 18 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 18

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मेरा रक्षक - भाग 18


मीरा जब घर लौटी तो उसका चेहरा एकदम फीका पड़ चुका था। मन और शरीर दोनों थक चुके थे। आंखों में डर था, दिल में उलझन। कमरे में आते ही उसने दरवाज़ा बंद किया और चुपचाप पलंग पर बैठ गई। कमरे की खामोशी उसके अंदर के तूफान से बिलकुल उलट थी।

आज जो उसने देखा, वो उसकी सोच से परे था। रणविजय का वो चेहरा... खून से सने हाथ, आंखों में आग, और उस खामोश गुस्से में छिपा जानवर। मीरा ने कभी उसकी ये शक्ल नहीं देखी थी। वो तो हमेशा उसे एक शांत, समझदार और गहरा इंसान समझती थी। लेकिन आज... आज सब बदल गया था।

उसका मन चीख-चीख कर कह रहा था — "वो इंसान कौन था? क्या वही रणविजय था जिसे मैंने जाना?"

उसकी आंखों में आँसू भर आए थे। हाथ कांप रहे थे। दिल कह रहा था कि जो देखा वो झूठ था, मगर दिमाग उस सच्चाई को कबूल करने के लिए मजबूर कर रहा था।

"जिसने मेरे माथे पर प्यार से चूमा था... वही इन हाथों से खून कर सकता है?" मीरा ने खुद से सवाल किया।

वो खुद से लड़ रही थी। एक तरफ रणविजय का वो सच्चा रूप था जो उसकी आंखों में बस गया था — वो पल जब वो बिना कुछ कहे उसके पास आया और उसकी सिहरती रूह को सुकून दे गया। और दूसरी तरफ था रणविजय का आज का रूप — डरावना, खतरनाक और बिल्कुल अजनबी।

मीरा को खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसने रणविजय को कभी समझा ही नहीं। शायद उसने दिल से महसूस किया, मगर दिमाग से कभी परखा नहीं।

"मैं कैसे इतनी अंधी हो सकती हूँ?" उसने फुसफुसाते हुए कहा।

अब वो खुद से ही सवाल कर रही थी। क्या जो अपनापन उसने महसूस किया था, वो एक भ्रम था? क्या रणविजय सच में उससे जुड़ा था या बस एक साया बनकर उसके आसपास मंडरा रहा था?


उसके लिए रणविजय अब एक पहेली बन चुका था — एक ऐसा इंसान जिसके दो चेहरे थे। एक, जो उसे सुकून देता था। दूसरा, जो उसकी रूह तक को कंपा देता था।


मीरा के लिए ये सबसे मुश्किल रात थी। वो चुपचाप बैठी रही, आंखें खुली थीं मगर वो कुछ देख नहीं रही थी। मन बार-बार उसी दृश्य को दोहरा रहा था — खून, चीखें, और रणविजय की वो बर्फ-सी ठंडी नज़र।


आज मीरा के दिल में रणविजय के लिए जो जगह थी, वो खाली नहीं हुई थी... मगर अब वहां सुकून नहीं, सवाल थे।

" शायद मेरी ज़िंदगी में अपनेपन, प्यार और सुकून की कोई जगह नहीं है"  यह कहकर मीरा रो दी।


कमरे के बाहर खड़ा शिवा सब चुपचाप सुन रहा था, अपनी बहन की सिसकियां उसे परेशान कर रहीं थीं।


शिवा ने दरवाज़ा खटखटाया,  मीरा ने आंसू पोछे कर दरवाजा खोलने से पहले आईने में अपना चेहरा देखा, ये चेहरा किसी बेजान से जिस्म का लग रहा था।

मीरा ने दरवाज़ा खोला , शिवा ने बिना कुछ बोले मीरा को गले लगा लिया। गले लगते ही मीरा जैसे टूट गई, वो चीख चीख कर रोने लगी। 
 उम्र में छोटा शिवा बहन को गले लगाए बस उसके सर पर हाथ फेर रहा था।