"Social distances रखे...
सावधान रहे, सुरक्षित रहे...
कोरोना वाइरस से बचे रहे..."
पांच साल पहले ये सारी लाइने हर जगह बोली जा रही थी..
बोर हो रही निशा,
सोशियल मिडिया पे टाइमपास कर रही थी...
तभी उस से कही दूर सूरज भी ऑनलाइन था..
निशा ने ऐसे सूरज को मेसेज कर दिया..
अनजान मेसेज देखकर वो सोच में पड़ गया...
पता नहीं कोन है...
फिर भी बात करी, पता नहीं था की क्या बात करनी थी पर दोनों की बाते होने लगी...
कुछ अपनी सुनाते, कुछ एक दूसरे की सुनते...
अनजान से जानने लगे, पहचानने लगे..
दोनों को लगा एक दूसरे को जान रहे थे,
पर शायद एक दूसरे की जान बन रहे थे....
निशा अपनी बात शेर शायरी में लिखना पसंद करती,
और जनाब सूरज भी कम कहा थे..!
वो अपनी निशा से लिखने के मामले में चार कदम आगे थे....
निशा रात लिखती तो सूरज ख्वाब लिखता...
निशा आँख लिखती तो सूरज काजल लिखता..
मानो की लिखते दोनों ये बात की,
'जान ले तू "जान" है मेरी...'
एक दूसरे की बिना मिले ही....
बात होती, कुछ ज्यादा हो तो लड़ाई होती...
पर एक दूसरे के ख्याल के बिना रात ना होती...
ऐसे ही दूरी में नज़दीकी हुई...
Long distances में शुरू एक कहानी हुई..
गाने सुनते सुनते बेचैनी कुछ बढ़ गई..!
लगा सारे गानो की हमारे लिए हुई है लिखाई...
बाते सारी दिल की सोंग लिरिक्स में बताई...
"बाते ज़रूरी हैं
तेरा मिलना भी ज़रूरी
मैंने मिटा देनी
ये जो तेरी मेरी दूरी "
ऐसा नहीं था की एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए बस और रेलवे का स्टेशन नहीं थी....!
पर ये दोनों एक दूसरे को इतनी आसानी से मिल शके ऐसी इनकी किस्मत नहीं थी....
लगभग लगभग सात सो किलोमीटर का अंतर दोनों शहरों के बिच था...
पर कभी कभी ये सात समुद्र जैसे लगता था...
ये long distances अब तो जान लेवा लगता था...
फिर एक दिन पेहले खुद को बाद में सब को समझाया...
की भाई का friend है ऐसा सब को बताया....
दिल के हाथो मजबूर होके निशा ने सूरज को मिलने बुलाया...
पुरे तीन साल की बातो के बाद...
वो सामने आया...
मानो आँखों के सामने वो ही जा ठहरा..
सारी दुनिया को भुलाया....
हाथ थाम घर में आया वो..
मानो निशा के दिल और दिमाग़ पे छाया वो...
होंठ से होंठ को मिला के वो ,
रूह से रूह को गया मिला के वो..
दिन पूरा आँख के सामने रुक के,
पूरी जिंदगी जीने की वजह दे गया वो...
सूरज के जाने के बाद मानो मिलने की तपड़ और ज्यादा बढ़ गई..
छवि प्यार की उसके दिल ने बस गई.....
ऐसा भी हुआ,
दिल जब भर जाता बेपनाह प्यार से तो हाथ थामना चाहते.. पर बिच में आते सात सो किलोमीटर...
जब दिल हार जाये ऐसे दूर दूर रहकर... तो बिच में आते ये सात सो किलोमीटर...
आँख बस एक दफा देखने को तरसे.. तो दीखते बस ये सात सो किलोमीटर...
कभी ये दूरी दिलो की दूरी भी लगती...
कभी सूरज तो कभी निशा की बातो में गुस्सा, चिड़चिड़ापन तो कभी आंसू बन दिख ने लगती...
सूरज अक्सर ये भी बोल देता...
की " ऐसे कैसे रहेंगे..!? कब तक रहेंगे...!? "
निशा मानती उसे तो कभी घंटो तक समजाती...
"वक़्त का उठा कर लुफ्त रह ले साथ,
खुश रहेंगे, साथ जब तक रहेंगे...
बाद का बाद में देखेंगे..."
तकरार इतना बेक़रार कर जाती,
की ये दूरी बस मज़बूरी बन जाती...
ऐसे से ही लगभग एक साल से ज्यादा का वक़्त बीत गया...
दोनों ने अब मिलने के ख्याल भी निकाल दिया..
पर एक दिन..
अचानक सूरज निशा से आ मिला...
बस अब तो मिट गई हर सीमा हर दायरा...
प्यार को मिला प्यार, हो गया और भी ज्यादा प्यारा...
नश नश, अंग अंग में निशान वो दे गया...
अब प्यार हो गया गहरा...
वो होठो की हसीं में जा ठहरा..
दिल और दिमाग़ पे हो गया उसका पहरा..
सब से पसंदीदा हो गया उसका चेहरा...
किस्मत और समय ने अब अपना खेल खेला...
हाथो से हाथ कुछ यू छूटा
मेरा दिल कांच सा जा बिखरा..
यादो पे वो ही छाया...
क्या हुआ.. क्या पता..
वो आदत मेरी समजा,
जो प्यार मेरी इबादत था...
कभी तो लगता पांच साल पेहले काश कोई ये कह देता,
की
"Social media distances रखे...
सावधान रहे, सुरक्षित रहे...
प्रेम रोग से बचे रहे..."
तो सच में अपना दिल थाम लेते...
कुछ यादें तो कुछ वादे,
रह गई कुछ अधूरी बाते...
पता दोनों को है की ना निशा सूरज के साथ रह पायेगी...
ना सूरज निशा(रात) में अपनी जगह बना पायेगा...
दोनों उलझे सुलजाने ये जीवन की पहेली..
सूरज बोला.. "रहेगी तू क्या ताउम्र मेरी सहेली.?
अगली बार तू निशा तो में चाँद बन आउगा..
और अगर में सूरज तो तू मेरी रोशनी बन आना.."
सुन निशा की आँखे हो गई गीली..
तैय किया... ऐसे ही ये जिंदगी है जीनी...